प्रणब मुखर्जी के RSS दफ्तर जाने पर मोहन भागवत ने तोड़ी चुप्पी, बताई पूरी कहानी
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प्रणब मुखर्जी के RSS दफ्तर जाने पर मोहन भागवत ने तोड़ी चुप्पी, बताई पूरी कहानी

आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ सभी के लिए आत्मीयता को आदर्श मानता है और इसलिए उसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने कार्यक्रम में बुलाने में कोई हिचक नहीं हुई.

RSS के हेडक्वार्टर में प्रणब मुखर्जी ने अनेकता में एकता की संस्कृति पर अपनी बात रखी थी.

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी के जाने पर मचे विवाद पर पहली बार RSS चीफ का बयान आया है. आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ सभी के लिए आत्मीयता को आदर्श मानता है और इसलिए उसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने कार्यक्रम में बुलाने में कोई हिचक नहीं हुई. भागवत ने कहा, ‘जब वह (मुखर्जी) एक पार्टी में थे, तो वह उनसे (कांग्रेस से) संबंधित थे, लेकिन जब वह देश के राष्ट्रपति बन गए तो वह पूरे देश के हो गए.’

ABVP के कार्यक्रम में बोल रहे थे भागवत
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की ओर से आयोजित प्रेरणा विद्यार्थी सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘हमें उन्हें आमंत्रित करने में कोई हिचक नहीं हुई और उन्हें आने में कोई हिचक नहीं हुई. हम सब एक ही देश के हैं और हम सबमें एक दूसरे के लिए आत्मीयता होनी चाहिए.’ 

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गौरतलब है कि पिछले महीने आरएसएस की ओर से मुखर्जी को अपने एक कार्यक्रम में बुलाने और पूर्व राष्ट्रपति द्वारा न्योता स्वीकार कर लिए जाने पर कई लोगों ने आपत्ति जताई थी. कांग्रेस के कुछ नेताओं ने मुखर्जी की आलोचना भी की थी. 

प्रेरणा विद्यार्थी सम्मेलन में विद्यार्थी परिषद के संस्थापक दिवंगत दत्ताजी डिडोलकर के जीवन पर लिखी गई एक किताब का भी विमोचन हुआ. इस मौके पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे. गडकरी ने अपने छात्र जीवन के दिनों में डिडोलकर से अपनी चर्चाओं को याद किया. 

प्रणब ने RSS को दिलाई भारत की बहुलतावादी संस्कृति की याद
मालूम हो कि RSS के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सरल शब्दों में भारत की बहुलतावादी संस्कृति का बखान किया था. उन्होंने आरएसएस काडर को बताया कि राष्ट्र की आत्मा बहुलवाद और पंथनिरपेक्षवाद में बसती है. पूर्वराष्ट्रपति ने प्रतिस्पर्धी हितों में संतुलन बनाने के लिए बातचीत का मार्ग अपनाने की जरूरत बताई. उन्होंने साफतौर पर कहा कि घृणा से राष्ट्रवाद कमजोर होता है और असहिष्णुता से राष्ट्र की पहचान क्षीण पड़ जाएगी. उन्होंने कहा, "सार्वजनिक संवाद में भिन्न मतों को स्वीकार किया जाना चाहिए."

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सांसद व प्रशासक के रूप में 50 साल के अपने राजनीतिक जीवन की कुछ सच्चाइयों को साझा करते हुए प्रणब ने कहा, "मैंने महसूस किया है कि भारत बहुलतावाद और सहिष्णुता में बसता है."

उन्होंने कहा, "हमारे समाज की यह बहुलता सदियों से पैदा हुए विचारों से घुलमिल बनी है. पंथनिरपेक्षता और समावेशन हमारे लिए विश्वास का विषय है. यह हमारी मिश्रित संस्कृति है जिससे हमारा एक राष्ट्र बना है."

प्रणव मुखर्जी आरएसएस मुख्यालय में यहां तीसरे सालाना प्रशिक्षण शिविर को संबोधित कर रहे थे. उनके इस शिविर में शिरकत करने का निमंत्रण स्वीकार किए जाने पर कांग्रेस और वामपंथी दलों ने आलोचना की है.

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महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के दर्शनों की याद दिलाते हुए मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रीयता एक भाषा, एक धर्म और एक शत्रु का बोध नहीं कराती है.

प्रणब अपना भाषण अंग्रेजी में दे रहे थे, मगर बीच-बीच में वह अपनी मातृभाषा बांग्ला के मुहावरों का इस्तेमाल भी कर रहे थे.

उन्होंने कहा, "यह 1.3 अरब लोगों के शाश्वत एक सार्वभौमिकतावाद है जो अपने दैनिक जीवन में 122 भाषाओं और 1,600 बोलियों का इस्तेमाल करते हैं. वे सात प्रमुख धर्मो का पालन करते हैं और तीन प्रमुख नस्लों से आते हैं, मगर वे एक व्यवस्था से जुड़े हैं और उनका एक झंडा है. साथ ही भारतीयता उनकी एक पहचान है और उनका कोई शत्रु नहीं है. यही भारत को विविधता में एकता की पहचान दिलाता है.'

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