'आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह', नजीर अकबराबादी के शेर
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'आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह', नजीर अकबराबादी के शेर

Nazeer Akbarabadi Poetry: नजीर अकबराबादी ने लगभग दो लाख रचनायें लिखीं. लेकिन उनकी छह हज़ार के करीब रचनायें मिलती हैं. इन में से 600 के करीब ग़ज़लें हैं. नजीर ने अपनी जिंदगी आगरा में बिताई. उस वक्त इसे अकबराबाद के नाम से जाना जाता है.

'आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह', नजीर अकबराबादी के शेर

Nazeer Akbarabadi Poetry: नज़ीर अकबराबादी का असल नाम वली मुहम्मद था. वह उर्दू के बेहतरीन शायर थे. नजीर को "नज़्म का पिता" कहा जाता है. उन्होंने कई ग़ज़लें लिखी, उनकी सबसे प्रसिद्ध व्यंग्यात्मक नज़्म बंजारानामा है. नज़ीर आम लोगों के कवि थे. उन्होंने आम जिंदगी, मौसम, त्योहारों, फलों, सब्जियों और दूसरे मुद्दों पर लिखा. 

देखेंगे हम इक निगाह उस को 
कुछ होश अगर बजा रहेगा 

ज़माने के हाथों से चारा नहीं है 
ज़माना हमारा तुम्हारा नहीं है 

जिसे मोल लेना हो ले ले ख़ुशी से 
मैं इस वक़्त दोनों जहाँ बेचता हूँ 

दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे 
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं 

बाग़ में लगता नहीं सहरा से घबराता है दिल 
अब कहाँ ले जा के बैठें ऐसे दीवाने को हम 

जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो 
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो 

अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो 
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा 

मय पी के जो गिरता है तो लेते हैं उसे थाम 
नज़रों से गिरा जो उसे फिर किस ने सँभाला 

हम हाल तो कह सकते हैं अपना पर कहें क्या 
जब वो इधर आते हैं तो तन्हा नहीं आते 

ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो 
मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी 

भुला दीं हम ने किताबें कि उस परी-रू के 
किताबी चेहरे के आगे किताब है क्या चीज़ 

आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह 
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी

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