Resort Politics: सरकारों को गिराने के लिए नेताओं के लिए 'फेवरेट' बनी ये जगह, एंट्री करते ही बन जाता है 'किला'
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Resort Politics: सरकारों को गिराने के लिए नेताओं के लिए 'फेवरेट' बनी ये जगह, एंट्री करते ही बन जाता है 'किला'

Resort Politics: अपनी पार्टी से बगावत करने वाले विधायक लग्जरी रिज़ॉर्ट में ठहर कर आराम कर रहे होते हैं, जबकि वे बाहर का सियासी तापमान बढ़ाए रखते हैं.

Resort Politics: सरकारों को गिराने के लिए नेताओं के लिए 'फेवरेट' बनी ये जगह, एंट्री करते ही बन जाता है 'किला'

Resort Politics: भारत में 1980 के दशक की 'आया राम गया राम' की राजनीति ने इन दिनों पूरी तरह से एक नया रूप ले लिया है. दअरसल, अपनी पार्टी से बगावत करने वाले विधायक लग्जरी रिज़ॉर्ट में ठहर कर आराम कर रहे होते हैं, जबकि वे बाहर का सियासी तापमान बढ़ाए रखते हैं. चाहे महाराष्ट्र में सरकार गिराने का प्रयास हो, या हाल में हुए राज्यसभा चुनावों के दौरान विधायकों के समूह को एकजुट रखने की कवायद हो, राजनीति में अब विधायकों को किसी लग्जरी होटल या रिज़ॉर्ट में ठहरा कर राजनीतिक घटनाक्रम को तेजी से बदलना सामान्य बात हो गई है. 

इस तरह के रिज़ॉर्ट को उन विधायकों की बागडोर संभालने वाली पार्टी द्वारा एक अभेद्य किले में तब्दील कर दिया जाता है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति उनसे संपर्क नहीं साध सके. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी के विधायकों के एक असंतुष्ट समूह को गुवाहाटी के रेडिसन ब्लू होटल में ठहराये जाने के कारण ‘सैरगाह की राजनीति’ एक बार फिर से चर्चा में आ गई है.

एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र की राजनीति में लाया भूचाल

ये विधायक कुछ दिन पहले सूरत से गुवाहाटी ले जाए गये थे, जिसके बाद वे वहां होटल में ठहर कर पार्टी (शिवसेना) नेतृत्व को इंतजार करा रहे रहे हैं, जबकि इनके कारण महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है.

गौरतलब है कि शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की अगुवाई में पार्टी के विधायकों के एक समूह ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बीते मंगलवार को बगावत का बिगूल फूंक दिया. इसके बाद इन विधायकों को सूरत के होटल ले जाया गया था.

बीते वर्षों में कई मौकों पर ‘सैरगाह की राजनीति’ ने बगावत करने वाले नेताओं को सकारात्मक परिणाम दिए हैं. लेकिन कई बार पार्टी के खिलाफ जाने वाले विधायकों और नेताओं को अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति में असफलता का सामना भी करना पड़ा है.

वर्ष 1982 में देवीलाल-भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन एक विधायक को उस होटल से भागने से रोकने में विफल रहा, जहां विधायकों को ठहराया गया था. इसके अलावा, हाल में राजस्थान में कांग्रेस नेता सचिन पायलट द्वारा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार गिराने का प्रयास भी असफल रहा था.

नेताओं की नैतिकता पर गंभीर सवाल 

‘सैरगाह की राजनीति’ ने नेताओं की नैतिकता पर गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं. लोकसभा के पूर्व महासचिव पी डी टी अचारी ने कहा कि यह तरकीब दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों में नहीं अपनाई जाती है. उन्होंने इसे लोकतंत्र का सबसे भद्दा मजाक करार दिया.

अचारी ने मीडिया पर ‘सैरगाह की राजनीति’ की "कुरूपता" को उजागर करने के बजाय उसे सनसनीखेज‍‍ बनाने का भी आरोप लगाया. लोकसभा के पूर्व महासचिव ने पीटीआई-भाषा से कहा, " सैरगाह की राजनीति का चलन हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की कमजोरी को दर्शाता है, यह हमारे लोकतंत्र के भ्रष्ट और अनैतिक चरित्र को भी प्रदर्शित करता है. यह पतन का संकेत है."

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राजनीतिक टिप्पणीकार रशीद किदवई ने भी समान विचार प्रकट करते हुए कहा कि जब 'आया राम, गया राम' (की राजनीति) का चलन था, तो इसकी आलोचना की जाती थी क्योंकि इसकी राजनीतिक और सामाजिक स्वीकार्यता नहीं थी. लेकिन मौजूदा दौर में ‘सैरगाह की राजनीति’ की आलोचना नहीं की जाती. 

किदवई ने कहा, "राजनीति की नैतिकता में तीन चरणों में गिरावट आई है -- पहला, दलबदल रोधी कानून बागी विधायकों को संरक्षण प्रदान करता है, जैसा कि हमने मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में देखा. दूसरा, बुद्धिजीवी इसकी आलोचना नहीं करते हैं और इसे मुख्यधारा की मीडिया द्वारा ‘मास्टरस्ट्रोक’ के रूप में देखा जाता है. और तीसरा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों के लोगों ने बगावत करने वाले विधायकों को शानदार जनादेश दिया है तथा ऐसी चीजों को अपनी स्वीकृति दी है."

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