सूखा प्रभावित राज्यों जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के किसानों ने तो पिछले साल भी दिल्ली में अपनी आवाज बुलंद की थी.
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नई दिल्ली : कर्ज माफी, फसल का उचित मूल्य और अन्य मांगों को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों के किसान पहले भी आंदोलन करते रहे हैं. सूखा प्रभावित राज्यों जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के किसानों ने तो पिछले साल भी दिल्ली में अपनी आवाज बुलंद की थी. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी पिछले साल किसान आंदोलन हुआ, जिसने उग्र रूप ले लिया था. जानिए हाल ही के ऐसे ही 3 किसान आंदोलनों के बारे में :
184 किसान समूहों ने किया था दिल्ली मेें प्रदर्शन
एक बार पूर्ण कर्जमाफी और उपज के उचित मूल्य की मांग को लेकर तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और तेलंगाना समेत अन्य राज्यों के 184 किसान समूह ने ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC) के बैनर तले 20 नवंबर, 2017 को सैकड़ों किसान दिल्ली पहुंचे थे. दिल्ली के रामलीला मैदान में इन्होंने एकजुट होकर प्रदर्शन किया था. इस दौरान स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने भी किसानों की रैली का नेतृत्व रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक किसान मुक्ति संसद के लिए किया था.
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मध्य प्रदेश का किसान आंदोलन
कर्ज माफी और दूध के दाम बढ़ाने जैसे मुद्दों पर महाराष्ट्र में पिछले साल 1 जून से शुरू हुआ किसान आंदोलन मध्य प्रदेश तक पहुंच गया था. मध्य प्रदेश के किसानों ने भी कर्ज माफी, मिनिमम सपोर्ट प्राइस, जमीन के बदले मिलने वाले मुआवजे और दूध के दाम को लेकर आंदोलन शुरू किया था. इसका असर इंदौर, मंदसौर, नीमच, इंदौर, उज्जैन, देवास, भोपाल व अन्य हिस्सों में देखा गया. हिंसक घटनाएं भी हुईं. इस दौरान किसानों ने फल-सब्जी को सड़कों पर फेंका था. दूध को भी सड़कों पर बहाया था. इसमें सात से अधिक लोगों की मौत हुई थी.
तमिलाडु के किसानों ने जंतर-मंतर पर डाला था डेरा
पिछले साल मार्च-अप्रैल में तमिलनाडु के सैकड़ों किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहुंचकर धरना दिया था. वे करीब 40 दिनों तक वहां जुटे रहे थे. इन किसानों की मांग थी कि किसानों के कर्ज माफ किए जाएं. फ़सलों का उचित मूल्य दिया जाए. उन्हें सूखा राहत पैकेज दिया जाए और सिंचाई से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए कावेरी प्रबंधन बोर्ड का गठन हो. साथ ही 60 साल से अधिक उम्र वाले किसानों के लिए पेंशन की व्यवस्था हो. सरकार के आश्वासन के बाद धरना स्थगित कर दिया था. लेकिन जुलाई में फिर ये किसान दिल्ली आ गए. धरना प्रदर्शन किया जो सितंबर तक चलता रहा था. किसानों का कहना था कि केंद्र सरकार ने उन्हें इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि अब उन्हें अपना मलमूत्र खाना पड़ रहा है.
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