नई दिल्ली: 13 फरवरी यूं तो यह पूरा हफ्ता ही वेलेंटाइन वीक है लेकिन यह दिन दिल्ली के बेहद खास है. क्योंकि आज से 90 साल पहले 1911 में दिल्ली का राजधानी का दर्जा मिला था. दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान जॉर्ज पंचम (George Pancham) ने 11 दिसंबर 1911 को हुए दिल्ली दरबार में की थी. इससे पहले देश की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) थी. 


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कलकत्ता की दिल्ली को राजधानी बनाने के पीछे के कारणों की बात करें तो पहला ये कि ब्रिटिश सरकार से पहले कई बड़े साम्राज्यों ने दिल्ली से शासन चलाया था. जिसमें आखिरी नाम मुगलों का नाम था. दूसरी सबसे अहम वजह यह हो सकती है कि दिल्ली की उत्तर भारत में भौगोलिक स्थिति के चलते ब्रिटिश सरकार का ऐसा मानना था कि दिल्ली से देश पर शासन चलाना ज्यादा आसान होगा.


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1911 के दिल्ली दरबार के दौरान, 15 दिसम्बर को शहर की नींव भारत के सम्राट जॉर्ज पंचम ने रखी और ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लुट्यन्स (Adwin Lutiyan) व सर हर्बर्ट बेकर (Harbert Baker) ने इसकी रूपरेखा तैयार की. किसी भी शहर को अचानक देश की राजधानी बना देना आसान काम नहीं था. 


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निर्माण का काम तुगलकाबाद किले से शुरू किया जाना था लेकिन यह दिल्ली-कलकत्ता ट्रंक लाइन की वजह से रोक दिया गया. जो कि किले से होकर गुज़रती थी. हकीकत में निर्माण कार्य वर्ल्ड वॉर वन के बाद शुरू हुआ और 1931 में पूर्ण हुआ. शहर का नाम बदलकर "लुटियंस दिल्ली" कर दिया गया. जिसका उद्घाटन 10 फरवरी 1931 को उस वक्त के भारत के महाराज्यपाल लॉर्ड इर्विन द्वारा किया गया.


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देश आज़ाद होने के बाद साल 1966 दिल्ली में केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और चीफ कमिश्नर को उपराज्यपाल द्वारा बदल दिया गया. संविधान (उनहतरवां संशोधन) अधिनियम, 1991 के तहत दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश को रस्मी तौर पर दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी के तौर में बदल दिया गया. प्रदेश में चुनी हुई सरकार को कानून और व्यवस्था के अतिरिक्त व्यापक अधिकार दिए गए. कानून और व्यवस्था केंद्र सरकार के अधीन की गई.


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