Sri Lanka Economic Crisis: इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे श्रीलंका में राजनीतिक व आर्थिक स्थिरता की कुछ उम्मीद पैदा होने लगी है, राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने आज यूएनपी नेता रनिल विक्रमासिंघे को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. इससे पहले भी चार दफा देश के प्रधानमंत्री रहे चुके विक्रमासिंघ अंतरिम सरकार का गठन करेंगे. गुजिश्ता शाम ही विक्रमासिंघे की राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे से मुलाकात हुई थी.  मीटिंग के दौरान ही प्रेसिडेंट राजपक्षे ने उनके सामने अंतरिम सरकार बनाने का प्रस्ताव पेश किया था.


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रनिल विक्रमासिंघे के सामने बड़ी चुनौतियां
रनिल विक्रामासिंघे ने श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण कर लिया है. शपथ ग्रहण के बाद विक्रमासिंघे ने कोलम्बो स्थित  वालुकर्मा मंदिर का दर्शन किया. उम्मीद है भगवान से उन्होंने प्रार्थना की होगी कि श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारे. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है देश को आर्थिक संकट से निकालना. श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालना उतना आसान नहीं है.


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सरकार के लिए लोगों का विश्वास जीत पाना अहम पड़ाव साबित होगा. श्रीलंका में जारी हिंसा तभी थम सकेगी जब लोगों को अपनी सरकार पर भरोसा होगा. लोगों का भरोसा जीत कर ही श्रीलंका में स्थिरता आ सकती है और हिंसा थम सकती है. उसके बाद सरकार के लिए बड़ा चैलेंज होगा महंगाई की मार से परेशान जनता को राहत देना. यह काम भी उतना आसान नहीं होगा क्योंकि बेहद जरूरी आटा, दाल, सब्जी की कीमत हजारों में पहुंच चुकी है. कीमतें इतनी बढ़ चुकी हैं कि लोग सामान के लिए लूटपाट कर रहे हैं. ऐसे में उनके लिए कीमतों को आसमान से जमीन पर उतारना आसान नहीं होगा.  जानकारों की मानें तो श्रीलंका के इस हालत में पहुंचने की वजह जरूरत से ज्यादा कर्ज लेना है. कोरोना संकट के बीच श्रीलंका ने चीन से लगातार कर्ज लिया. सरकार की कुछ नीतियों ने आग में घी का काम किया. जिससे देश में आर्थिक संकट और बढ़ गया. ऐसे में अगर सरकार का आईएमएफ के साथ समझौता सही दिशा में आगे बढ़ता है तो राहत की उम्मीद की जा सकती है. विक्रमासिंघे के लिए आईएमएफ के साथ सकारात्मक बातचीत भी एक चैलेंज है. हालांकि आईएमएफ कह चुका है कि श्रीलंका में  नई सरकार बनते ही श्रींलका को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए नीतिगत मामलों पर चर्चा की शुरुआत की जाएगी. विक्रमासिंघे के जानने वाले बताते हैं कि 4 बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे विक्रमासिंघे के पास अच्छा खासा अनुभव है. उपरोक्त चुनौतियों से लड़ाई में यह अनुभव उनके काफी काम आ सकता है.


कैसी होगी नई सरकार ?
सूत्रों के मुताबिक शपथ ग्रहण से पहले जब विक्रामासिंघे प्रेसिडेंट गोतबया राजपक्षे से मुलाकात कर रहे थे उस समय उन्होंने प्रदर्शनकारियों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखने की इजाजत देने की अपील की थी. कल शाम एक घंटे तक चली मीटिंग के दौरान दोनों के बीच देश को आर्थिक संकट से निकलने की रणनीति पर भी चर्चा हुई.सूत्रों की मानें तो अब सबसे पहले अंतरिम सरकार का गठन होगा. जो भी पार्टियां सरकार में शामिल होना चाहती हैं उन्हें कैबिनेट में जगह दी जाएगी.


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सजिथ प्रेमदासा को मिला था प्रधानमंत्री बनने का मौका
आपको बता दें कि इससे पहले राष्ट्रपति गोतबाया ने विपक्ष के नेता और एसजेबी प्रमुख सजिथ प्रेमदासा को प्रधानमंत्री बनने के लिए आमंत्रित किया था. लेकिन उन्होने पद संभालने से पहले प्रेसिडेंट राजपक्षे के इस्तीफे की शर्त रख दी थी. उनकी इस शर्त को लेकर पार्टी में मतभेद पैदा हो गया था. पार्टी में बहुत से लोगों का मानना था कि शर्त रखने के बजाए उन्हे ये पेशकश मान लेनी चाहिए थी. सजिथ प्रेमदासा के  फैसले के खिलाफ पार्टी के एक एमपी हरिन फर्नांडो ने पार्टी छोड़ने का भी एलान कर दिया. उनका कहना था कि देश नाजुक दौर से गुजर रहा है और देश में स्थिरता के लिए उन्हें पेशकश कबूल करनी चाहिए थी. विक्रमासिंघे के प्रधानमंत्री बनने की खबर फैलने के साथ ही एसजेबी ने कुछ शर्तों के साथ सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है. पार्टी ने एक समय के बाद गोतबाया के इस्तीफे,सरकारी कामकाज में दखल न देने समेत कई शर्तें रखी हैं.


श्रीलंका की उम्मीद भरी निगाहें भारत की तरफ भी उठी हुई हैं. रनिल विक्रमासिंघे को भारत का करीबी भी माना जा रहा है. भारत भी श्रीलंका की मदद के लिए आगे आ सकता है. कुल मिलाकर श्रीलंका में नई सरकार के गठन के साथ हालात में सुधार की उम्मीद की जा सकती है.


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