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हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव (Himachal pradesh assembly elections 2017) में कांग्रेस ने बुजुर्ग नेता मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर एक बार फिर से दांव लगाया है. इस बार वीरभद्र सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट बदल ली है. जानकार कह रहे हैं कि मनी लांड्रिंग केस में आरोपी वीरभद्र सिंह के बहाने बीजेपी को हमला करने का बैठे-बिठाए मौका मिल गया है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस अपने पुराने छत्रप वीरभद्र सिंह पर भरोसा जता रही है. मौजूदा हालात में कांग्रेस के पास हिमाचल में वीरभद्र सिंह से ज्यादा चर्चित चेहरा कोई नहीं है. वीरभद्र सिंह भले ही 83 साल के हैं, लेकिन वे युवाओं के बीच भी पहचाने जाते हैं.
चुनाव के इस समर में हम आपको वीरभद्र सिंह से जुड़ा एक ऐसा राजनीतिक किस्सा बता रहे हैं, जो उनकी राजनीतिक हैसियत समझने में मददगार हो सकती है. हालांकि लंबे राजनीतिक सफर में वीरभद्र सिंह पर घोटाला और गलत तरीके से संपत्ति अर्जित करने के कई आरोप लगे, जिसके चलते मुख्य विपक्षी बीजेपी उनपर हमलावर है.
उपचुनाव से हुई थी वीरभद्र सिंह मेन स्ट्रीम राजनीति में एंट्री
साल 1983 की बात है, वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के उभरते हुए चेहरा थे. वे युवाओं से लेकर महिलाओं तक में लोकप्रिय नेता थे. कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व उनकी इस छवि को वोट में तब्दील कराना चाहती थी. पार्टी ने उन्हें जुब्बल-कोटखाई सीट से चुनाव में उतारने का फैसला लिया था. जुब्बल-कोटखाई पर उपचुनाव होने थे. दिलचस्प बात यह है कि जुब्बल-कोटखाई सीट के सीटिंग विधायक कोई और नहीं, बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल थे. वीरभद्र सिंह के लिए खुद सीएम रामलाल ने जुब्बल-कोटखाई सीट छोड़ी थी. चुनाव में वीरभद्र सिंह भारी मतों से विजयी हुए थे.
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जिस महिला नेता ने जीवन भर वीरभद्र सिंह को कोसा अब उन्हें दी अपनी सीट
वीरभद्र सिंह अब तक आठ विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. इस बार वह नौवीं बार भाग्य आजमाएंगे. 1985 में वीरभद्र सिंह ने जुब्बल-कोटखाई के बजाय रोहडू से किस्मत आजमाई और जीत गए. साल 1990 में वीरभद्र सिंह ने जुब्बल-कोटखाई और रोहडू से चुनाव मैदान में उतरे. इस बार रोहडू से जीत तो गए लेकिन जुब्बल-कोटखाई की जनता ने उन्हें नकार दिया. उसके बाद 1993, 1998, 2003, और 2007 में रोहडू सीट से ही जीतते रहे. 2012 में रोहडू सीट आरक्षित होने के बाद वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण का रुख किया. इस बार वीरभद्र सिंह ठियोग विधानसभा सीट से भाग्य आजमाने की तैयारी में हैं.
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ठियोग सीट के साथ दिलचस्प बात यह है कि इस सीट पर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स जीतती रही हैं. विद्या पूरे राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह की मुखालफत करती रहीं, लेकिन अब उन्होंने खुद चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया है. या यूं कहें कि विद्या ने वीरभद्र सिंह की खातिर ठियोग सीट छोड़ दी है. वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे, जिसके बाद भी विद्या पार्टी में रहते हुए उनका विरोध नहीं छोड़ा.