तालिबान के खतरे के बीच काबुल से कैसे एयरलिफ्ट हुए भारतीय, जानें इनसाइड स्टोरी
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तालिबान के खतरे के बीच काबुल से कैसे एयरलिफ्ट हुए भारतीय, जानें इनसाइड स्टोरी

यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने काबुल (Kabul) स्थित अपने दूतावास से सभी कर्मचारियों को निकाला है. इससे पहले जब 1996 में तालिबान (Taliban) ने पहली बार सत्ता पर कब्जा किया था, तब भी भारत ने ऐसा ही कदम उठाया था. 

काबुल से भारतीयों की वतन वापसी

नई दिल्ली: अफगानिस्तान (Afghanistan) में जैसे ही हालात खराब होने शुरू हुए भारत सरकार (Indian Government) ने अफगान में फंसे भारतीयों को निकालने की तैयारियां शुरू कर दी थीं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल लगातार हर स्थिति की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तक पहुंचा रहे थे. सरकार ये तय कर चुकी थी कि सभी भारतीयों को वापस देश लाना है.

  1. काबुल से कैसे हुआ ऑपरेशन एयरलिफ्ट
  2. भारतीय अधिकारियों को सुरक्षित निकाला
  3. दूतावास के बाहर था तालिबान का पहरा

पाक का एयर स्पेस नहीं किया इस्तेमाल

सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान का एयर स्पेस नहीं प्रयोग किया गया क्योंकि ITBP के कमांडो हथियारों के साथ भारत आ रहे थे, इस वजह से दूसरे रास्ते से सभी कमांडो और दूतावास के लोग भारत लाए गए. एयरफोर्स को गल्फ देशों के साथ-साथ ताजिकिस्तान में एयरफोर्स के ग्लोबमास्टर को लैंड कराने को कहा गया ताकि बेहद कम समय में ही भारतीयों को काबुल से निकाला जा सके.

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सबसे पहले C-17 ग्लोबमास्टर हिंडन से फ्लाई किया उसमें गरुण कमांडो थे. सोमवार की शाम को 4.20 मिनट पर विमान ने उड़ान भरी और C-17 में पूरी तैयारी के साथ एयरफोर्स की टीम गई थी. भारत सरकार ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ईरान और पाकिस्तान के एयर स्पेस का इस्तेमाल नहीं किया.

ताजिकिस्तान से भारतीय विमान कल सुबह 6 बजे काबुल एयरपोर्ट पर पहुंचा जब काबुल एयरपोर्ट पर नाटो फोर्सेज ने भारतीय विमान के उतरने का क्लीयरेंस दे दिया था. एयरपोर्ट तक जाने के लिए काबुल में स्थित भारतीय दूतावास के करीब 148 अधिकारियों और कर्मचारियों को गाड़ी के अंदर बैठाकर एयरपोर्ट लाया गया.

एयरपोर्ट तक पहुंचने की चुनौती

काबुल स्थित भारतीय दूतावास से कुछ मीटर की दूरी पर 15 अगस्त के दिन धमाके की आवाज सुनी गई थी जिसके बाद से भारतीयों की सुरक्षा को लेकर चिंता और बढ़ गए थी. काबुल के अलग-अलग ठिकानों में फसे भारतीयों को निकालने के लिए दो टीमें बनाई गई थीं जिनमें एक टीम में ITBP कंमाडो थे जिसमें कुल 46 लोग थे. उन्हें एक दिन पहले भेज दिया गया था.

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दूसरे दल में भारत के राजदूत, 99 ITBP के कमांडो, तीन महिलाएं और दूतावास स्टाफ शामिल था. उनको 17 अगस्त को वापस लाया गया. सूत्रों के मुताबिक काबुल से निकलने के लिए 15 अगस्त को पहली कोशिश की गई थी, जब ये टीम एयरपोर्ट के लिये सभी लोगों को लेकर निकली थी लेकिन पहुंच नहीं पाई. सूत्रों के मुताबिक एक चेक प्वॉइंट पर हथियार बंद तालिबानी आतंकियों को देखा गया था जिसके चलते 15 तारीख को इस दल को वापस लौटना पड़ा.

इसके बाद 16 अगस्त को मिशन ने एक बार फिर कोशिश की और शाम 4 बजे एयरपोर्ट के लिए जब निकले तो फिर तालिबानी हथियार बंद दूतावास के बाहर मिले. एयरपोर्ट पहुंचने के लिए 15 किलोमीटर की दूरी तय करना एक बड़ी चुनौती थी. इसी वजह से एक बार फिर कोशिश की गई और तालिबानियों को चकमा देने के लिए दूसरे रास्ते का इस्तेमाल कर भारतीय दल एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गया.

भारत पहले भी उठा चुका है ऐसा कदम

रात साढ़े 10.30 एयरपोर्ट के लिए निकली टीम 15 किलोमीटर का सफर 3.30 बजे रात में पूरा कर पाई, जिसके बाद सभी ने राहत की सांस ली. जिस रात दूतावास से सभी को निकाल कर एयरपोर्ट ले जाया गया उस रात टीम में शामिल ज्यादातर लोगों न तो खाना खाया था और न ही सो पाए थे.

भारत अपने राजदूत और भारतीय दूतावास के कर्मियों को सैन्य विमान के जरिए मंगलवार को काबुल से स्वदेश वापस ले आया. इसके साथ ही अफगानिस्तान में भारतीय राजनयिक मौजूदगी खत्म हो गई है. वहीं, भारत सरकार ने उन अफगान नागरिकों के लिए एक आपातकालीन ई-वीजा सुविधा का ऐलान किया है जो देश में आना चाहते हैं. 

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यह दूसरी बार है जब भारत ने काबुल में दूतावास से अपने सभी कर्मचारियों को निकाला है. इससे पहले जब 1996 में तालिबान ने पहली बार सत्ता पर कब्जा किया था, तब भी भारत ने ऐसा ही कदम उठाया था. 

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