कर्नाटक: जब महज तीन लाख रुपये में बेंगलुरू को खरीदा गया...
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कर्नाटक: जब महज तीन लाख रुपये में बेंगलुरू को खरीदा गया...

1687 में मैसूर के वाडियार राजवंश ने तीन लाख रुपये कीमत के बदले बेंगलुरू शहर को मुगलों से खरीदा था. 1761 में हैदर अली ने उनके साम्राज्‍य पर अधिकार कर लिया.

कर्नाटक चुनावों के मद्देनजर राहुल गांधी और पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है.(फाइल फोटो)

कर्नाटक में अप्रैल-मई में चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी और कांग्रेस जैसे दलों ने चुनावी शंखनाद कर दिया है. दक्षिण भारत में कांग्रेस शुरू से सांस्‍कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है. कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ इलाके में भीमसेन जोशी, गंगूबाई हंगल और कुमार गंधर्व जैसे हिंदुस्‍तानी संगीत के धुरंधर पैदा हुए हैं तो मैसूर क्षेत्र कर्नाटक शैली के संगीतकारों के लिए मशहूर है. राज्‍य की इस सामाजिक और सांस्‍कृतिक विविधता के कारण इसके इतिहास में छुपे हैं. देश के दूसरे हिस्‍सों के मुकाबले यहां के लोगों ने लोहे का इस्‍तेमाल पहले शुरू किया.

  1. कर्नाटक में अप्रैल-मई में होने जा रहे चुनाव
  2. प्राचीन काल में इसका नाम करुनाडु था
  3. वाडियार राजवंश ने 3 लाख में मुगलों से खरीदा बेंगलुरू

करुनाडु
प्राचीन काल में यह करुनाडु के नाम से जाना जाता था जिसका अर्थ है ऊंची भूमि. शुरुआत में यह सांस्‍कृतिक रूप से उत्‍तर भारत से काफी अलग था, हालांकि कर्नाटक के शुरुआती शासक उत्‍तर भारतीय ही थे. ईसापूर्व तीसरी और चौथी सदी में इसके कई हिस्‍सों में मौर्य और नंद वंश का शासन था. इसके बाद सातवाहन वंश का शासन शुरू हुआ. इसने उत्‍तरी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्‍ट्र के अधिकांश इलाकों में अपनी सत्‍ता का विस्‍तार किया और करीब 300 वर्षों तक सत्‍ता में रहा. इसी दौरान कन्‍नड़ और तेलुगु भाषाओं की खोज हुई और उनका विकास भी हुआ. सातवाहनों के कमजोर पड़ने के बाद पल्‍लव राजवंश का शासन शुरू हुआ, लेकिन जल्‍द ही कदंब और गंग राजवंशों ने सत्‍ता पर कब्‍जा कर लिया. उनके शासनकाल में ही कर्नाटक एक स्‍वतंत्र राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा.

कदंब राजवंश (325-540 ईस्‍वी)
इसे कर्नाटक का पहला राजसी वंश माना जाता है. इसकी स्‍थापना मयूरशर्मा ने की थी. इसने 200 से ज्‍यादा वर्षों तक शासन किया और प्रशासकीय कार्यों में कन्‍नड़ भाषा के उपयोग की शुरुआत भी इसी दौरान हुई. कदंब राजाओं ने सोने के सिक्‍के भी खुदवाए. 540 ईस्‍वी के आसपास चालुक्‍य राजवंश ने सत्‍ता पर अधिकार कर लिया. हालांकि इसके बाद भी 14वीं सदी तक हनागल और गोवा इलाकों में इसका शासन किसी न किसी रूप में बना रहा.

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पश्चिमी गंग राजवंश (325-999 ईस्‍वी)
शुरुआत में गंग राजवंश की राजधानी कोलार थी जिसे बाद में तालाकड़ स्‍थानांतरित किया गया. इसका शासन दक्षिण कर्नाटक से लेकर आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कई हिस्‍सों तक फैला हुआ था. कोलार में ही सोने की खानें हैं. यह पूर्वी गंग राजवंश से अलग था जिसने आगे चलकर कलिंग क्षेत्र पर शासन किया. गंग राजवंश ने कन्‍नड़ साहित्‍य के विकास में अहम भूमिका निभाई और कई स्‍मारक बनवाए. श्रवणबेलगोला में स्थित गोमतेश्‍वर की प्रतिमा का निर्माण 983 ईस्‍वी के आसपास गंग राजाओं ने ही किया था. यह एक ही पत्‍थर से बनी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है. गंग राजवंश ने करीब 700 वर्षों तक शासन किया, इसके बाद बादामी चालुक्‍यों ने सत्‍ता हथियाई. इसके बाद भी 10वीं सदी के अंत तक बादामी चालुक्‍य और राष्‍ट्रकूट राजवंश के अधीन वे सत्‍ता में बने रहे.    

बादामी चालुक्‍य राजवंश (500-757 ईस्‍वी)
इसकी स्‍थापना पुलकेशिन ने की थी. इस राजवंश ने पूरे कर्नाटक को एक ही शासन के अधीन लाने में अहम भूमिका निभाई. इन्‍होंने संस्‍कृति और वास्‍तुकला के क्षेत्र में काफी काम किया. इसके अलावा पूरे दक्षिण भारत में राजनीतिक माहौल को बदलने में भी इनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका थी. इससे पहले तक छोटे राजवंश अलग-अलग हिस्‍सों में शासन करते थे, लेकिल चालुक्‍यों ने बड़े राजवंशों के शासन की शुरुआत की. उनका शासन अधिकांश कर्नाटक से लेकर महाराष्‍ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्‍य प्रदेश, ओडिशा और गुजरात तक फैला हुआ था. राष्‍ट्रकूट राजवंश के आगगन के बाद इनके शासन का अंत हुआ.  

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राष्‍ट्रकूट राजवंश (757-973 ईस्‍वी)
शुरुआत में ये चालुक्‍यों के अधीन थे. दंतिवर्मन या दंतिदुर्गा दिद्वतीय ने चालुक्‍य राजा कीर्तिवर्मन से सत्‍ता छीन कर राष्‍ट्रकूट राजवंश की नींव रखी. इसे मान्‍यखेत राष्‍ट्रकूट के नाम से भी जाना जाता है. इसे उस समय में दुनिया के चार सबसे शक्तिशाली राजवंशों में गिना जाता था. इसका शासन पूरे कर्नाटक और महाराष्‍ट्र के साथ आंध्र प्रदेश, मध्‍य प्रदेश और तमिलनाडु तक विस्‍तृत था. राष्‍ट्रकूटों ने स्‍थापत्‍य कला के विकास पर काफी ध्‍यान दिया. एलोरा का कैलाश मंदिर राष्‍ट्रकूटों ने ही बनवाया था.

कल्‍याण चालुक्‍य राजवंश (973-1198 ईस्‍वी)
कल्‍याण चालुक्‍यों ने 973 ईस्‍वी में राष्‍ट्रकूट राजवंश का अंत कर दिया. इसका शासन भी पूरे कर्नाटक और महाराष्‍ट्र के साथ आंध्र प्रदेश, मध्‍य प्रदेश और तमिलनाडु तक फैला हुआ था. यह राजवंश करीब 225 वर्षों तक शासन में रहा. इसके बाद कल्‍चुरी राजवंश की शुरुआत हुई, लेकिन यह ज्‍यादा टिकाऊ नहीं रहा. कमजोर शासन के चलते इनका साम्राज्‍य टुकड़ों में बंट गया. इसके बाद उत्‍तरी कर्नाटक में सेवुना और दक्षिण में होयसल राजवंश का शासन स्‍थापित हुआ.

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सेवुना राजवंश (1198-1312 ईस्‍वी)
इन्‍हें देवगिरि यादव राजवंश के नाम से भी जाना जाता है. ये पहले राष्‍ट्रकूट और पश्चिमी चालुक्‍यों के सामंत थे. जब वे कमजोर पड़े तो खुद को स्‍वतंत्र घोषित कर दिया. इस राजवंश के संस्‍थापक दृढ़प्रहार थे. इतिहास में इसे गणितज्ञ भास्‍कराचार्य, लेखक हेमाद्रि और संगीतकार शारंगदेव के लिए जाना जाता है. हालांकि, सेवुना राजाओं की लगातार होयसालों से लड़ाई होती रही. इसी का फायदा उठाकर दिल्‍ली के सुल्‍तान अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर की मदद से उनके शासन का अंत कर दिया.

होयसाला राजवंश (1000-1346 ईस्‍वी)
इसकी स्‍थापना साला ने की थी जो अपने मालिक की जान बचाने के लिए शेर की हत्‍या कर प्रसिद्ध हुए थे. उन्‍हीं के नाम पर इसका नाम होयसाला पड़ा. शुरुआत में इनकी राजधानी बेलूर में थी, जिसे बाद में हलेबिडू स्‍थानांतरित किया गया. इस राजवंश का शासन दक्षिणी कर्नाटक के साथ आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ इलाकों तक था. इस दौरान पूरे दक्षिण भारत में कला, धर्म और स्‍थापत्‍य का काफी विकास हुआ. बेलूर का छन्‍नाकेशव मंदिर, हलेबिडू का होयसालेश्‍वरा मंदिर और सोमनाथपुर का केशव मंदिर होयसालों ने ही बनवाया था. उन्‍होंने कन्‍नड़ के साथ संस्‍कृत साहित्‍य के विकास पर भी ध्‍यान दिया. प्रसिद्ध कन्‍नड़ कवि रूद्रभट्ट, राघवंका, हरिहर और जन इसी काल में हुए.

विजयनगर साम्राज्‍य (1336-1565 ईस्‍वी)
इसकी स्‍थापना हरिहर और बुक्‍का ने की थी. इसकी राजधानी हम्‍पी में थी. यह राजवंश मुसलमान आक्रमणकारियों से मुकाबले के लिए दक्षिण के शासकों को संगठित कर मशहूर हुआ. इसका शासन कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सहित पूरे केरल और तमिलनाडु तक था और अपनी समृद्धि के लिए मशहूर था. इस दौरान कला और संस्‍कृति का भरपूर विकास हुआ. कन्‍नड़ संस्‍कृत, तमिल और तेलुगु साहित्‍य के अलावा कर्नाटक संगीत का प्रसार हुआ. इसके राजाओं ने पूरे दक्षिण भारत में स्‍थापत्‍य कला का विस्‍तार किया. हम्‍पी का किला उन्‍होंने ही बनवाया था जो यूनेस्‍को की विश्‍व विरासत सूची में शामिल है. 1565 ईस्‍वी में तालीकोटा के युद्ध में दक्‍कन के सुल्‍तानों से पराजित होने के बाद इसकी ताकत कमजोर हो गई.

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बहमनी साम्राज्‍य (1347-1527 ईस्‍वी)
यह दक्षिण भारत का पहला मुस्लिम राजवंश था. इसकी स्‍थापना अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने की थी. विजयनगर साम्राज्‍य के कृष्‍णदेव राय के हाथों पराजित होने के बाद इसका पतन हो गया. 1518 के बाद यह पांच टुकड़ों में विभाजित हो गया- अहमदनगर की निजामशाही, गोलकुंडा की कुतुबशाही, बीदर की बरीदशाही, बरार की इमादशाही और बीजापुर की आदिलशाही. इन्‍हें मिलाकर दक्‍कन सल्‍तनत के नाम से जाना जाता है.

बीजापुर सल्‍तनत (1490-1686 ईस्‍वी)
इसकी स्‍थापना यूसुफ आदिलशाह ने की थी. इसके सुल्‍तानों ने इस्‍लामिक स्‍थापत्‍य कला का काफी विकास किया. बीजापुर का गोल गुंबज इसके स्‍थापत्‍य कला का सबसे बड़ा उदाहरण है. 1686 ई में औरंगजेब के हाथों पराजय के बाद इसे मुगल शासन में शामिल कर लिया गया.

कर्नाटक का आधुनिक इतिहास मैसूर के वाडियारों और हैदर अली से शुरू होता है. उनके पतन के बाद यह ब्रिटिश शासन का हिस्‍सा बन गया.

केलाडी के नायक (1500-1763)
इन्‍हें इक्‍केरी के राजाओं के नाम से भी जाना जाता है. पहले से विजयनगर साम्राज्‍य के जागीरदार थे. इनका शासन मध्‍य और तटीय कर्नाटक के साथ केरल, मालाबार और तुंगभद्रा नदी के मैदानी इलाकों तक फैला था. 1763 ईस्‍वी में हैदर अली ने पराजित कर इसे मैसूर का हिस्‍सा बना लिया.

मैसूर के वाडियार (1399-1761)
मैसूर पहले विजयनगर साम्राज्‍य का हिस्‍सा था. स्‍वतंत्र शासन की शुरुआत के बाद वाडियारों ने अपनी राजधानी मैसूर से श्रीरंगपट्टनम स्‍थानांतरित कर ली. 1686 तक इनका शासन करीब पूरे दक्षिण भारत में स्‍थापित हो चुका था. 1687 में इन्‍होंने तीन लाख रुपये कीमत के बदले बेंगलुरू शहर को मुगलों से खरीदा था. 1761 में हैदर अली ने उनके साम्राज्‍य पर अधिकार कर लिया.

श्रीरंगपट्टनम सल्‍तनत (1761-1799)
हैदर अली ने श्रीरंगपट्टनम से मैसूर पर शासन किया. उसके बाद हैदर अली का बेटा टीपू सुल्‍तान का शासन शुरू हुआ. उसका शासन कर्नाटक के अधिकांश हिस्‍सों सहित आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल तक फैला था. 18वीं सदी के उत्‍तरार्द्ध में इस सल्‍तनत की ताकत अपने चरम पर थी. टीपू ने कई बार अंग्रेजों के आक्रमण का मुकाबला किया. 1799 ईस्‍वी में वह तब पराजित हुआ जब अंग्रेजों ने मराठों और हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर उससे लड़ाई लड़ी. इसी युद्ध में टीपू मारा गया,  लेकिन उसकी बहादुरी के लिए टीपू को 'मैसूर' के शेर के नाम से जाना जाता है.

मैसूर के वाडियार (1800-1831)
टीपू की मौत के बाद मैसूर के अधिकांश इलाकों पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया और इसे अपनी रियासत बना लिया. उन्‍होंने वाडियारों को दोबारा शासक बनाया, लेकिन 1831 आते-आते फिर से अंग्रेजों का शासन शुरू हो गया.

अंग्रेजों द्वारा अधिग्रहण (1831-1881)
अंग्रेजों ने मैसूर पर अधिकार करने के बाद अपने प्रशासक नियुक्‍त किए. उन्‍होंने प्रशासन व्‍यवस्‍था में काफी बदलाव किए और साम्राज्‍य को चार हिस्‍सों में बांट दिया- बॉम्‍बे प्रेसिडेंसी, मद्रास प्रेसिडेंसी, हैदराबाद के निजाम और मैसूर.

मैसूर के वाडियार (1881-1950)
1881 में मैसूर पर फिर से वाडियार राजवंश का शासन शुरू हुआ, लेकिन तब तक देश में अंग्रेजों से आजादी की मांग जोर पकड़ने लगी थी. 1947 में आजादी मिलने तक यह वाडियारों के नियंत्रण में ही रहा. आजादी के बाद यह भारत का हिस्‍सा और अलग राज्‍य बना. देश की स्‍वतंत्रता के बाद राज्‍यों को 1956 में भाषा और अन्‍य आधारों पर संगठित किया गया. कन्‍नड़ भाषी जनता के लिए मैसूर राज्‍य बना. 1975 तक मैसूर के पूर्व महाराज ही यहां गवर्नर रहे. 1973 में मैसूर का नाम कर्नाटक रखा गया.

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