चारों वेद और उपनिषदों का ज्ञान अपने मस्तिष्क में समेटे स्वामी जयेंद्र सरस्वती के सानिध्य में जाने वाला शख्स उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था.
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कांचीपुरम: कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती को गुरुवार (1 मार्च) को यहां मठ परिसर में उनके पूर्ववर्ती श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के समाधि स्थल के बगल में समाधि दी गई. धार्मिक संस्कार सुबह सात बजे अभिषेकम के साथ शुरू हुआ. अभिषेकम के बाद आरती की प्रक्रिया हुई. वहीं जयेंद्र सरस्वती के अंतिम विदाई में करीब 1 लाख लोगों ने उनके दर्शन किए. देश भर से वैदिक पंडित सभी चार वेदों से मंत्रों का उच्चारण किया और एक विशेष पूजन भी किया गया.
बाद में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के पार्थिव शरीर को मुख्य हॉल से निकालकर वृंदावन एनेक्सी ले जाया गया जहां श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती को समाधि दी गई थी. बेंत की एक बड़ी टोकरी में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के पार्थिव शरीर को बैठी हुई मुद्रा में डालकर सात फुट लंबे और सात फुट चौड़े गड्ढे में नीचे उतारा गया. पार्थिव शरीर को गड्ढे में नीचे उतारकर उसके ऊपर शालिग्राम रखा गया.
More than 1 lakh people have taken his darshan since yesterday. At 8 am,we will start the rituals.Obituary will be done at this place only, so public can see.He will be decorated & his body will be taken to the place he has to be kept: Sundareshan, Manager of Kanchi Sankara Mutt. pic.twitter.com/Wb5zP7NmTU
— ANI (@ANI) March 1, 2018
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इसके बाद गड्ढे को जड़ी बूटी, नमक और चंदन की लकड़ी से भर दिया गया. बाद में कबालमोक्षम किया गया, जिसमें सिर पर नारियल रखकर उसे प्रतिकात्मक रूप से तोड़ा जाता है. समाधि संस्कार पूर्वाह्न ग्यारह बजे पूरा हो गया. यहां मठ परिसर के आसपास सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी. तमिलनाडु के उप मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम, राज्य के शिक्षा मंत्री के ए सेंगोतैयां एवं अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को श्रद्धांजलि अर्पित की.
Tamil Nadu: Last rites ceremony of Kanchi Sankara Mutt head #JayendraSaraswathi begins in Kanchipuram. He had passed away yesterday. His successor Vijayendra Saraswati Swamigal (on right) present. pic.twitter.com/1vngSFBJdV
— ANI (@ANI) March 1, 2018
हिंदू धर्म के योद्धा
18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु में जन्मे सुब्रमण्यम महादेव अय्यर को पूरा भारत शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती के नाम से जानता है. अपने ज्ञान और हिंदू धर्म के प्रति निष्ठा ने उन्हें हिंदू धर्म के योद्धा के रूप में स्थापित किया. बचपन से ही तेज बुद्धि और दूसरे बच्चों से कुछ अलग जयेंद्र कम उम्र में ही कांची मठ आ गए थे. धर्म के प्रति निष्ठा और वेदों के गहन ज्ञान को देखते हुए मात्र 19 वर्ष की उम्र में उन्हें 22 मार्च 1954 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ का 69वां पीठाधिपति घोषित किया गया.
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चारों वेद और उपनिषदों का ज्ञान अपने मस्तिष्क में समेटे स्वामी जयेंद्र सरस्वती के सानिध्य में जाने वाला शख्स उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था. उन्हें सनातन धर्म के ध्वजवाहक, वेद-व्याख्या विभूति, ज्ञान का अकूत आगार और विनम्रता की जाग्रत पीठ के रूप में जाना जाता था.
पीठाधिपति घोषित किए जाने के बाद ही उनका नाम जयेंद्र सरस्वती पड़ा. उन्हें कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरन सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. कांचीपुरम द्वारा स्थापित कांची मठ एक हिंदू मठ है, जो पांच पंचभूतस्थलों में से एक है. मठ द्वारा कई स्कूल और आंखों के अस्पताल चलाए जाते हैं.