बड़ी बात यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने संस्थापक सदस्य कुमार विश्वास को टिकट नहीं दिया, जबकि उन्हें राज्यसभा का टिकट दिए जाने को लेकर पहले से ही पार्टी में बगावत की स्थिति रही.
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नई दिल्ली : आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा चुनावों के लिए बुधवार को अपने तीनों उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी. पार्टी ने एनडी गुप्ता, संजीव गुप्ता और संजय सिंह को उच्च सदन में जाने के लिए टिकट दिया है. बड़ी बात यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने संस्थापक सदस्य कुमार विश्वास को टिकट नहीं दिया, जबकि उन्हें राज्यसभा का टिकट दिए जाने को लेकर पहले से ही पार्टी में बगावत की स्थिति रही. आखिर केजरीवाल ने अपने इस पुराने साथी पर विश्वास क्यों नहीं जताया, इसकी कुछ बड़ी वजहें ये हैं...
कुमार विश्वास और 'उनके गुट' को हावी नहीं होने देना चाहते केजरीवाल
पिछले कुछ समय से कुमार विश्वास और पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. केजरीवाल और कुमार विश्वास के बीच खुलकर मतभेद की स्थिति तब सामने आई, जब 2017 में ओखला से विधायक अमानतुल्ला खां ने कुमार विश्वास को बीजेपी और आरएसएस का एजेंट बता डाला था. इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया था, 'कुमार विश्वास मेरा छोटा भाई है.' जिसके जवाब में कुमार विश्वास ने एक टीवी मुलाकात में कहा, 'हम रिश्तेदार नहीं है....हम सभी एक मकसद के लिए कार्य कर रहे हैं.' इस घटना के बाद से पार्टी के दोनों शीर्ष नेताओं के बीच अविश्वास की एक दीवार खड़ी हो गई. इस विवाद के बाद कुमार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाले अमानतुल्ला खां को पार्टी ने निलंबित तो कर दिया, लेकिन उनका निलंबन काफी लंबा नहीं चला, जिसके अलग-अलग मतलब निकाले गए. इसके बाद राज्यसभा चुनाव के लिए कुमार की 'दावेदारी' भी टकराव की वजह बन गई, जब उनके समर्थकों ने टिकट पाने की मांग पुरजोर तरीके से उठा डाली और पार्टी दफ्तर में धरना देकर इस पर काफी हो-हल्ला भी मचाया था. लिहाजा, यह साफ हो गया था कि कुमार विश्वास और उनके समर्थक पार्टी और केजरीवाल के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं. ऐसे में केजरीवाल को साफ पता चल गया था कि विश्वास और उनका गुट पार्टी एवं उन पर हावी हो रहा है.
बीसाजेपी के समर्थक नहीं तो 'भाजपा-विरोधी' भी नहीं
दरअसल, आम आदमी पार्टी की रणनीति बीजेपी के खिलाफ रही है. कुमार को प्रखर रूप से 'राष्ट्रवादी' और बीजेपी से 'हमदर्दी' रखने वाला माना जाता है और वह प्रत्यक्ष रूप से बीजेपी के समर्थक नहीं तो 'भाजपा-विरोधी' भी नहीं हैं. पिछले कुछ वक्त में कुमार अप्रत्यक्ष रूप से अपने बयानों में बीजेपी का कहीं न कही समर्थन भी करते दिखे. पार्टी के सदस्य और ओखला से विधायक अमानतुल्ला खां कुमार विश्वास को बीजेपी और आरएसएस का एजेंट भी बता चुके हैं. उस वक्त दिल्ली में कुमार विश्वास के खिलाफ पोस्टर भी लगे थे, जिनमें लिखा गया था 'भाजपा का यार है, कवि नहीं गद्दार है.' मतभेद की एक वजह उनका 'स्वतंत्र' दृष्टिकोण भी है. लिहाजा, पार्टी का एक बड़ा खेमा साफ़-साफ़ उनके ख़िलाफ़ था.
कुमार का खुलकर राज्यसभा टिकट की दावेदारी करना
बीते नवंबर माह में कुमार विश्वास ने राज्यसभा सीट के लिए खुलकर अपनी दावेदारी प्रस्तुत की थी. उन्होंने कहा था कि उन्हें राज्यसभा की सीट से वंचित करने की साजिश हो रही है. कुमार के साथ भी उनके काफी कुछ आक्रामक समर्थक दिखे हैं. कुमार आम आदमी पार्टी के 'पुनरुद्धार' की बातें भी कर रहे हैं. यह सब पार्टी 'हाईकमान' को बर्दाश्त नहीं हुआ. हालांकि कुमार कहते रहे हैं कि उनके दरवाजे से राज्यसभा की कई सीटें वापस गई हैं. उनके हाल के एक ट्वीट में कहा गया, 'पहले देश, फिर दल, फिर व्यक्ति...अभिमन्यु के वध में भी उसकी विजय है.'