'मेरा मूल स्वाभाव रहा है कि एडवरसिटी को ऑपर्चुनिटी मे कॉनवर्ट करना. मेरा पास कोई बैगेज नहीं था.'
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नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2018 का पहला इंटरव्यू Zee News को दिया. ज़ी न्यूज के एडिटर सुधीर चौधरी के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि दुनिया के तमाम नेताओं से कैसे उनकी गहरी दोस्ती बन जाती है. पीएम मोदी से सवाल किया गया कि आपका स्टाइल अलग है. आप दुनिया के नेताओं से दोस्ती कर लेते हैं? अभी नेतन्याहू की विज़िट और आपकी दोस्ती की चर्चा हो रही है जो ये यूनिक स्टाइल ऑफ डिप्लोमसी है, आप कैसे कनेक्ट करते हैं?
इस सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा कि कभी-कभी कुछ कमियां शक्ति मे बदल जाती हैं. मेरा मूल स्वाभाव रहा है कि एडवरसिटी को ऑपर्चुनिटी मे कॉनवर्ट करना. जब मैं पीएम बना तो लोग कहते थे कि इसको तो दुनिया का ज्ञान नहीं है. एक तरह से ये सही था कि मेरे पास कोई एक्सपीरियेन्स नहीं था. पर ये एडवांटेज था – मेरा पास कोई बैगेज नहीं था. मैं कहता था कि भाई हम कामन इंसान की तरह जिएंगे. अब ये स्टाइल दुनिया को पसंद आ गया है. कोशिश ये करता हूं कि देश का नुकसान नहीं कर दूं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व के नेताओं से गले मिलने की अपनी चिर-परिचित शैली के संदर्भ में आज कहा कि उनको प्रोटोकॉल के बारे में जानकारी नहीं है क्योंकि वह एक आम इंसान हैं और यह उनकी ताकत बन गई है तथा दुनिया के नेता भी उनके खुलेपन को पसंद करते हैं. मोदी ने कहा कि विपरीत हालात को अवसर में बदलना उनका मूल स्वभाव रहा है. गले मिलने की शैली को लेकर कांग्रेस के कटाक्ष किए जाने के कुछ दिनों बाद आज मोदी ने कहा कि अगर वह ‘प्रशिक्षित’ होते तो हाथ मिलाने और दाएं-बाएं देखने के तय प्रोटोकॉल का अनुसरण करते.
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उन्होंने कहा, ‘‘मैं इन सब प्रोटोकॉल के बारे में नहीं जानता क्योंकि में एक आम इंसान हूं। इस आम इंसान के खुलेपन को दुनिया पसंद करती है. मित्रवत संबंध बन जाते हैं.’’ मोदी ने कहा, ‘‘जब मैं प्रधानमंत्री बना था तो हर कोई पूछा करता था कि आप अपनी विदेश नीति कैसे चलाएंगे। एक तरह से यह आलोचना सही थी क्योंकि मेरे पास कोई अनुभव नहीं था। अनुभव नहीं होने का मुझे लाभ मिला.’’
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यह पूछे जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर इन दोनों कामों को ही मेरी सरकार का काम मानेंगे तो हमारे साथ यह अन्याय है. हमारे चार साल के काम को देखें. इस देश में बैकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी 30-40% लोग बैंकिंग सिस्टम से बाहर हैं. हम उनको वापस लाए हैं. क्या ये उपलब्धि नहीं है? लड़कियों के स्कूल के लिए शौचालय, क्या ये कम नहीं है? 3.30 करोड़ लोगों के घर गैस पहुंचना क्या काम नहीं है. 90 पैसे में ग़रीब का इंश्योरेंस, क्या ये काम नहीं है. जहां तक जीएसटी का सवाल है, जब अटलजी की सरकार थी इसकी चर्चा शुरू हुई.
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यूपीए सरकार के समय इस मसले पर राज्यों की नहीं सुनी जाती थी – चाहे जो भी रीज़न रहा हो. मैं जब गुजरात का सीएम था तो बोलता था, पर नहीं सुनी जाती थी. एक देश, एक टैक्स की दिशा में हमने बहुत बड़ी सफलता पाई. कोई व्यवस्था बदलती है तो थोड़े एडजस्टमेंट करने होते हैं. जब लॉन्ग टर्म में देखा जाएगा तो इन्हें बहुत सफल माना जाएगा.