`तुम से मिले तो ख़ुद से ज़ियादा, तुम को अकेला पाया हम ने`
Irfan Siddiqi Poetry: इरफान सिद्दीकी को उर्दू अकादमी उत्तर प्रदेश और गालिब इंस्टीट्यूट देहली से अवार्ड दिया गया है. 15 अप्रैल 2004 को वह लखनऊ में इंतेकाल कर गए. पेश हैं उनके चुनिंदा शेर.
Irfan Siddiqi Poetry: इरफान सिद्दीकी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. वह 08 जनवरी 1939 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में पैदा हुए. उन्होंने बदायूं और बरेली में तालीम हासिल की. साल 1964 में उन्होंने सय्यदा हबीब से शादी की. इरफान सिद्दीकी की पहली शेर व शायरी की किताब ‘कैन्वस’ 1978 में छपी. इसके बाद शब-दर्मियां (1984) और सात समावात (1992) में छपी. उनके दो कुल्लियात (संग्रह) में से ‘दरिया’ 1999 इस्लामाबाद से और ‘शह्र-ए-मलाल’ 2016 में दिल्ली से छपे.
अजब हरीफ़ था मेरे ही साथ डूब गया
मिरे सफ़ीने को ग़र्क़ाब देखने के लिए
बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है
उस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसाँ
दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे
जो कुछ हुआ वो कैसे हुआ जानता हूँ मैं
जो कुछ नहीं हुआ वो बता क्यूँ नहीं हुआ
सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी
दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है
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तुम सुनो या न सुनो हाथ बढ़ाओ न बढ़ाओ
डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें
मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ
तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ
सरहदें अच्छी कि सरहद पे न रुकना अच्छा
सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे
हम तो रात का मतलब समझें ख़्वाब, सितारे, चाँद, चराग़
आगे का अहवाल वो जाने जिस ने रात गुज़ारी हो