Kerala: मरने के बाद भी दो गज़ ज़मीन के लिए होना पड़ा भेदभाव का शिकार; केरल HC पहुंचा मामला
Kerala News: केरल हाईकोर्ट ने केरल सरकार को जांच के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या समुदाय और जाति के आधार पर कब्रिस्तान और श्मशान घाट के लिए अलग-अलग लाइसेंस देने की जरूरत है.
Kerala High Court: केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से इस बात की समीक्षा करने को कहा है कि क्या समुदायों की बुनियाद पर कब्रिस्तान या श्मशान घाटों के लिए अलग-अलग लाइसेंस जारी करते रहने की कोई जरूरत है, और क्या ऐसा करना समानता तथा जीवन के संवैधानिक अधिकारों की खिलाफवर्जी करता है. केरल हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी सार्वजनिक कब्रिस्तान में हर एक इंसान के नश्वर शरीर को बिना किसी भेदभाव के दफन करने की इजाजत दी जानी चाहिए. कोर्ट ने एक गैर सरकारी संगठन (NGO) की तरफ से दायर उस अर्जी का निपटारा करते हुए यह बात कही, जिसमें इल्जाम लगाया गया था कि राज्य के पालक्काड जिले के एक ग्राम पंचायत में वंचित समुदाय के लोगों को एक सार्वजनिक कब्रिस्तान में अपने परिवरजनों को दफन करने की इजाजत नहीं है.
अर्जी के अनुसार, पालक्काड जिले के पुथुर ग्राम पंचायत के पिछड़े चक्किलियन (अनुसूचित जाति) तबके को कब्रिस्तान में जाने की परमिशन नहीं है. इस जाति की एक खातून की बॉडी को अप्रैल 2020 में वहां दफन करने की इजाजत नहीं दी गई थी. इसमें इल्जाम लगाया गया कि दूसरी जातियों के लोगों ने उस महिला के परिवार के लोगों को कथित रूप से धमकी दी और गैर कानूनी तरीके से उन्हें रोका गया. एनजीओ ने अपनी अर्जी में जिला अधिकारियों को चक्किलियन समाज के लोगों की लाशों को पुथुर पंचायत के सार्वजनिक कब्रिस्तान में शांतिपूर्वक दफन करने की इजाजत देने की हिदायत देते हुए अपील की थी.
पालक्काड के उस समय जिला अधिकारी (DC) ने अर्जी की मुखालेफत करते हुए कहा था कि विवादित श्मशान की जमीन निजी थी क्योंकि उसे कुछ स्थानीय निवासियों ने खरीदा था और अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों को दफन करने के लिए एक अलग जगह जगह मौजूद है. जिला अधिकारी ने कहा कि कोविड-19 के डर की वजह से महिला की बॉडी को निजी कब्रिस्तान में दफन करने की इजाजत नहीं दी गई और इसके लिए वहां उम्माथरनपडी होमियो डिस्पेंसरी इलाके के पास एक खाली स्थान ढूंढकर मसले का हल किया गया.
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि कोविड-19 वबा की वजह से उस समय के हालात और मृत्यु दर को देखते हुए, स्थानीय निवासियों द्वारा व्यक्त किये गए अंदेशे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा, सिर्फ एक घटना की बुनियाद पर अदालत यह नहीं कह सकती कि भेदभाव हुआ, हालांकि किसी भी सार्वजनिक कब्रिस्तान में हर एक इंसान के नश्वर शरीर को बिना किसी भेदभाव के दफन करने की इजाजत होनी चाहिए. अदालत ने कहा कि अलग-अलग वैधानिक प्रावधानों के मुताबिक सरकार सार्वजनिक कब्रिस्तान और श्मशान के अलावा समुदायों की बुनियाद पर दफन करने की इजाजत दे सकती है और लाइसेंस जारी करके इसकी परमिशन दी गई है.
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