महाराष्ट्र में बहुसंख्यक रहे मराठाओं के आरक्षण की मांग सरकार के लिए गले की फांस बन गई है.
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राजीव रंजन सिंह, मुंबई: महाराष्ट्र में बहुसंख्यक रहे मराठाओं के आरक्षण की मांग सरकार के लिए गले की फांस बन गई है. पिछले दिनों राज्य भर में हुए आंदोलन के कारण सरकार की भरपूर किरकिरी पहले ही हो चुकी है. गुरुवार को बीजेपी के विधायक, प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ नेताओं की बैठक मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने बुलाई थी. जिसमें मराठा आरक्षण के लिए आगे किस तरह के कदम उठाए जाएं इस पर गहन विचार विमर्श किया गया. मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस विधायक सहित वरिष्ठ नेताओं के जरिए की गई मैराथन मीटिंग से और विधायकों के साथ चर्चा करके इस निर्णय पर पहुंचे कि मराठा आरक्षण के लिए न्यायिक और योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाए. इसके अलावा मराठा समाज को सरकार की तरफ से अलग-अलग तरह से चलाई जा रही योजनाओं के जरिए मदद पहुंचाई जाए.
मराठा समाज से आंदोलन को हिंसक न होने देने का आह्वान
मराठा समाज के नामी व्यक्तियों और विचारकों के साथ बैठक के बाद सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठा समाज को विधिसम्मत और स्थायी आरक्षण देंगे. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बैठक में दी गई सूचना का सरकार पालन करेगी. फडणवीस ने कहा, "मराठा समाज के विचारक इस बैठक में आए और उन्होंने कई अहम बातें रखीं. मराठा विचारकों के आवाहन के कारण राज्य में शांति बहाली होगी. मराठा समाज से हमने आह्वान किया है कि वो आंदोलन को हिंसक नहीं होने दें. साथ ही कोई भी व्यक्ति आत्महत्या नहीं करे."
मराठा समाज के साथ आरक्षण के पक्ष में है बीजेपी
महाराष्ट्र के सांस्कृतिक और शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने जी मीडिया से बातचीत में कहा, "भारतीय जनता पार्टी मराठा समाज के साथ आरक्षण के पक्ष में है. मराठा समाज के युवाओं को जो सरकार की तरफ से चलाई जा रही योजनाएं हैं उन से लाभान्वित करने के लिए सरकार का हर विधायक सहायता केंद्र के जरिए लाभ देगा. इसके साथ ही युवाओं में आत्महत्या की जो परिस्थितियां बन रही हैं उसे दूर करने के साथ ही आंदोलन को हिंसक रूप नहीं देने के लिए आह्वान किया जाएगा.
35 फीसदी लोग मांग रहे हैं 16 प्रतिशत आरक्षण
राज्य के 35 प्रतिशत लोग सरकार से 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं. जिस वजह से महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार के माथे पर बल पड़ गया है. सरकार के सामने समस्या यह है कि बगैर ओबीसी समाज को दिए जा रहे आरक्षण में छेड़छाड़ किए तकरीबन 2 करोड़ 60 लाख मराठाओं को आरक्षण का लाभ कैसे दिया जाए. इसके लिए राजकीय विश्रामगृह सह्याद्री में कभी मराठा साहित्यकार, लेखक और कलाकारों से मीटिंग करते रहे तो कभी अपने विधायक दल के नेताओं के साथ मैराथन मीटिंग करते रहे. पिछले दिनों आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलन से सरकार की भरपूर किरकिरी हुई. इससे अपने आप को अलग करने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है. गुरुवार को हुई इस बैठक को मुख्यमंत्री का डैमेज कंट्रोल बैठक भी माना जा रहा है.
शुरू हो चुका है मराठाओं को आरक्षण देने का विरोध
इस मामले में मुख्यमंत्री फडणवीस ने जानकारों से राय मशवरा तो की है लेकिन मराठाओं को आरक्षण देने का विरोध भी शुरू हो गया है. OBC संघर्ष समन्वय समिति का मानना यह है कि आरक्षण किसी भी तरह से ओबीसी कोटे से कम नहीं किया जाए, इसके साथ ही उनका कहना है कि आरक्षण के सही दावेदार मराठा नहीं हैं क्योंकि मराठाओं की सामाजिक स्थिति दूसरी पिछड़ी जातियों से बेहतर है इसलिए आरक्षण के वह दावेदार किसी भी हाल में नहीं हैं.
'ओबीसी के कोटे से कोई भी कटौती ना की जाए'
OBC संघर्ष समन्वय समिति के नेता राजाराम नामदेव पाटिल ने जी मीडिया से बातचीत के दौरान स्पष्ट कहा, "मराठा समाज को आरक्षण आखिर किस आधार पर दिया जाए. देश में सबसे ज्यादा ऊंचे यही हैं. सामाजिक रूप से कोई भी मराठा पिछड़े नहीं हैं. शुगर कारखानों पर इन्हीं का कब्जा है. आरक्षण अगर दिया भी जाता है तो ओबीसी के कोटे से कोई भी कटौती ना की जाए."
कई मुद्दों पर घिर सकती है महाराष्ट्र सरकार
सरकार अपनी मैराथन मीटिंग के जरिए भले ही अपने चेहरे को बचाने की कोशिश करे लेकिन कई मुद्दों पर घिरती भी दिखी. सरकार के जरिए चलाई जा रही योजनाओं से मराठाओं को लाभांवित करने की कोशिशें मराठाओं के आरक्षण की मांग के बदले ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो सकती है. लेकिन, यह वक्त के साथ स्पष्ट हो पाएगा कि आखिर मराठाओं को आरक्षण बीजेपी सरकार दिला सकेगी या केवल वायदे करेगी.