इस खास तरीके से स्‍मॉग को रोक रहा चीन, भारत भी ले सकता है सबक
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इस खास तरीके से स्‍मॉग को रोक रहा चीन, भारत भी ले सकता है सबक

चीन ने प्रदूषण से लड़ाई को सबसे ज़रूरी माना है और अपने यहां सभी विकास योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी है.

'मिस्‍ट कैनन मशीन' के जरिये चीन कारगर तरीके से स्‍मॉग से निपट रहा है...

नई दिल्‍ली : राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर है और बड़े पैमाने पर लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो रही हैं. दिल्‍ली सरकार ने इसके मद्देनजर ऑड-ईवन फॉर्मूला भी लागू करने का फैसला भी लिया, लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल द्वारा लगाई कुछ 'शर्तों' के चलते इसे फिलहाल टाल दिया गया. सरकार इससे निपटने के लिए कई स्‍तर पर प्रयास तो कर रही है, लेकिन वह कारगर होता नहीं दिख रहा. हालांकि चीन भी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठा रहा है. चीन ने प्रदूषण से लड़ाई को सबसे ज़रूरी माना है और अपने यहां सभी विकास योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी है.
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली में सालाना करीब 30,000 जानें जा रही हैं. हर दिन राजधानी में औसतन 80 लोगों की जान प्रदूषण ले रहा है. दुनियाभर में वायु प्रदूषण के हालात बयां करती यह रिपोर्ट चीन और भारत को सबसे ज्यादा खतरे में बताती है. इसी रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई अहम उठाए हैं.

  1. भारत में अतिसूक्ष्म कणों की सघनता 13 फीसदी बढ़ी
  2. प्रदूषण के कारण दिल्ली में सालाना करीब 30,000 जानें जा रही है- रिपोर्ट
  3. चीन ने प्रदूषण से लड़ाई को सबसे ज़रूरी माना है.

चीन ने प्रदूषण से जुड़े कानून को और ज्‍यादा सख्‍त कर दिया गया है. साल 2016-2017 में 8,687 कंपनियों को प्रदूषण से जुड़े नियमों के उल्लंघन के लिए दंडित किया गया और 405 लोगों की गिरफ़्तारी भी हुई. वहीं, 4,600 से अधिक सरकारी अधिकारी भी खराब पर्यावरणीय प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराए गए और उन्हें सजा हुई. इसके अलावा सबसे बुरी हालत में पहुंचे ज़मीनी और समुद्री इलाकों को 'रेड ज़ोन' का दर्जा देकर उन्हें सुधारने के लिए नई-नई योजनाओं पर काम किया है.

मिस्‍ट कैनन मशीन

चीन ने स्‍मॉग से निपटने के लिए तकनीक का सहारा लिया है. इसके लिए उसने हानिकारक गैस नियंत्रण और धूल की रोकथाम के लिए ऐसे गैजेट्स बनाए हैं, जिन्हें इस्तेमाल अन्‍य भी कर सकते हैं. इसमें प्रमुख है मिस्‍ट कैनन. यह एक तरह की धूल नियंत्रण मशीन है, जो तरल को छोटो-छोटे कणों में तब्‍दील कर हवा में स्‍प्रे करती है. इससे हवा में मौजूद खतरनाक धूल कण बारिश की तरह जमीन पर गिर जाते हैं. इससे लोगों में सांस संबंधित और लंग प्रॉब्‍लम्‍स की संभावना कम हो जाती है.

एक आंकड़े के अनुसार, भारत के इस पड़ोसी देश में प्रति माह दो हजार से ज्‍यादा कंस्‍ट्रक्‍शन साइट्स की प्रदूषण जांच की जाती है. इसके अलावा बीजिंग में प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के प्रवेश पर भी रोक लगाई गई है. इसके साथ ही उसने परमाणु ऊर्जा के अनुपात, प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने का कदम उठाया है. यह कदम काफी हद तक चीन में प्रदूषण को कम करने में कारगर भी साबित हुआ है. 

बीजिंग में पर्यावरण मॉनिटरिंग सेंटर 

चीन ने बीजिंग में पर्यावरण मॉनिटरिंग सेंटर की स्थापना की है, जिसके जरिये लगातार प्रदूषण की मात्रा पर ध्यान दिया जा रहा है. स्‍वच्‍छ ऊर्जा पर चलने वाली 1,350 बसों को सार्वजनिक परिवहन में लगाया गया है. 

साइकिल को बढ़ावा 

चीन में साइकिल को बढ़ावा दिया गया है. इसके लिए सरकार की तरफ से शहर में बड़ी तादाद में साइकिल स्टैंड बनवाए हैं. यहां बहुत कम कीमत पर नई साइकिलें किराए पर ली जा सकती हैं.

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ये कदम भी उठाए गए...

स्कूलों में बच्चों की सेहत के मद्देनजर भी ऐ‍हतियाती कदम उठाए गए हैं, जिसके तहत एयर प्यूरीफायर लगाए गए हैं. वहीं, सड़कों की मशीन से सफाई और उसके बाद पानी से धोया जाता है. निर्माण कार्य भी पूरी तरह ढंककर किया जाता है. 

2015 में भारत में प्रदूषण से करीब 25 लाख लोगों की मौत

हाल ही में सामने आई लांसेट क‍मीशन ऑन पॉल्‍यूशन एंड हेल्‍थ की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2015 में अकेले भारत में ही करीब 25 लाख लोग प्रदूषण के चलते मौत के मुंह में समा गए थे, जबकि चीन में यह आंकड़ा करीब 18 लाख था. यह आंकड़ा एड्स, टीबी और मलेरिया से मरने वाले लोगों के आंकड़ों से करीब 15 गुणा अधिक है.

भारत में अतिसूक्ष्म कणों की सघनता 13 फीसदी बढ़ी

नासा की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2015 के बीच भारत में अतिसूक्ष्म कणों की सघनता 13 फीसदी तक बढ़ चुकी है, जबकि चीन में 17 प्रतिशत तक कमी हुई है. भारत में पीएम-2.5 की औसतन सालाना सघनता 150 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि चीन में 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है यानी भारत में पीएम-2.5 की सघनता चीन के मुकाबले लगभग तीन गुना और डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुकाबले 15 गुना अधिक है.

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