त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा का ढहना किसी की याद दिलाता है!
Advertisement
trendingNow1378324

त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा का ढहना किसी की याद दिलाता है!

मार्क्‍सवादी क्रांति के शिखर पुरुष व्‍लादिमीर लेनिन की प्रतिमा को जमींदोज किया जाना एक तरह से लेफ्ट रूल को स्‍मृतियों से भी खुरच कर बाहर फेंक देने का प्रयास है.

 त्रिपुरा के बेलोनिया कॉलेज स्‍क्‍वायर में स्‍थापित लेनिन की प्रतिमा को ढहाया गया.(फोटो: ANI)

त्रिपुरा में 25 साल पुराने 'लेफ्ट' किले के ढहने के बाद इस विचारधारा के पुरोधा व्‍लादिमीर लेनिन की प्रतिमा को ढहा दिया गया. त्रिपुरा के बेलोनिया कॉलेज स्‍क्‍वायर में स्‍थापित इस प्रतिमा को भारत माता के नारों के बीच ढहाया गया. यह बताने के लिए किसी विशेष ज्ञान की जरूरत नहीं कि किन लोगों ने इसको गिराया. आखिर 25 साल तक त्रिपुरा पर एकछत्र शासन करने वाले वाम मोर्चे की सरकार को पिछले दिनों बीजेपी ने करारी शिकस्‍त दी है. जिस दिन चुनावी नतीजे आ रहे थे, उस दिन कई बीजेपी समर्थक भाव-विह्वल होकर त्रिपुरा में जश्‍न मनाते हुए यह कहते पाए गए कि हमें आजादी मिल गई. बीजेपी ने भी आधिकारिक रूप से अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि 25 बाद के कुशासन के बाद त्रिपुरा आजाद हुआ है.

  1. त्रिपुरा में बीजेपी ने जबर्दस्‍त जीत हासिल की
  2. शून्‍य से एकदम शिखर पर पहुंची बीजेपी
  3. पिछले 25 साल से थी लेफ्ट की सरकार

1964 के बाद 'लेफ्ट' पर सबसे गहरा संकट, लेकिन 'बॉस' येचुरी को मिल सकती है राहत

उसी कड़ी में मार्क्‍सवादी क्रांति के शिखर पुरुष व्‍लादिमीर लेनिन की प्रतिमा को जमींदोज किया जाना एक तरह से लेफ्ट रूल को स्‍मृतियों से भी खुरच कर बाहर फेंक देने का प्रयास है. लेकिन इसके साथ ही यह सवाल उठता है कि किसी लोकतांत्रिक देश में वैचारिक प्रतीकों के साथ छेड़छाड़ कितनी उचित है? देश के किसी हिस्‍से में अंबेडकर, गांधी या किसी भी महापुरुष की प्रतिमा के साथ किसी भी प्रकार की कोई छेड़छाड़ को क्‍या हम किसी भी वैचारिक पक्ष से जायज ठहरा सकते हैं? इसी संदर्भ में लेनिन भी मार्क्‍सवादी चिंतन के प्रतीक माने जाते हैं. इस चिंतन की बुनियाद भले ही भारत में नहीं हो लेकिन बंगाल, केरल और त्रिपुरा में लोगों ने इस प्रति कभी न कभी आस्‍था प्रकट की ही है. इसीलिए तो बंगाल में 34 साल और त्रिपुरा में 25 साल 'लेफ्ट' सरकार रही. ऐसे में सत्‍ता हासिल करने के बाद पूर्ववर्ती सरकारों के प्रतीकों को ढहाने का क्‍या नया चलन हम बनाने जा रहे हैं? ये एक बड़ा सवाल है, जिसका उत्‍तर हमको तलाशना होगा?

त्रिपुरा जीत के साथ ही PM नरेंद्र मोदी ने बनाया खास रिकॉर्ड, इंदिरा गांधी को पीछे छोड़ा

यह सवाल इसलिए भी अहम है क्‍योंकि बीजेपी 42 प्रतिशत वोट हासिल कर सत्‍ता में पहुंची है तो उसकी तुलना में लेफ्ट को उससे महज डेढ़ प्रतिशत वोट ही कम मिले हैं. ऐसे में भले ही किसी दल को सत्‍ता में आने का मौका मिल गया हो लेकिन केवल इस आधार पर विरोधी के वैचारिक प्रतीकों को खंडित किए जाने को क्‍या जायज ठहराया जा सकता है?

#WATCH: Statue of Vladimir Lenin brought down at Belonia College Square in Tripura. pic.twitter.com/fwwSLSfza3

त्रिपुरा के साथ BJP की 20 राज्‍यों में सत्‍ता, यह करिश्‍मा करने वाली पहली पार्टी

fallback
इराक के तानाशाह रहे सद्दाम हुसैन को 2006 में फांसी दे दी गई.(फाइल फोटो)

इराक
जिस क्षण त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा को बुलडोजर से ढहाया गया, उस वक्‍त याद आया कि करीब डेढ़ दशक पहले जब इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को अमेरिका ने सत्‍ता से बेदखल किया तो उस वक्‍त भी इसी तरह से लोगों ने आजादी का जश्‍न मनाते हुए बगदाद में स्‍थापित उनकी प्रतिमा को ढहा दिया था. यह सही है कि सद्दाम हुसैन तानाशाह थे, मानवाधिकारों के उल्‍लंघन के तमाम आरोप उन पर लगे थे लेकिन क्‍या यह सही नहीं है कि सद्दाम के बाद इराक आज तबाही के मुहाने पर खड़ा है. सद्दाम के तीन दशकों के शासन में इराक एक मजबूत देश गिना जाता था, पश्चिम एशिया में उसकी हनक थी. आज वही इराक कहां है? आज सोमालिया सरीखे देश की तरह वहां भी अमन-चैन कोसों दूर है?

सद्दाम हुसैन पर अलकायदा संगठन से नाता रखने और नरसंहार करने में सक्षम हथियारों को रखने का आरोप लगाते हुए 2003 में अमेरिका के नेतृत्‍व में पश्चिमी सेनाओं ने इराक पर हमला बोल दिया. उसके बाद इराक के फिरदौस स्‍क्‍वायर में स्‍थापित सद्दाम की प्रतिमा को जब ढहाया गया तो प्रतीकात्‍मक रूप से इसको सद्दाम की सत्‍ता के पतन के रूप में देखा गया. 13 दिसंबर, 2003 को सद्दाम हुसैन को पकड़ लिया गया. अंतरराष्‍ट्रीय न्‍यायालय में 1982 में 148 शिया नागरिकों की हत्‍या के मामले में उनको मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी ठहराया गया. 30 दिसंबर, 2006 को सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी गई.

Trending news