छ्ठ के दूसरे दिन खरना पर महिलाएं दिनभर उपवास करती हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद सूर्य देव को गुड़ की खीर-पूरी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाती हैं.
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नई दिल्ली: बिहार, यूपी और देश के कई हिस्सों में मनाया जाने वाला महापर्व छ्ठ 11 नवंबर से शुरू हो चुका है. इस त्योहार का आज दूसरा दिन खरना तिथि के रूप में मनाया जा रहा है. इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास करती हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद सूर्य देव को गुड़ की खीर-पूरी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाती हैं. छठी मइया को केले के पत्ते पर प्रसाद चढ़ाया जाता है.
खरना व्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष इस दिन पानी भी नहीं पीते हैं. इस दिन का पूरा प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही पकाया जाता है. मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर दूध, गुड़ व साठी के चावल से खीर और गेहूं के आटे की रोटी का प्रसाद बनाया जाता है.
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बनती है गुड़ की खीर
छठ के दूसरे दिन खरना तिथि पर घरों में प्रसाद के लिए महिलाएं गुड़ की खीर बनाती हैं जिसे रसिया भी कहते हैं. खीर बनाने के लिए आम की लड़की और मिट्टी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है. खरना का प्रसाद बनाने के लिए चावल, दूध और गुड़ का उपयोग किया जाता है. चावल और दूध चंद्रमा का प्रतीक है तो गुड़ सूर्य का प्रतीक है. तीनों के मिश्रण से बनी खीर को रसिया कहते हैं. इस प्रसाद को खाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और मानसिक रोग से भी छुटकारा मिलता है.
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चूल्हे पर बनता है खाना
चूल्हे में खाना बनाने के पीछे मान्यता है कि चूल्हा बिल्कुल साफ होना चाहिए और उस पर पहले से किसी भी तरह का कोई भी खाना न बनाया गया हो. यानी चूल्हे पर किसी भी तरह की नमक वाली चीजें न बनी हो और मांसाहार भी न पकाया गया हो. इसके अगले दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन व्रती और घर के सभी लोग घाट पर जाकर सूर्य भगवान की उपासना करते हैं.