इलाहाबादियों की सांसों में बसता है 'अमिताभ'
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इलाहाबादियों की सांसों में बसता है 'अमिताभ'

अवधी और इलाहाबादी भाषा को विश्व फलक तक पहुंचाने में अमिताभ बच्चन का विशेष योगदान है. 

अमिताभ बच्चन का 11 अक्टूबर को 75वां जन्मदिन मनाया गया...(फाइल फोटो)

इलाहाबाद : बात 1996 की है. इलाहाबाद के केपी ग्राउंड में एक इंसान रैली में कविता पाठ कर रहा था और नीचे जनता उसे अपने आप में महसूस कर रही थी. उसकी एक झलक चेहरे पर ख़ुशी ला देती. ताली बजाकर एक नारा पूरे माहौल में गूंज जाता - अमिताभ बच्चन जिंदाबाद! अमिताभ बच्चन जिंदाबाद! ये नारा ही नहीं इलाहाबाद की जनता का प्यार है, दुलार और पुकार है. आज इसी पुकार यानी अमिताभ का 75वां जन्मदिन है. जब 'इलाहाबादी' का जन्मदिन हो तो दूसरा इलाहाबादी कैसे उसे याद न करे. वो उसे याद रखने का बहुत जतन भी करता है. इलाहाबादी की अपनी फितरत है. खुद में अमिताभ को खोज लेना, उनके होने के एहसास से खुश हो जाना, उनकी यादों, किस्सों कहानियों को अपने आने वाली पीढ़ी को सुनाना, सुनाते हुए बढ़ना अपने आप में अमिताभ को सबसे बड़ा जन्मदिन में दिया जाने वाला उपहार है. आज इस खास मौके पर हमने बात की इलाहाबाद के रंगकर्मी, कवि, पत्रकार से.

  1. खुद में अमिताभ को खोज लेना इलाहाबादी की फितरत
  2. हर युवा अपने आप में महानायक अमिताभ बच्चन को देखता है
  3. फ़िल्मी स्टाइल से लेकर हर डायलॉग की हर कोई उतारता है नक़ल 

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रंगकर्मी प्रवीण शेखर कहते हैं, "अवधी और इलाहाबादी भाषा को विश्व फलक तक पहुंचाने में अमिताभ बच्चन का विशेष योगदान है. इलाहाबादी भाषा उनके रोम- रोम में बसी हुई है. जब अमिताभ अपने चुनाव के दौरान इलाहाबाद आए थे तो मैं उस वक़्त बीमार था. बीमार होने के बाद भी उन्हें देखने की लालसा ने हमें उनके करीब ला दिया. आज जब पुरानी यादों के झरोखों को खोलता हूं तो उस खिड़की में एक खिड़की अमिताभ की ओर ही खुलती है. हमें गर्व है कि अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से हैं और हम इलाहाबादी है."

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कोर्स कोर्डिनेटर धनजय चोपड़ा बताते हैं, "1984 में अमिताभ बच्चन अपने चुनाव प्रचार के दौरान इलाहाबाद आए थे. उस वक़्त मैं बीएससी में पढ़ रहा था. बच्चन के पिता ने इलाहाबाद के सभी कलाकारों, रंगकर्मियों, साहित्यकारों की टोली बुलाई थी. मैं उस वक़्त कविता और कहानियों में हाथ आजमा रहा था और मुझे भी टोली में जाने का मौका मिला, तब पहली बार बच्चन को बहुत पास से देखने का मौका मिला. जब हम स्टूडेंट थे, तब बच्चन के संवाद को बोलकर खुद को हीरो की तरह प्रस्तुत करते रहते थे. बच्चन को इलाहाबादियों से बहुत प्यार है. एक बार का किस्सा है कि हम और हमारे मित्र मधुशाला की 50वीं वर्षगांठ पर दिल्ली गए थे. जब हम सब गुलमोहर स्थित उनके घर गए तो चपरासी से बच्चन से मिलने की बात कही. चपरासी ने इनकार कर दिया और कहा, "सर की तवियत ख़राब है, किसी से नहीं मिलेंगे". तभी हमने कहा, "आप अंदर जाकर कहे कि इलाहाबाद से कोई आपसे मिलने आया है, चपरासी अंदर गया, उधर से अमिताभ बच्चन खुद आये और कहा - अच्छा हुआ, आप इलाहाबाद से आये है, बाबू जी की तवियत ख़राब है, पर इलाहाबादी कोई मिलने आया है, ये जानकार बाबू को बहुत ख़ुशी होगी. उस दिन बच्चन को और उनके विनम्रता को बहुत ध्यान से देखा था, जो आज भी याद है." 

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इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजय जेतली कहते हैं, "इलाहाबाद का हर युवा अपने आप में अमिताभ को देखता है. उनकी फ़िल्मी स्टाइल से लेकर उनके संवाद तक हर कोई नक़ल करना चाहता है. अजय ने बताया कि 1984 में चुनाव के दौरान अमिताभ से मिलने का सौभाग्य मिला. उनकी हर बात आज भी मेरे जेहन में ताजा है. मैं असल में खुद अमिताभ था, उनका इलाहाबाद से होना ही हमारे लिए ख़ुशी दे जाता है. अंत में, हर इलाहाबादी की एक ही चाहत है - अमिताभ बच्चन स्वस्थ रहें ,प्रसन्न रहे, मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे. आज सब खुश हैं और उसकी एक ही वजह है - अमिताभ का जन्मदिन होना, अमिताभ का इलाहाबादी होना.

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