नवी दिल्ली : माजी पंतप्रधान अटल बिहारी वाजपेयी यांची प्रकृती चिंताजनक आहे. त्यांच्या प्रकृतीत सुधारणा यावी म्हणून देशभरात प्रार्थना सुरु आहेत. त्यांना लाईफ सपोर्ट सिस्टमवर ठेवण्यात आलं आहे. 11 जूनपासून माजी पंतप्रधान वाजपेयी यांच्यावर दिल्लीच्या एम्स रुग्णालयात उपचार सुरु आहेत. गेल्या 24 तासात त्यांची प्रकृती खालावली आहे.


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एक नेता म्हणून ते खूपच लोकप्रिय आहेत. त्यांना जेवढं प्रेम मिळालं तेवढंच प्रेम त्यांच्या कवितांना देखील मिळालं. त्यांच्या कविता वाचून अनेकांचा आपल्या जीवनाकडे पाहण्याचा दृष्टीकोनच बदलला. ते नेहमी त्यांच्या भाषणामध्ये कविता बोलून दाखवायचे. त्यांच्या अनेक कविता लोकांच्या मनात घर करुन राहायच्या. आज ही त्यांच्या कवितांना अनेकांची पसंती मिळते.


वाजपेयींच्या 5 लोकप्रिय कविता 


1- मौत से ठन गई!


जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड पर मिलेंगे इसका वादा न था,


रास्ता रोक कर वह खडी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बडी हो गई।


मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।


मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?


तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।


मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।


बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।


प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।


हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।


आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।


पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।


मौत से ठन गई।



2- बाधाएं आती हैं आएं


घिरें प्रलय की घोर घटाएं,


पावों के नीचे अंगारे,


सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,


निज हाथों में हंसते-हंसते,


आग लगाकर जलना होगा।


कदम मिलाकर चलना होगा।


हास्य-रूदन में, तूफानों में,


अगर असंख्यक बलिदानों में,


उद्यानों में, वीरानों में,


अपमानों में, सम्मानों में,


उन्नत मस्तक, उभरा सीना,


पीड़ाओं में पलना होगा।


कदम मिलाकर चलना होगा।


उजियारे में, अंधकार में,


कल कहार में, बीच धार में,


घोर घृणा में, पूत प्यार में,


क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,


जीवन के शत-शत आकर्षक,


अरमानों को ढलना होगा।


कदम मिलाकर चलना होगा।


सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,


प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,


सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,


असफल, सफल समान मनोरथ,


सब कुछ देकर कुछ न मांगते,


पावस बनकर ढलना होगा।


कदम मिलाकर चलना होगा।


कुछ कांटों से सज्जित जीवन,


प्रखर प्यार से वंचित यौवन,


नीरवता से मुखरित मधुबन,


परहित अर्पित अपना तन-मन,


जीवन को शत-शत आहुति में,


जलना होगा, गलना होगा।


क़दम मिलाकर चलना होगा।


3- बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं


टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं


गीत नहीं गाता हूं


लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर


अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं


गीत नहीं गाता हूं


पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद


मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं


गीत नहीं गाता हूं


-दूसरी अनुभूति


गीत नया गाता हूं


टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर


पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर


झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात


प्राची में अरुणिम की रेख देख पता हूं


गीत नया गाता हूं


टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी


अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी


हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,


काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं


गीत नया गाता हूं


 
4- दूध में दरार पड़ गई


खून क्यों सफेद हो गया?


भेद में अभेद खो गया।


बंट गये शहीद, गीत कट गए,


कलेजे में कटार दड़ गई।


दूध में दरार पड़ गई।


खेतों में बारूदी गंध,


टूट गये नानक के छंद


सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।


वसंत से बहार झड़ गई


दूध में दरार पड़ गई.


अपनी ही छाया से बैर,


गले लगने लगे हैं ग़ैर,


ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।


बात बनाएं, बिगड़ गई।


दूध में दरार पड़ गई।


5- एक बरस बीत गया


झुलासाता जेठ मास


शरद चांदनी उदास


सिसकी भरते सावन का


अंतर्घट रीत गया


एक बरस बीत गया


सीकचों मे सिमटा जग


किंतु विकल प्राण विहग


धरती से अम्बर तक


गूंज मुक्ति गीत गया


एक बरस बीत गया


पथ निहारते नयन


गिनते दिन पल छिन


लौट कभी आएगा


मन का जो मीत गया


एक बरस बीत गया