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'तुझ तक आते हुए ख़ुदा तक पहुँच गए हैं', अब्बास ताबिश के शेर

Abbas Tabish Poetry: अब्बास ताबिश इस दौर के सबसे बड़े शायरों में शुमार होते हैं. अक्सर मुशायरों में उनको बुलाया जाता है. अब्बास ताबिश की किताब 'रक़्स जारी है' बहुत मशहूर है.

बाप

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बाप

मुद्दत के बाद ख़्वाब में आया था मेरा बाप  और उस ने मुझ से इतना कहा ख़ुश रहा करो 

बर्दाश्त

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बर्दाश्त

तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करे  बार बार एक ही चेहरा नहीं देखा जाता 

तअल्लुक

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तअल्लुक

हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस  जो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं 

किरदार

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किरदार

ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन  लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं 

इश्क

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इश्क

इश्क़ कर के भी खुल नहीं पाया  तेरा मेरा मुआमला क्या है 

वफादार

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वफादार

जिस से पूछें तिरे बारे में यही कहता है  ख़ूबसूरत है वफ़ादार नहीं हो सकता 

घर

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घर

घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा  हम तिरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं 

मां

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मां

एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'  मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है 

मोड़

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मोड़

बस एक मोड़ मिरी ज़िंदगी में आया था  फिर इस के बाद उलझती गई कहानी मेरी 

गुमराही

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गुमराही

तिरी मोहब्बत में गुमरही का अजब नशा था  कि तुझ तक आते हुए ख़ुदा तक पहुँच गए हैं