जगदीप धनखड़ बने देश के 14वें उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति मुर्मू ने दिलाई शपथ
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जगदीप धनखड़ बने देश के 14वें उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति मुर्मू ने दिलाई शपथ

Vice President of India: पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ देश के नए उपराष्ट्रपति बन गए हैं. उन्होंने 6 अगस्त को हुए उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गारेट अलाव को शिकस्त दी थी.

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Vice President of India: जगदीप धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति बन गए हैं. गुरुवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई.
उपराष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, गृह मंत्री मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के साथ ही कई अन्य केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए.

राष्ट्रपति भी रहे शामिल

धनखड़ के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के दौरान देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के साथ-साथ अन्य कई गणमान्य व्यक्ति भी शामिल हुए.

शपथ ग्रहण से पहले पहुंचे राजघाट

शपथ ग्रहण करने से पहले जगदीप धनखड़ ने गुरुवार सुबह राजघाट जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की. धनखड़ ने राजघाट पर बापू को नमन करते और श्रद्धांजलि देते हुए अपनी तस्वीरों और वीडियो को ट्वीट कर लिखा, पूज्य बापू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राजघाट की निर्मल भव्यता में भारत की सेवा में हमेशा तत्पर रहने के लिए अपने आप को धन्य एवं प्रेरित महसूस किया.

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मार्ग्रेट अल्वा को दी थी शिकस्त

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने एनडीए उम्मीदवार के तौर पर विपक्षी दलों की संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हरा कर उपराष्ट्रपति का चुनाव जीता है. धनखड़ ने देश के 14वें उपराष्ट्रपति के तौर पर वेंकैया नायडू की जगह ली है, जिनका कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो गया था.

वपक्ष पर भड़की थीं अल्वा

ख्याल रहे कि 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ था. इसमें जगदीप धनखड़ को 528 वोट मिले थे. धनखड़ की विपक्षी मार्गरेट अल्वा को सिर्फ 182 वोट मिले थे. गिनती में 15 वोट अमान्य करार दिये गए थे. चुनाव में हारने के बाद विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने कहा था कि "यह चुनाव विपक्षी दलों के लिए एक शानदार अवसर की तरह था. उनके पास विपक्षी एकता की ताकत को जाहिर करने का पूरा मौका था. वह बीते हुए कल को पीछे छोड़कर एक-दूसरे के अंदर भरोसा पैदा कर सकते थे. लेकिन दुर्भाग्य से कुछ विपक्षी दलों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का साथ देने का फैसला किया."

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