गर्भावस्था के नौ महीनों के दौरान करवा चौथ, तीज, शिवरात्रि और नवरात्रि जैसे त्योहारों का पड़ना लाजिमी है. ऐसे में जब सामान्य तौर पर अधिकांश महिलाएं व्रत रखती हैं तो क्या गर्भवती महिलाएं भी उपवास रख सकती हैं?
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नई दिल्ली: गर्भावस्था के नौ महीनों के दौरान करवा चौथ, तीज, शिवरात्रि और नवरात्रि जैसे त्योहारों का पड़ना लाजिमी है. ऐसे में जब सामान्य तौर पर अधिकांश महिलाएं व्रत रखती हैं तो क्या गर्भवती महिलाएं भी उपवास रख सकती हैं? यह बड़ा सवाल है. चिकित्सकों का कहना है कि व्रत के दौरान अच्छा-बुरा प्रभाव केवल मां पर ही नहीं, बल्कि होने वाली संतान पर भी पड़ सकता है, इसलिए सावधानी बहुत जरूरी है. यदि सावधान नहीं रहा गया तो गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरा पैदा हो सकता है.
गर्भावस्था के दौरान व्रत रखना बहुत हद तक आपके शरीर पर निर्भर करता है, क्योंकि जब आप अंदर से अच्छा महसूस कर रही हैं, तब उपवास रखने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन कुछ मामलों जैसे शरीर में खून की कमी, कमजोरी, उच्च रक्तचाप या फिर गर्भकालीन मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) में चिकित्सक गर्भवती महिला को उपवास रखने की सलाह नहीं देते हैं, क्योंकि इससे न केवल आपको बल्कि आपके गर्भ में पल रहे शिशु को भी नुकसान हो सकता है.
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कोलकाता के आनंदपुर स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल में परामर्शी प्रसूति विशेषज्ञ डॉ. विकास बनर्जी ने बताया, "गर्भावस्था में पहली और तीसरी तिमाही में व्रत की सलाह नहीं दी जाती. पहले तीन महीनों में अगर लंबे समय तक भूखा रहा जाए, तो जी मिचलाना और उल्टी की समस्या हो सकती है. तीसरी तिमाही में ऐसा करने से चक्कर का खतरा रहता है. गर्भावस्था में होने वाला मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) खून की कमी (एनीमिया) या गर्भ में एक से अधिक बच्चा हो तो व्रत-उपवास करना खतरनाक भी हो सकता है."
अगर सबकुछ सामान्य है और आप व्रत रख रही हैं, तो भी ये सावधानियां बरतनी चाहिए :
उपवास का गर्भवती के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस सवाल पर दिल्ली के इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर की चेयरपर्सन डॉ. रीता बख्शी कहती हैं, "गर्भावस्था के दौरान उपवास के कई अल्पावधि या दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं. कुछ महिलाएं खतरे को नजरंदाज करते हुए उपवास रखती हैं. इसका तत्काल प्रभाव हालांकि मां पर ही पड़ता है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि उपवास कभी-कभी समय से पहले बच्चे के जन्म (एमेच्योर डिलीवरी) का कारण भी हो सकता है."
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उन्होंने कहा, "इतना ही नहीं, शरीर में पानी की कमी आपके गर्भस्थ शिशु को प्रभावित कर सकती है और उपवास भ्रूण के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है. साथ ही जन्म के समय बच्चे का वजन कम रह सकता है."
डॉ. रीता ने कहा, "अगर किसी तरह की समस्या है, फिर तो यह बेहद अहम है कि आप अपने चिकित्सक की सलाह लें और वह जैसा कहें, वैसा ही करें. अगर चिकित्सक उपवास करने से मना नहीं करते हैं तब भी खानपान का ध्यान रखें, नियमित परामर्श जैसी सामान्य चीजों का ध्यान रखकर आप व्रत में रह सकती हैं. त्योहार का मजा उठाइए, पर सेहत को सर्वोपरि रखते हुए."
पंजाब के पठानकोट स्थित अमनदीप हॉस्पिटल की प्रसूति विशेषज्ञ डॉ. रश्मि सम्मी के अनुसार, "गर्भवती महिलाओं के लिए व्रत पर निर्णय लेना हमेशा उधेड़बुन भरा रहता है, जहां परंपराओं को पूरा करना होता है, वहीं स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी महत्वपूर्ण होता है. मेरी सलाह है कि अगर आप स्वस्थ हैं, तो व्रत रखिए और सबसे जरूरी बात कि अपने चिकित्सक के 'हां' कहने पर ही उपवास रखें."
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मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल में आहार विशेषज्ञ सलाहकार डॉ. जमुरुद्द पटेल कहते हैं, "धार्मिक प्रवृत्ति की किसी भी महिला के लिए व्रत की काफी अहमियत है. कई महिलाएं गर्भधारण में भी उपवास रखने का फैसला करती हैं. करवा चौथ, तीज, शिवरात्रि जैसे त्योहार नौ महीने की गर्भावस्था के बीच पड़ते रहते हैं, ऐसे में गर्भावस्था के दौरान उपवास किया जाए या नहीं, इस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "इस बारे में कई शोध किए गए हैं. इसके बावजूद यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि उपवास करना आपके और गर्भस्थ शिशु के लिए सुरक्षित रहेगा. कुछ शोध रिपोर्ट में उपवास का बच्चे पर कोई असर न पड़ने की बात कही गई है, तो कुछ में कहा गया है कि जो माताएं उपवास करती हैं, उनके गर्भ से जन्में बच्चे को आगे चलकर कई तरह की शारीरिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है. कुल मिलाकर अगर गर्भावस्था में पहले से कोई मुश्किल नहीं है, तो उपवास से कोई खास असर नहीं पड़ता. बस, आपको थोड़ा अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है."