Qutub Minar Controversy: मंगलवार को दिल्ली के साकेत कोर्ट में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद मामले में सुनवाई हुई. अब कोर्ट ने इस केस का फैसला 9 जान तक के लिए महफूज कर लिया है.
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Qutub Minar Controversy: कुतुबमीनार मामले में दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. अब कोर्ट ने कुतुब मीनार केस का फैसला 9 जून के लिए महफूज कर लिया है. इस मामले पर साकेत कोर्ट मे सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने दलील दी कि हमारी तीन अपील हैं जिसे मजिस्ट्रेट कोर्ट ने ख़ारिज किया था.
हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि 27 मंदिर को तोड़ कर यहां कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाई गई है.
जैन ने अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा कि उसके तहत ही कुतुब मीनार परिसर को स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों ने यहां कभी नमाज़ नहीं अदा की. मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कर इस्लाम की ताकत दिखाना चाहते थे. इस्लाम के उसूलों के मुताबिक नमाज अदा करने के लिए मुसलमान इसका इस्तेमाल कभी नहीं करते.
Saket Court says - list for June 9th, for order on an appeal regarding the restoration of 27 Hindu and Jain temples in the Qutub Minar complex in Mehrauli, Delhi.
Order reserved.
— ANI (@ANI) May 24, 2022
जज ने पूछा कि आप किस कानून के तहत यहां पूजा का अधिकार मांग रहे है?
इस पर मॉन्यूमेंट एक्ट का हवाला देते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि हम कोई मंदिर निर्माण नहीं चाहते. बस पूजा का अधिकार चाहते हैं.
जज ने पूछा कि आप इसे किस आधार पर बहाल करने का दवा कर रहे हैं?
जैन ने एक्ट के हवाले से कहा कि मॉन्यूमेंट के चरित्र के मुताबिक तो वहां पूजा होनी चाहिए. अब राममंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही देखिए तो रहा एक बार देवता की संपत्ति, हमेशा एक देवता की संपत्ति होती हैं. देवता की दिव्यता कभी मिटती नहीं. मंदिर के विध्वंस के बाद भी देवता और मंदिर की पवित्रता और देवत्व कभी नष्ट नहीं होता.
जैन ने दलील दी कि अगर मूर्ति तोड़ भी दी जाए या हटा दी जाए तो भी वहां मंदिर माना जाता है. कुतुब परिसर में अभी भी अलग अलग देवी देवताओं की मूर्तियां है. साथ ही एक लौह स्तंभ है. जो कम से कम 1600 साल पुरानी संरचना है। उस मिश्र धातु के स्तम्भ पर पौराणिक लिपि संस्कृत में श्लोक भी लिखें हैं. इसलिए हमें वहां पूजा की इज़ाज़त दीं जाए.
इस पर एडीजे निखिल चोपड़ा ने पूछा कि यदि देवता पिछले 800 वर्षों से बिना पूजा के वहा पर हैं तो रहने दें.
इस पर जैन ने जवाब दिया कि मूर्ति का अस्तित्व तो वहा विद्यमान है. मूर्ति तो है, लेकिन असली सवाल पूजा के अधिकार का है. सवाल यह है कि क्या अपीलकर्ता के मौलिक अधिकारों से इनकार किया जा सकता है? संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मेरे अपने धार्मिक रीति रिवाजों के मुताबिक पूजा उपासना करने के संवैधानिक अधिकार का हनन हो रहा है.
ASI ने दिया था हलफनामा
वहीं इससे पहले आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने हलफनामा दाखिल करते हुए कोर्ट में कहा था कि कुतुब मीनार की पहचान को बदला नहीं जा सकता है. ASI ने कहा था कि कुतुब मीनार को साल 1914 से ही संरक्षित स्मारक का दर्जा हासिल है. इसलिए अब कुतुब मीनार की पहचान नहीं बदली जा सकी है और ना ही वहां किसो को पूजा करने की इजाजत दी जा सकती है. जबसे इसे संरक्षित किया गया है, तब से वहां कभी पूजा नहीं हुई है.
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