आर्म्‍ड फोर्सेज फ्लैग वीक स्पेशल: शहादत के 55 साल बाद भी इस जवान को मिलती है प्रमोशन और छुट्टियां
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आर्म्‍ड फोर्सेज फ्लैग वीक स्पेशल: शहादत के 55 साल बाद भी इस जवान को मिलती है प्रमोशन और छुट्टियां

'आर्म्‍ड फोर्सेज फ्लैग वीक' में हम आपको भारतीय सेना के एक ऐसे जवान की कहानी बता रहे हैं, जिसे शहादत के 55 साल बाद भी प्रमोशन और छुट्टियां मिलती हैं.

शहीद जसवंत सिंह रावत, फाइल फोटो

नई दिल्ली: 'आर्म्‍ड फोर्सेज फ्लैग वीक' में हम आपको भारतीय सेना के एक ऐसे जवान की कहानी बता रहे हैं, जिसे शहादत के 55 साल बाद भी प्रमोशन और छुट्टियां मिलती हैं. यह बात आपको थोड़ी अजीब लगे, लेकिन वीर जवान जसवंत सिंह रावत के वीरता को सलामी देने के लिए ऐसा किया जा रहा है. देश के इस बेटे के वीरता की कहानी सुनकर एक हिन्दुस्तानी होने के नाते आपका सीना भी गर्व से चौड़ा जाएगा. मूलरूप से उतराखंड पौड़ी के रहने वाले शहीद जसवंत सिंह रावत ने अकेले दम पर चीनी फौजियों के होश फाख्ता कर दिए थे. देश के इस बेटे ने अकेले बंदूक थामकर 72 घंटे तक चीन की सेना को भारतीय सेना में घुसने से रोक रखा था. आइए देश के इस वीर लाल से जुड़ी 10 बातें जानते हैं-:

  1. जसवंत सिंह रावत अकेले 72 घंटे तक चीन की सेना से लड़ते रहे थे
  2. अरुणाचल प्रदेश में उनके नाम पर बना है मंदिर
  3. उन्हें वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है

1. साल 1962 की जंग में चीनी सेना तवांग स्थित महात्मा बुद्ध की मूर्ति के हाथों को काटकर ले गई थी. इसके बाद चीनी सेना ने  17 नवंबर 1962 को तड़के अरुणाचल प्रदेश पर कब्जे के लिए अपना चौथा और आखिरी हमला बोल दिया था. तभी जसवंत सिंह रावत फौलाद की तरह चीनी सेना के सामने आकर खड़े हो गए थे. इसके बाद करीब तीन दिन तक चीनी सेना से लोहा लेते रहे.

2. नौरनंग की इस लड़ाई में चीनी सेना मीडियम मशीन गन (MMG) से फायरिंग कर रहे थे. इससे निपटने के लिए जसवंत सिंह रावत, लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह जैसे तैस छुपते-छुपाते चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और हैंडग्रेनेड की मदद से सैनिकों से MMG छीन ली थी.

3. MMG छीनने के बाद तीनों जवान भारतीय बंकर में लौटने की कोशिश कर रहे थे, तभी त्रिलोक और जसंवत दुश्मन की गोली से घायल हो गए. घायल गोपाल चीनी सेनो से छीनी गई MMG राइफल भारतीय बंकर तक पहुंचाने में सफल रहे, जिनकी मदद से भारतीय फौज ने चीनी सेना को अरुणाचल पर कब्जा करने से रोकने में सफल हुए थे.

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4. अरुणाचल प्रदेश के लोग बताते हैं कि जसवंत सिंह ने 17 नवंबर 1962 को चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान मारे गए, लेकिन जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अपनी पोस्ट पर डटे रहे. 

5. जसवंत सिंह ने मिट्टी की बर्तन बनाने वाली दो स्थानीय लड़कियों को अपने साथ लिया और अलग-अलग जगहों पर हथियार रखकर चीनी सेना पर भीषण हमला बोल दिया था. इस जोरदार हमले से स्तब्ध चीनी सेना को लगा कि वे भारतीय सेना की टुकड़ी से लड़ रहे हैं न कि एक आदमी से.

6. माना जाता है कि जसवंत सिंह ने अपनी चतुराई से 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था. 

7. जसवंत सिंह को राशन पहुंचाने वाला फौजी चीनी सैनिक के हाथ लग गए थे. इसके बाद चीन को पता चल गया कि वे जिसे पूरी भारतीय फौज समझ रहे थे, वह बल्कि जसवंत सिंह और दो लड़कियां थीं. सेला ग्रेनेड हमले में शहीद हो गईं और नूरा को चीनी फौज अपने साथ ले गई. 

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जवान जसवंत सिंह रावत की याद में बनाया गया मंदिर. 

8. दुश्मनों के हाथ पकड़े जाने के डर से जसवंत सिंह ने खुद को गोली मार ली थी. इसके बाद चीनी सेना उनका सिर काटकर ले गए थे. 

9. युद्ध के दौरान जसवंत सिंह रावत गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के राइफलमैन थे. उनके सम्मान में उन्हें आज भी प्रमोशन दिया जाता है और छुट्टियां दी जाती हैं.

10. शहीद जसवंत सिंह रावत की याद में एक झोपड़ी बनाई गई है. इसमें उनके लिए एक बेड लगा हुआ और उस पोस्ट पर तैनात जवान हर रोज बेड की चादर बदलते हैं और बेड के पास पालिश किए हुए जूते रखे जाते हैं. इस बहादुरी के लिए गढ़वाल राइफल्स के जवानों को मरणोपरांत महावीर और वीर चक्र प्रदान किया गया. जसवंत सिह को महावीर चक्र और त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र दिया गया है. अरुणाचल प्रदेश में इस जवान को बाबा के नाम से पुकारा जाता है और वहां जसवंत बाबा का मंदिर भी है.

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