Sunny Deol: जिस नाटक पर बन रही सनी देओल की लाहौर 1947, जानिए पाकिस्तान में क्यों हुआ बैन
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Sunny Deol: जिस नाटक पर बन रही सनी देओल की लाहौर 1947, जानिए पाकिस्तान में क्यों हुआ बैन

Lahore 1947: सनी देओल की अगली फिल्म जिस नाटक पर बन रही है, वह साहित्यिक और रंगमंच की दुनिया में बहुत प्रसिद्ध है. संसार भर में इसके सैकड़ों शो हो चुके हैं. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा पाकिस्तान में इस नाटक को बैन कर दिया गया...

 

Sunny Deol: जिस नाटक पर बन रही सनी देओल की लाहौर 1947, जानिए पाकिस्तान में क्यों हुआ बैन

Sunny Deol Next Film: सनी देओल की अगली फिल्म तय हो गई है. गदर 2 (Gadar 2) के बाद वह निर्देशक राजकुमार संतोषी (Rajkumar Santoshi) की फिल्म लाहौर 1947 में नजर आएंगे. फिल्म की शूटिंग अगले साल जनवरी में शुरू होने जा रही है. खास बात यह कि फिल्म का निर्माण आमिर खान (Aamir Khan) की कंपनी कर रही है. लाहौर 1947 हिंदी के प्रसिद्ध लेखक असगर वजाहत (Asgar Wajahat) के नाटक जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जनम्याई नई पर आधारित होगी. संतोषी बीते डेढ़ दशक से इस फिल्म को बनाने की कोशशि में थे, मगर अब जाकर उन्हें कामयाबी मिल रही है. असगर वजाहत ने यह नाटक करीब 35 साल पहले लिखा था.

ऐसी है कहानी
जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जनम्याई नई का दुनिया के कई देशों में मंचन हो चुका है, लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि लाहौर (Lahore) की इस कहानी पर पाकिस्तान (Pakistan) ने बैन लगा रखा है. कोई डेढ़-दो दशक पहले कराची में इस नाटक का मंचन हुआ था और उसके बाद इसे बैन कर दिया गया था. इस नाटक की कहानी 1947 में देश के बंटवारे के बाद के लाहौर की है. कहानी में विभाजन के बाद एक मुस्लिम परिवार लखनऊ से लाहौर जाता है. वहां उसे एक बड़ा मकान एलॉट होता है. परिवार जब मकान में पहुंचता है तो देखता हैं कि हिंदुओं के परिवार की एक बूढ़ी औरत वहां रह गई है. वह औरत मकान पर अपना हक जताती है, तो मुस्लिम परिवार को लगता है कि जब तक यह रहेगी मकान हमारा नहीं हो सकता. यहां कहानी में संघर्ष शुरू होता है.

आगे की बात
बूढ़ी औरत उस मकान से हटती नहीं और धीरे-धीरे उसके और वहां रहने आए परिवार के बीच रिश्ता बनने लगता है. जब गुंडों को पता चलता है तो कि हिंदू बुढ़िया रह गई है तो वे उसे निकालने की कोशिश करते हैं. लेकिन लखनऊ से आया परिवार उसे बचाता है. बूढ़ी औरत के मरने पर सवाल उठता है कि इसका क्रिया कर्म कैसे किया जाए. तब वहां के मौलवी की राय पर उसका अंतिम संस्कार हिंदू रीति से किया जाता है. रावी के किनारे उसका शव जला देते हैं. इससे नाराज गुंडे मौलवी की हत्या कर देते हैं.

लग गया बैन
पाकिस्तान में जब यह नाटक हुआ था तो दर्शकों ने बहुत पसंद किया था. मीडिया में इसकी तारीफ हुई थी. मगर पुलिस कमिश्नर को यह पसंद नहीं आया. उनका कहना था कि अंत में गुंडों के हाथों मौलवी की हत्या दिखाने से पाकिस्तान और इस्लाम की छवि खराब होती है. इसके बाद इस नाटक पर वहां प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि असगर वजाहत का कहना है कि उन्हें समस्या इस बात से भी थी कि यह नाटक एक भारतीय ने लिखा था.

 

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