Jammu Kashmir Election: जम्मू व कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान हो गया है. ऐसे में यहां चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है. इसी के पेशे नजर जमात-ए-इस्लामी संगठन ने चुनाव को लेकर अपनी नीतियों में बड़ा बदलाव किया है. बदलाव के तहत मंगलवार को 37 साल बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया में शामिल होते हुए एक निर्दलीय उम्मीदवार को सपोर्ट करने की बात कही है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पहले भी लड़ा चुनाव
जमात ने 1987 में आखिरी बार मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) के बैनर तले समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन करके विधानसभा चुनाव लड़ा था. उसके बाद से जमात ने जम्मू-कश्मीर में चुनावों का बहिष्कार किया है. इस बीच 1989 में राज्य अलगाववादी हिंसा की चपेट में आ गया था. जमात ने आज आधिकारिक तौर पर शोपियां जिले के जैनपोरा विधानसभा इलाके में एक आजाद उम्मीदवार एजाज अहमद मीर को अपना सपोर्ट दिया है.


इस उम्मीदवार का सपोर्ट
जमात के सीनियर सदस्य शमीम अहमद थोकर ने कुछ पत्रकारों को बताया कि संगठन ने आधिकारिक तौर पर जैनपोरा निर्वाचन इलाके में आजाद उम्मीदवार एजाज अहमद मीर को सपोर्ट किया है. जमात का फैसला धार्मिक-राजनीतिक संगठन की नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है और चुनावी राजनीति में जमात के फिर से प्रवेश से कश्मीर में चुनावी राजनीति की बुनियादी गतिशीलता में बदलाव की उम्मीद है.


यह भी पढ़ें: JK Election: भाजपा ने हटाई 44 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट; 14 मुस्लिमों को दिया था टिकट


मजबूत हैं कैडर
जमात के नेताओं ने पहले भी जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़े हैं. जमात के सीनियर नेता सैयद अली गिलानी, जो बाद में कश्मीर में अलगाववाद के विचारक बन गए, ने उत्तरी कश्मीर के सोपोर विधानसभा सीट का दो बार प्रतिनिधित्व किया है. गिलानी के कश्मीर में अलगाववाद के विचारक बनने के बाद, सोपोर भी घाटी में भारत विरोधी भावना का केंद्र बन गया. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का आखिरी नतीजा जो भी हो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि जमात एक बहुत ही मजबूत कैडर-आधारित संगठन है.


इन पार्टियों को नुकसान
अगर संगठन पर मौजूदा वक्त में प्रतिबंध हटा दिया जाता है, और एक बार जमात सीधे विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला करती है, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) जैसी पारंपरिक राजनीतिक पार्टियों को एक कठिन प्रतिद्वंदी का सामना करना पड़ेगा. यह आम धारणा है कि जमात ने अतीत में अलगाववाद का सपोर्ट किया है. लेकिन यदि गृह मंत्रालय संगठन पर से पाबंदी हटा देता है, तो संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो जमात को चुनावी राजनीति में शामिल होने से रोक सके. 


पूर्व सदस्यों का सपोर्ट नहीं
नाम न बताने की शर्त पर जमात के एक सीनियर सपोर्टर ने हाल ही में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के उस बयान का खंडन किया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि जमात की राजनीति में विचारधारा में बदलाव इस बात से साफ है कि उन्होंने चुनावों में जमात के पूर्व सदस्यों का सपोर्ट करने का फैसला किया है.