Rahul Dravid: राहुल द्रविड़ से जुड़ी एक खबर आने के बाद क्रिकेट फैंस उनकी तारीफ करते दिख रहे हैं. द्रविड़ ने कई बार अपनी निस्वार्थ शैली के लिए काफी तारीफें बटोरी हैं. क्रिकेट वर्ल्ड में राहुल द्रविड़ की पहचान अपने खेल के दिनों से एक बेहतरी प्लेयर के साथ-साथ एक अच्छे इंसान के तौर पर भी है. बतौर, कोच भी उनका सफर शानदार रहा है. चाहे खिलाड़ी युवा हो या एक्सपीरियंस हर कोई उनकी पर्सनैलिटी की सराहना करता है. अपनी निस्वार्थ शैली का ताजा उदाहरण पेश करते हुए द्रविड़ ने एक और मिसाल कायम की है.


बीसीसीआई से लिया आधा बोनस


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राहुल द्रविड़ के टेन्योर के दौरान उनकी कोचिंग में टीम इंडिया ने तीन ICC फाइनल खेले. दो बार बेहद करीब से ट्रॉफी से चूकने के बाद आखिरकार टीम इंडिया ने टी20 विश्व कप 2024 जीतकर अपने कोच को यादगार विदाई दी. इस खुशी के मौके पर बीसीसीआई के जरिए टी20 वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम इंडिया के लिए ऐलान किए गए 125 करोड़ रुपये में से 5 करोड़ रुपये की विजेता टीम के मुख्य कोच यानी राहुल द्रविड़ को देने का ऐलान किया. लेकिन, द्रविड़ ने इन पैसों का आधा हिस्सा छोड़ने का फैसला किया.


किसको कितना मिलने वाला था पैसा


पैसों को बांटने के फार्मूले के मुताबिक, मुख्य कोच द्रविड़ और टीम के सभी 15 सदस्यों को 5-5 करोड़ रुपए मिलने थे. जबकि बल्लेबाजी कोच विक्रम राठौर, फील्डिंग कोच टी. दिलीप और गेंदबाजी कोच पारस महाम्ब्रे सहित अन्य सहयोगी स्टाफ को 2.5-2.5 करोड़ रुपए मिलने थे. हालांकि, द्रविड़ ने अन्य सहयोगी स्टाफ को दिए जाने वाले इनाम के साथ अपने बोनस में 2.5 करोड़ रुपए लेने से इनकार कर दिया.


बीसीसीआई के एक सूत्र ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "राहुल अपने सहयोगी स्टाफ (गेंदबाजी कोच पारस महाम्ब्रे, फील्डिंग कोच टी.दिलीप और बल्लेबाजी कोच विक्रम राठौर) के बराबर ही बोनस राशि (2.5 करोड़ रुपए) चाहते थे. हम उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं."


यह पहला मौका नहीं है जब द्रविड़ ने प्राइज के बराबर बटने में ऐसा रुख अपनाया है. 2018 में भारत की विजयी अंडर-19 विश्व कप टीम के मुख्य कोच के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान द्रविड़ ने ऐसा ही कुछ किया था. उस समय द्रविड़ को 50 लाख रुपये मिलने थे, जबकि सहयोगी स्टाफ के अन्य सदस्यों को 20-20 लाख रुपये मिलने वाले थे. ऐसे में द्रविड़ ने इस तरह के विभाजन से इनकार कर दिया, जिससे बीसीसीआई को इस बोनस में थोड़ा बदलाव करना पड़ा और सभी को समान रूप से पुरस्कृत करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.