श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: इस दिन धूमधाम से मनाया जाएगा त्योहार, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: इस दिन धूमधाम से मनाया जाएगा त्योहार, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को धरती पर आठवां अवतार लिया था.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को धरती पर आठवां अवतार लिया था. भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी और जन्माष्टमी के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झूलाने की परंपरा भी है. इस बार कृष्ण जन्माष्टमी दो दिन 2 और 3 सितंबर को पड़ रही है. 

कृष्ण जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस साल 2 सितंबर रात 8 बजकर 46 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू होकर और 3 सितंबर को अष्टमी तिथि 7 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी. वहीं रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ 2 सितंबर को रात 8 बजकर 48 से होगा और 3 सितंबर की रात 8 बजकर 08 मिनट पर रोहिणी नक्षत्र समाप्त होगा. बता दें कि कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर होती है. पहले दिन वाली जन्माष्टमी मंदिरों और बाह्मणों के यहां मनाई जाती है और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं. 

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कृष्ण जन्माष्टमी पर ऐसे करें पूजन 
व्रत के पहले वाली रात को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें. सुबह सभी देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें. व्रत के दिन सुबह स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं. इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-  
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ अब शाम के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अगर ऐसा चित्र मिल जाए तो बेहतर रहता है. इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें. पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए. फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।' अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें.

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