कांग्रेस को 'त्रिमूर्ति' का नहीं मिला अपेक्षित फायदा, रुझानों में बीजेपी को स्‍पष्‍ट बहुमत
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कांग्रेस को 'त्रिमूर्ति' का नहीं मिला अपेक्षित फायदा, रुझानों में बीजेपी को स्‍पष्‍ट बहुमत

कांग्रेस ने इन नेताओं के दम पर 'KHAP' फॉर्मूले को अपनाया था. यानी क्षत्रिय-ओबीसी, दलित, आदिवासी और पाटीदार जातियों के आधार पर कांग्रेस ने समीकरण बनाया था. लेकिन इसका फायदा इतना नहीं हुआ कि कांग्रेस की चुनावी वैतरणी को पार लगा सके.

फाइल फोटो

कांग्रेस ने इस बार के गुजरात चुनाव में दलित नेता जिग्‍नेश मेवाणी, ओबीसी नेता अल्‍पेश ठाकोर और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल पर दांव लगाया था. इन नेताओं ने भी प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से कांग्रेस को समर्थन दिया था. लेकिन शुरुआती ढाई घंटे के रुझानों के बाद बीजेपी 103 से भी ज्‍यादा सीटों से आगे है. कांग्रेस 75 सीटों पर आगे है. इससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, जिसकी वह उम्‍मीद कर रही थी. कांग्रेस ने इन नेताओं के दम पर 'KHAP' फॉर्मूले को अपनाया था. यानी क्षत्रिय-ओबीसी, दलित, आदिवासी और पाटीदार जातियों के आधार पर कांग्रेस ने समीकरण बनाया था. लेकिन इसका फायदा इतना नहीं हुआ कि कांग्रेस की चुनावी वैतरणी को पार लगा सके. 

  1. कांग्रेस ने खाप फॉर्मूले को अपनाया
  2. हार्दिक, अल्‍पेश और जिग्‍नेश को मिला समर्थन
  3. इन सबका कोई खास असर देखने को नहीं मिला

सामाजिक समीकरणों का असर 
इस बार के चुनाव में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने खुले तौर पर बीजेपी को वोट ना देने की अपील की थी. अल्पेश ठाकोर तो कांग्रेस के टिकट से चुनाव भी लड़ रहे हैं. जिग्नेश मेवाणी भी निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में है और कांग्रेस ने उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया. हार्दिक ने खुले तौर पर तो कांग्रेस का समर्थन नहीं किया था लेकिन अपनी रैलियों में वह लगातार बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील करते रहे है.

22 वर्षों से गुजरात में बीजेपी का राज
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटें हैं. वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 121 और कांग्रेस को 45 सीटें मिली थीं. वर्ष 1995 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला था, लेकिन उस वक्त बीजेपी के दो बड़े नेताओं शंकर सिंह वघेला और केशुभाई पटेल के मतभेदों की वजह से सरकार नहीं चल पाई. 

1998 में विधानसभा चुनाव हुए जिनमें बीजेपी को 117 सीटें मिली और कांग्रेस को 53 सीटें मिलीं. यानी कांग्रेस की सीटों में इज़ाफ़ा हुआ और बीजेपी की सीटों में कमी आई. हालांकि सरकार बीजेपी की ही बनी और केशू भाई पटेल मुख्यमंत्री बनाए गए. लेकिन वर्ष 2001 में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने केशू भाई पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बना दिया. 

LIVE: गुजरात चुनावः रुझानों में बीजेपी को बहुमत, बीजेपी 108, कांग्रेस 70 सीटों पर आगे

 

इसके बाद वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 127 और कांग्रेस को 51 सीटें मिलीं. ये अब तक हुए चुनावों में बीजेपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन था. वर्ष 2002 के बाद 2007 में विधानसभा चुनाव हुए.  वर्ष 2007 में बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 59 सीटें मिलीं. आप देख सकते हैं कि वर्ष 2002 के मुकाबले वर्ष 2007 में बीजेपी की 10 सीटें घट गईं और कांग्रेस की 8 सीटें बढ़ गईं.

इसके बाद वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव हुए. इन चुनावों में भी सरकार बीजेपी की ही बनी. लेकिन इस बार भी बीजेपी की सीटें कम हुईं और कांग्रेस की सीटें बढ़ गईं. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 115 और कांग्रेस को 61 सीटें मिलीं. यानी बीजेपी की 2 सीटें घट गईँ और कांग्रेस की 2 सीटें बढ़ गईं.

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