इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना "मुहर्रम" (Muharram) का होता है. इस महीने को इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक रमजान के बाद दूसरा सबसे मुकद्दस महीना माना जाता है.
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कई वर्षों से हम मुहर्रम के बारे में सुनते आ रहे हैं कि यह इस्लामी साल का पहला महीना है और हदीसों में इस महीने की बड़ी फजीलत बताई गई है. साथ ही, इसी महीने के दसवें दिन, पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत हुसैन की शहादत हुई थी. लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इस्लामिक साल की शुरुआत कैसे हुई और इसका इतिहास क्या है?
दरअसल इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना "मुहर्रम" (Muharram) का होता है. इस महीने को इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक रमजान के बाद दूसरा सबसे मुकद्दस महीना माना जाता है. 622 ईस्वी में इस्लामिक नए साल यानी हिज्री (Hijri) कैलेंडर की शुरुआत हुई. इस कैलेंडर को हिज्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने इसी साल अपने साथियों के साथ मक्का को छोड़कर मदीना के लिए हिजरत (पलायन) की थी. इस घटना को 1443 वर्ष हो गए हैं और आज से ही इस्लमा के नए साल यानी सन 1443 का आगाज हो रहा है.
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यौमे आशूरा (Yaum E Ashura)
मोहर्म को शोक का महीना भी कहा जाता है. क्योंकि इस महीने की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. इन्हीं की याद में हर साल 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा मनाया जाता है. यानी इस दिन मुस्लिम समाज के लोग हजरत मोहम्मद शहादत की याद में मातम करते हैं. इस दिन ताजिया भी निकाले जाते हैं और उन्हें कर्बला में दफन किया जाता है. इस साल मुहर्रम 19 अगस्त को मनाया जाएगा.