ZeeSalaam Independence Day: भारतीय इतिहास में 15 अगस्त 1947 एक बड़ा दिन माना जाता है. क्योंकि 15 अगस्त 1947 को ही आज़ादी मिली थी. इसी दिन भारत ब्रिटिश हुक़ूमत से आज़ाद हुआ था. उसी दिन से 15 अगस्त को आज़ादी के जश्न के रूप में मनाया जाता है. ये आज भी हर भारतीय के लिए गर्व की बात है कि वह आज़ाद भारत में चैन की सांस ले रहे है. इस साल भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मनाने जा रहा है. ये भारतीय इतिहास का भी सबसे अहम दिन है. भारत ने अपनी आज़ादी पाने के लिए करीब 200 साल तक जद्दोजहद की थी. भारत की आज़ादी के लिए बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों (Freedom Fighters) ने अपनी जान की क़ुर्बानी दी थी. लाख कोशिशों और मेहनत के बाद आखिरकार भारत ब्रिटिश हुक़ूमत के चुंगल से आज़ाद हो ही गया. लेकिन ये इतना आसान नहीं था इसके लिए कई फ्रीडम फाइटर्स ने अपनी पूरी ज़िंदगी इसीके नाम कर दी थी. जिनमें से एक हैं महात्मा गांधी. देश-दुनिया में जब भी भारत की आज़ादी का ज़िक्र किया जाता है तो महात्मा गांधी का नाम ज़रूर याद किया जाता है. गांधी एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने भारत को आज़ाद कराने में अहम क़िरदार अदा किया था।


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आज़ादी के जश्न में शामिल नहीं थे गांधी


उस वक़्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आज़ाद भारत में देश की राजधानी दिल्ली में स्थित लाल किले पर तिरंगा फहराया और अपना पहला सार्वजनिक भाषण देकर इस दिन का आग़ाज़ किया था. लेकिन ग़ौरतलब है कि जिस दिन पूरा मुल्क आज़ादी के जश्न में डूबा हुआ था.उस वक़्त महात्मा गांधी कहां थे? लंबे अरसे से आज़ादी का इंतज़ार करने वाले महात्मा गांधी लाल किले पर हो रहे आज़ादी के जश्न में शामिल क्यों नहीं हुए थे? आखिर महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 के दिन कहां थे? 


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आज़ादी के जश्न में गांधी के शामिल ना होने की ये थी वजह


दरअसल, महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 के दिन बंगाल के नोआखली में मौजूद थे. जहां वे हिंदू-मुस्लमानों के बीच चल रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए भूखहड़ताल पर बैठे थे. एक तरफ जहां पूरा मुल्क आज़ादी के जश्न में शामिल था. वहीं दूसरी ओर आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले गांधी जी अनशन पर बैठे थे. ऐसा नहीं थी कि महात्मा गांधी को न्यौता नहीं दिया गया था. दिल्ली में मनाए जाने वाले स्वत्रंता दिवस के जश्न में शामिल होने के लिए जवाहार लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एक साथ मिलकर महात्मा गांधी को ख़त भी लिखा था. लेकिन इसके बाद भी महात्मा गांधी नहीं आए थे. बता दें कि गांधी उस समय बंगाल में हिंदू-मुस्लिम समुदाय में बंटवारे की लगी आग को शांत करने की कोशिश में लगे हुए थे. जहां उन्होंने ये भी कहा था कि "मेरे लिए आज़ादी के ऐलान के मुकाबले में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अमन कायम करना ज़्यादा अहम है।"


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