आरिफ मोहम्मद ने अपने भाषण में कहा था कि तीन बार तलाक की बात उतनी सही नहीं है. सच यह है कि मोहम्मद साहब के इंतकाल के कुछ सालों बाद जब तीन बार तलाक कहने को वैध बना दिया गया, तो उस समय इसको लागू करने वाले को 40 कोड़ों की सजा दी गई थी.
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नई दिल्ली: चर्चित तीन तलाक संबंधी बिल को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को लोकसभा में पेश किया. इसकी मुखालफत करते हुए एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जब पहले से ही घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून मौजूद है तो इस बिल का क्या औचित्य है? उन्होंने कहा कि यह बिल मूल अधिकारों का उल्लंघन है और कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. इस संदर्भ में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान का जिक्र आना जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने सबसे पहले तीन तलाक के मुद्दे को उठाया और 32 बरस पहले संसद में ओवैसी के रुख के बिल्कुल उलट प्रगतिशील आवाज को बेहद बुलंद आवाज में रखा.
शाहबानो केस
1980 के दशक में इस मामले में जहां राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था, वहीं आरिफ मोहम्मद खान इस फैसले के साथ खड़े हो गए थे. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में और तीन तलाक के खिलाफ भाषण भी दिया था जो कि ऐतिहासिक महत्व रखता है. बाद में आरिफ ने सरकार के इस कदम के विरोध में अपना इस्तीफा भी दे दिया था.
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ऐतिहासिक भाषण
आरिफ मोहम्मद खान ने अपना यह भाषण एम.बनातवाला द्वारा प्रस्तुत एक गैर-सरकारी विधेयक के विरोध में 23 अगस्त 1985 को लोकसभा में दिया था. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में देश के प्रथम शिक्षा मंत्री तथा इस्लामिक कानूनों के जानकार मौलाना आजाद के विचारों का जिक्र किया था. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा था कि हम दबे हुए लोगों को ऊपर उठाकर ही यह कह सकेंगे कि हमने इस्लामिक सिद्धांतों का पालन किया है, और उनके साथ न्याय किया है.
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तीन तलाक का विरोध
आरिफ मोहम्मद ने अपने भाषण में कहा कि तीन बार तलाक की बात उतनी सही नहीं है. सच यह है कि मोहम्मद साहब के इंतकाल के कुछ सालों बाद जब तीन बार तलाक कहने को वैध बना दिया गया, तो उस समय इसको लागू करने वाले को 40 कोड़ों की सजा दी गई थी.
पूरा मामला
इंदौर की रहने वाली मुस्लिम महिला शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था. पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और पति के खिलाफ गुजारे भत्ते का केस जीत भी लिया. सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने के बाद भी शाहबानो को पति से हर्जाना नहीं मिल सका. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरज़ोर विरोध किया. इस विरोध के बाद 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया. इस अधिनियम के तहत शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया था.