EXCLUSIVE: अपने बच्चों से क्यों झूठ बोलते रहे संजय दत्त, कहा- मेरा बेटा मेरे जैसा न बने
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EXCLUSIVE: अपने बच्चों से क्यों झूठ बोलते रहे संजय दत्त, कहा- मेरा बेटा मेरे जैसा न बने

संजय दत्त ने हर सवालों का जवाब बहुत ही ईमानदारी के साथ दिया, चाहे वह सवाल 1993 बम धमाके से जुड़ी हो या फिर उनके निजी जीवन में आए भूकंप की हो. 

संजय दत्त नहीं चाहते थे कि उनके बच्चों को यह बता चले कि वह जेल में हैं.

नई दिल्ली: मुंबई में 1993 में सीरियल बम धमाकों के बाद संजय दत्त पर अवैध हथियार रखने का दाग लगा था और उन्हें इस अपराध के लिए सजा भी हुई थी, लेकिन दुनिया यह जानना चाहती थr कि आखिरकार संजय दत्त और हथियारों का सच क्या है? और पहली बार संजय दत्त ने उन हथियारों की पूरी सच्चाई बताई है. उन्होंने अपने जेल के दिनों के बारे में भी बात की और यह भी बताया कि वह क्यों नहीं चाहते थे कि उनके बच्चों को यह पता चले कि वह जेल में हैं. जेल से रिहा होने के बाद Zee News के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी के साथ संजय दत्त का यह सबसे धमाकेदार इंटरव्यू है, जहां संजय दत्त ने हर सवालों का जवाब बहुत ही ईमानदारी के साथ दिया, चाहे वह सवाल 1993 बम धमाके से जुड़ी हो या फिर उनके निजी जीवन में आए भूकंप की हो. 

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सवाल: क्या चल रहा है लाइफ में?
जवाब:
आजादी कितनी खास चीज होती है, जिसका कई लोगों को एहसास नहीं होता और यह एक ऐसी चीज है जो सबके पास है. जब यह छीनी जाती है, तब एहसास होता है कि कोई पैसा भी उसे नहीं खरीद सकता. इसलिए मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि इतने सालों से जो मुकदमा चलता आ रहा था, अब हो खत्म हो गई है. जेल से रिहा होने के बाद मैंने बहुत टाइम अपने बच्चों के साथ बिताया, अपने वाइफ के साथ और अपनी फैमली के साथ, मेरी बहनों के साथ.

सवाल: जेल से बाहर आने के बाद जब पहली बार कैमरे के सामने आए तो कैसा लगा?
जवाब:
मेरे लिए वह एक बहुत ही इमोशनल दिन था, जब शूटिंग का पहला दिन आगरा में था, और मैंने उमंग कुमार से रिक्वेस्ट की कि आज पहला दिन तो लाइट सीन रख देना. होटल से लेकर शूटिंग के सेट तक मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कैसे रिएक्ट करूं, लेकिन जब सेट के अंदर गया तो सभी ने तालियां मारी और सभी ने कहा बाबा वेलकम. उसके बाद लाइटें, कैमरा सब देखकर मैं बहुत इमोशनल हो गया. फिर मैंने उमंग से 10 मिनट मांगा और अकेले मैं बेटे मां-पिता के बारे में सोचा और सबसे प्रार्थना की, भगवान का शुक्रिया अदा किया.   

सवाल: कभी गिल्टी फील करते हैं?
जवाब:
जी, कभी-कभी गिल्टी जरूर फील करता हूं. इंसान को दिल से ही नहीं सोचना चाहिए दिमाग का भी इस्तेमाल करना ही पड़ता है, लेकिन मैं हमेशा ही दिल से सोचा हूं, और इसी वजह से इतनी तकलीफों से गुजरा हूं. देखा जाए तो एक दिल वाला आदमी हूं मैं. मुझे ऐसा लगता है कि मैंने अपने पिता को तकलीफ दी है, और यह भी सोचता हूं कि कहीं मेरा बेटा मेरे जैसा न बन जाए.

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सवाल: जेल में जान के बाद अपने आपको को संभालने में आपको कितना वक्त लगा?
जवाब:
पहले दो महीने मैं बहुत परेशान था फिर उसके बाद अपने आपको संभाल लिया. मैंने फिर यह सोचा कि भगवान ने इतना वक्त दिया है मुझे तो क्यों नहीं इसे पॉजिटिव तरीके से इस्तेमाल किया जाए. मैं बहुत बड़ा शिव भक्त हूं, मेरे लिए भोलेनाथ सब कुछ हैं. जेल में मैंने भगवत गीता पढ़ी, महाभारत, शिव पुराण, गणेश पुराण ये सब मैंने पढ़ा है. उम्मीद एक इतनी बड़ी चीज होती है, जो हर इंसान उम्मीद पर जीता है. उसको अगर कट कर दो तो फिर सब हासिल हो जाता है. ये मैंने जेल में रह कर सीखा. जैसे- किसी से मुलाकात.. नहीं आए तो नहीं आए.., काश सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आ जाए ताकि मैं जल्दी निकल जाऊं.. ये सब मैंने सोचना बंद कर दिया था. उम्मीद ही खत्म कर दी थी. और कब मैं जेल से बाहर निकला मुझे समझ ही नहीं आई.      

सवाल: पेरोल पर जब आप बाहर जाते थे तो बहुत कंट्रोवर्सी होती थी, ये सब आपने कैसे मैनेज किया?
जवाब:
जेल मेन्युअल कहता है कि साल में हर कैदी को एक पेरोल मिलता है और दो टाइम फर्लो मिलता है और मेरा जो नंबर था उसी नंबर पर मुझे पेरोल और फर्लो मिला है, न कि मुझे अलग से ये सब मिला. रोज 50-60 कैदी बाहर निकलते हैं और 50-60 रोज वापस आते हैं. तो यह मेरे साथ नहीं था. ये सबके साथ ऐसा ही था. औरों की तरह फर्लो मेरे लिए भी आसान नहीं था, मुझे भी प्रोसेस के जरिए ही यह मिल पाता था, जिसमें 6 से 8 महीने लगते हैं. 

सवाल: आपके व्यवहार के कारण आपकी सजा जल्दी समाप्त हो गई, क्या आपको अभी भी डर लगता है कि कब आपका इससे पीछा छूटेगा?
जवाब:
मुझे डर नहीं लगता, क्योंकि जो मेरे साथ हुआ है वह सारे कैदियों के साथ होता है. वहां, अगर आप काम करते हो, तो वहां सात दिन की माफी महीने मिल जाती है.. मुझे ही नहीं, हर कैदी को. 

सवाल: आपके बच्चे आपकी जर्नी को कैसे देखते हैं?
जवाब:
जब मैं जेल गया था तो मेरी बेटी 2 साल की थी. तो इतनी उनको मेमोरी नहीं है, लेकिन मैंने अपनी वाइफ को बोला था कि कभी भी उनको मेरे पास मुलाकात के लिए लेकर मत आना, क्योंकि मैं कभी यह नहीं चाहता कि मेरे बच्चे मुझे कैदी की ड्रेस में और टोपी में कभी देखे. लेकिन जब थोड़े से बड़े हो गए, तो फिर वह अपनी मां से पूछते थे कि पापा कहां है? तो उन्हें यह बताया जाता था कि पापा पहाड़ के ऊपर शूटिंग कर रहे हैं, तो वहां नेटवर्क नहीं है. तो जेल मैं मुझे महीने में दो बार मुझे फोन करने की अनुमति दे दी गई थी. मैं 15 दिन में एक बार कॉल करता था और कहता था कि मैं अभी पहाड़ से नीचे आया हूं नेटवर्क में और फिर 15 दिन के लिए शूटिंग करने के लिए पहाड़ पर जा रहा हूं, लेकिन अभी वे 6-7 साल के हो गए हैं, तो मुझसे अभी उन्होंने पूछा कि आप जेल में थे क्या? तो मैंने अपने हिसाब से उन्हें समझाया, मैंने कहा कि हां था, लेकिन तुम जब बड़े होगे तो तुम्हे बैठाकर मैं समझाउंगा अपनी कहानी.  

सवाल: जो कुछ आपकी जीवन यात्रा रही है, क्या वह वाकई में आपके बॉयोपिक में दिखाया जाएगा?
सवाल:
मैंने राजू के साथ बहुत दिनों तक बैठा हूं और उन्होंने रिकॉर्ड किया है. जो भी मुझे याद था. तीन घंटे में मेरी पूरी लाइफ तो नहीं दिखाई जाएगी, लेकिन यह जरूर है कि यह जो कहानी है उसमें एक पैसा भी छूट नहीं है. यह कहानी वही है चाहे वह अच्छा है या पूरा है, गलतियां हैं, दत्त साहब हैं, सब है. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो मुझे ग्लोरिफाई कर रहे हैं. मैंने राजू से भी कहा है कि जो सही है आप वही दिखाएं. मेरी बॉयोपिक में मेरी कमजोरियां भी दिखाई जाएगी है. 

सवाल: 1993 में आप कोई छोटे बच्चे नहीं, फिर आप हथियार रखने के लिए तैयार हो गए?
जवाब: मुझे मेरा कंफेसन दिया गया और कहा गया कि साइन कर. मैंने लिखा नहीं था अपने हाथों से. अगर आप एक्चुअल कंफेसन देखेंगे तो उसमें मेरा साइन भी नहीं है. न ही मैंने कोई ऐसी बात बोली थी और न ही ऐसा कुछ हुआ था. दूसरी बात यह साबित नहीं हो सका कि मेरे पास हथियार थी या नहीं थी, आपने एक कागज के टुकड़े के बेसिस पर मुझे पांच साल की सजा सुना दी. आपने जब मरे घर पर रेड किया तो आपको हथियार क्यों नहीं मिला? आपको एक स्प्रिंग और एक रोड मिला और पंचनामा में जो स्प्रिंग 6 इंज का था और रोड 12 इंज की थी, वो कोर्ट के सामने जब दिखाया गया तो वह स्प्रिंग 6 इंज से 3 इंज हो गया और रोड 12 इंज से 5 इंज हो गया. तो ये मैंने कभी सुना ही नहीं कि इनते सालों में लोहा कम हो जाता है. उस टाइम पर हम कुछ बोल नहीं पाते थे. आप जानते हो कि महौल क्या था और क्या नहीं था. क्या हो रहा था, लेकिन यह एक डिबेट जैसा रह जाएगा कि इसके पास था या नहीं था, क्योंकि अगर मैं आपको बोलता हूं कि आपने यह पेन चुराया है तो कुछ तो इन पेन का हिस्सा मिलना चाहिए या नहीं मिलना चाहिए.

सवाल: आज आप क्या कहना चाहते हैं?
जवाब: मेरे से गलती हुई, मैंने एक हथियार रखा था और इस गलती की सजा मैं काट चुका हूं. यह गलती कभी नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन उस वक्त का माहौल बहुत खराब था और ये सब मैंने अपने फैमिली के लिए किया और मेरे हिसाब से हिन्दुस्तान का कोई भी लड़का अपनी फैमिली के लिए कुछ भी करेगा. मैंने यह सोचा थी कि जब आजाद हो जाउंगा तो मैं अपने पिता का पिंडदान जरूर करूंगा और यह बहुत अच्छा मौका रहा कि बनारस घाट पर मैंने पिंडदान किया, श्राद्ध की पूजा की और एक कमाल की बात है कि सब वहां बैठे हुए थे और जैसे ही पूजा शुरू हुई वैसे ही बारिस शुरू हो गई, तो सब ने यही कहा कि दत्त साहेब का आशीर्वाद तुझे मिल गया है. और मैंने उनसे यही प्रार्थना की कि आज आप बहुत खुश होंगे कि आपका बेटा आजाद हो गया है. और इतने दिनों से मैंने पिंडदान नहीं किया तो उसके लिए मुझे माफ कर दीजिए.

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