Supreme Court on CAA: सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है जिनमें ये मांग की गई है कि CAA के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई तक इसके क्रियानवयन पर रोक लगाई जाए.
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Supreme Court on CAA: सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम CAA के खिलाफ कुछ अर्जियां दाखिल की गईं. इन अर्जियों में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन नियमावली पर रोक लगाए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दूसरी याचिकाएं दाखिल की गईं हैं, जिनमें ये मांग की गई है कि जब तक CAA को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निस्तारण नहीं होता तब तक सुप्रीम कोर्ट CAA के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दे. इस पर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. सुप्रीम कोर्ट इन अर्जियों पर 19 मार्च को सुनवाई करेगा.
SC ने किया गौर
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल की इन दलीलों पर गौर किया कि विस्थापित हिंदुओं को नागरिकता दिए जाने के बाद उसे वापस नहीं लिया जा सकता है और इसलिए इन मुद्दों पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है. सिब्बल ने कहा, "CAA 2019 में पारित किया गया था. उस समय कोई नियम नहीं थे और इसलिए, कोई स्थगन आदेश नहीं दिया गया था. अब सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले नियमों को अधिसूचित किया है. यदि नागरिकता दी गई तो इसे वापस लेना असंभव होगा. इसलिए अंतरिम अर्जी पर सुनवाई हो सकती है."
237 याचिकाएं लंबित
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, "किसी भी याचिकाकर्ता के पास नागरिकता प्रदान करने पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है." मेहता ने साथ ही कहा कि CAA के खिलाफ 237 याचिकाएं लंबित हैं और उनमें से चार अंतरिम आवेदन दायर कर नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.
190 मामलों पर सुनवाई
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, "हम मंगलवार को इस पर सुनवाई करेंगे. 190 से अधिक मामले हैं. उन सभी पर सुनवाई की जाएगी. हम अंतरिम याचिकाओं के पूरे बैच की सुनवाई करेंगे." केरल में मुख्य रूप से सक्रिय पार्टी IUML और तीन अन्य याचिकाकर्ताओं ने केंद्र की तरफ से संशोधित नागरिकता अधिनियम, 2019 को लागू करने के बाद अंतरिम याचिका दायर की है. अधिनियम के संसद में पारित होने के करीब चार साल बाद गैर-दस्तावेजी लोगों को तेजी से नागरिकता देने के लिए नियमों को अधिसूचित किया गया है. इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए गैर-मुस्लिम को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
कार्रवाई पर रोक की गुजारिश
IUML की तरफ से दायर आवेदन में अदालत से यह सुनिश्चित करने के लिए गुजारिश की गई है कि रिट याचिकाओं पर फैसला आने तक मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए. मुस्लिम CAA के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं. इसमें शीर्ष अदालत से आग्रह किया गया है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी नागरिकता के लिए आवेदन करने की अस्थायी अनुमति दी जाए और उनकी पात्रता पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए.
धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ CAA
IUML ने अपनी याचिका में ही कहा था कि वह आप्रवासियों को नागरिकता देने के खिलाफ नहीं है. याचिका में कहा गया, "हालांकि, स्थिति यह है कि यह एक ऐसा कानून है जो एक धर्म के बहिष्कार पर आधारित है. चूंकि सीएए धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर हमला करता है, जो संविधान की मूल संरचना है."