...तो अटल, मनमोहन और प्रणब मुखर्जी को खाली करना पड़ सकता है सरकारी बंगला
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...तो अटल, मनमोहन और प्रणब मुखर्जी को खाली करना पड़ सकता है सरकारी बंगला

यदि सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सुब्रमण्यम का सुझाव मान लिया तो पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवेगौड़ा को जल्द ही अपना सरकारी आवास खोना पड़ सकता है. 

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह को खाली करना पड़ सकता है सरकारी आवास (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः देश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को उनके कार्यकाल के बाद दिए जाने वाले सरकारी निवास को वापस लिए जा सकते हैं. पू्र्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया है कि पद से हटने के बाद पूर्व नेताओं को सरकारी आवास दिया जाना कानून का उल्लंघन है. यदि सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सुब्रमण्यम का सुझाव मान लिया तो पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवेगौड़ा को जल्द ही अपना सरकारी आवास खोना पड़ सकता है. 

  1. NGO की याचिका पर SC ने पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम से मांगे थे सुझाव
  2. पूर्व राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री को बंगले दिए जाने को गोपाल सुब्रमण्यम ने माना है गलत
  3. एनजीओ की याचिका पर यूपी के पूर्व सीएम पर भी आ चुका है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गोपाल सुब्रमण्यम को एमिकस क्यूरी बनाया था. जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा पिछले वर्ष 23 अगस्त को लोक प्रहरी एनजीओ की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए गोपाल सुब्रमण्यम से कहा था कि वह इस मामले में अपना सुझाव दें. आपको बता दें कि इस याचिका के बाद ही उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपने सरकारी आवास खाली करने पड़े थे.  सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि इस याचिका में जनहित के अहम सवाल हैं, इसके कई पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है. मामले में फैसले का असर ना सिर्फ प्रदेश बल्कि केंद्र के नेताओं पर भी पड़ सकता है. 

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सरकारी आवास को बना दिया जाता है मेमोरियल
गोपाल सुब्रमण्यम ने कोर्ट को दिए अपने सुझाव में कहा है कि शीर्ष संवैधानिक पदों पर आसीन लोग को पद से हटने के बाद साधारण नागरिक की तरह जीवन व्यतीत करने लगते हैं, इसलिए उनके सरकारी आवास को भी वापस ले लेना चाहिए. क्योंकि कई बार ऐसा देखने में आया है कि उनकी पार्टी या परिवार वालों ने ऐसे नेताओं को दिए गए सरकारी आवास को मेमोरियल के तौर पर स्थापित कर दिया है.

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बाबू जगजीवन राम, लाल बहादुर शास्त्री, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी मेमोरियल इसके उदाहरण है. 

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16 जनवरी को होगी सुनवाई
आपको बता दें कि शुक्रवार (5 जनवरी) को जस्टिस गोगोई और आर भानुमती की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की, इस मामले में अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी, जिसमे इन पूर्व राष्ट्रपति, पीएम और सीएम के आवास पर फैसला दिया जा सकता है. इस दौरान यह बहस की जा सकती है कि पब्लिक प्रॉपर्टी को साधारण नागरिक को नहीं दिया जा सकता है, जैसा कि पहले लोगों को दिया जाता रहा है. सुब्रहमण्यम ने अपने तर्क में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार पद से हटने के बाद पूर्व नेताओं को सरकारी आवास दिया जाना कानून का उल्लंघन है.

यूपी के 6 पूर्व सीएम को भी लगा था झटका
अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ लोक प्रहरी की याचिका पर यूपी के 6 पूर्व सीएम को दिए गए बंगले खाली करने का आदेश दिया था. दरअसल  एनजीओ लोक प्रहरी ने 1997 में जारी सरकारी आदेश को चुनौती दी थी. 2004 में दायर इस याचिका पर नवंबर 2014 में सुनवाई पूरी हुई और लगभग डेढ़ साल बाद (अगस्त 2016) दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर के लिए सरकारी आवास नहीं दिया जा सकता. इस फैसले का सीधा असर मुलायम सिंह यादव, मायावती, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामनरेश यादव और एन डी तिवारी पर पड़ा. सभी को 2 महीने में लखनऊ का बंगला खाली करने का आदेश जारी किया गया.

फैसले के 1 साल बाद भी नहीं खाली हुए थे बंगले
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक साल बाद भी यूपी के पांच मुख्यमंत्रियों (मायावती, राजनाथ सिंह, एनडी तिवारी, मुलायम सिंह और कल्याण सिंह) ने अपने बंगले खाली नहीं किए थे. इसे लेकर याचिकाकर्ता एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहंचे.  याचिकाकर्ता ने को पीठ को बताया कि इन पांचों पूर्व मुख्यमंत्रियों से अब तक सरकारी आवास खाली नहीं कराया गया है. पीठ ने अदालत कक्ष में मौजूद अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से राजनाथ सिंह के बारे में जानना चाहा. जिस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वह पता करेंगे कि उन्होंने  सरकारी आवास खाली किया है या नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यूपी सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री आवास आवंटन नियम, 1997 को कानूनन गलत बताया था.शीर्ष अदालत ने इन सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को न केवल दो महीने के भीतर सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया है बल्कि जितने समय तक इन लोगों ने अनधिकृत तरीके से सरकारी आवास पर कब्जा रखा था, उसका किराया भी वसूलने को कहा था.

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