DNA Analysis: एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने के 5 बड़े मायने, जानिए BJP ने क्यों लिया ये फैसला
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DNA Analysis: एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने के 5 बड़े मायने, जानिए BJP ने क्यों लिया ये फैसला

DNA Analysis: शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के सीएम बन गए हैं. शिंदे ने आज (गुरुवार को) मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. इस खबर में जानिए बीजेपी ने शिवसेना के बागी गुट को समर्थन करके शिंदे को सीएम क्यों बनाया?

DNA Analysis: एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने के 5 बड़े मायने, जानिए BJP ने क्यों लिया ये फैसला

Eknath Shinde Maharashtra New CM: एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को महाराष्ट्र (Maharashtra) का सीएम बनाने का फैसला अभूतपूर्व है और इस फैसले के पांच बड़े मायने हैं. पहला.. एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी (BJP) ने सीधे परिवारवाद पर प्रहार किया है. कांग्रेस और NCP ने जब शिवसेना (Shiv Sena) के साथ गठबंधन की सरकार बनाई तो इस सरकार में मुख्यमंत्री का पद ठाकरे परिवार को मिला. उद्धव ठाकरे इसीलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, क्योंकि वो बालासाहेब ठाकरे के पुत्र हैं. ये उनकी सबसे बड़ी योग्यता थी. लेकिन जब बीजेपी ने शिवसेना के बागी गुट के साथ मिल कर सरकार बनाई तो मुख्यमंत्री का पद एकनाथ शिंदे को दिया गया, जो जमीन से जुड़े हुए नेता हैं. यानी एकनाथ शिंदे किसी परिवार की बदौलत मुख्यमंत्री नहीं बने.

शिवसेना में बगावत उसकी अंदरूनी राजनीति का नतीजा

दूसरा.. इस फैसले के जरिए बीजेपी ने ये बताने की कोशिश की है कि उसे सत्ता और मुख्यमंत्री पद का कोई लालच नहीं है. तीसरा.. इस फैसले से लोगों के बीच ये संदेश भी गया है कि शिवसेना में बगावत उसकी अंदरूनी राजनीति का नतीजा है, ना कि इसके पीछे बीजेपी है. हालांकि अगर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बन जाते तो ये संदेश जाता कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए शिवसेना को तोड़ा है.

शिवसेना पर एकनाथ शिंदे का दावा मजबूत हो गया

चौथा.. एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने से उद्धव ठाकरे का शिवसेना पर दावा और कमजोर हो जाएगा. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि महाराष्ट्र में बीजेपी ने नई सरकार का गठन शिवसेना के साथ किया है. एकनाथ शिंदे ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वो शिवसेना में हैं और ये सरकार शिवसेना और बीजेपी की होगी. यानी इस फैसले के बाद शिवसेना पर एकनाथ शिंदे का दावा मजबूत हो गया है और संभव है कि सरकार के बाद अब शिवसेना भी ठाकरे परिवार के हाथ से निकल जाए. दिलचस्प बात ये है कि इस फैसले की वजह से अब उद्धव ठाकरे ना तो सरकार में हैं और ना ही विपक्ष में हैं. यानी उनका भविष्य अभी अधर में फंसा हुआ है.

महाराष्ट्र के लोगों के लिए है ये संदेश

और पांचवां पॉइंट ये कि इस राजनीतिक घटनाक्रम में एक संदेश महाराष्ट्र के लोगों के लिए भी है और वो संदेश ये है कि अगर महाराष्ट्र के लोग राज्य में स्थाई सरकार चाहते हैं तो बीजेपी से अच्छा विकल्प उनके लिए कोई और नहीं हो सकता.

एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बनना बड़ी खबर है. लेकिन उससे भी बड़ी खबर है देवेंद्र फडणवीस का डिप्टी सीएम बनना. सोचिए, क्या ये किसी और पार्टी में मुमकिन है? बीजेपी के पास राज्य में सबसे ज्यादा 106 सीटें हैं और देवेंद्र फडणवीस 2014 से 2019 तक राज्य में पांच साल तक सरकार चला चुके हैं. और उनके पास लम्बा राजनीतिक अनुभव है. लेकिन इसके बावजूद वो इस सरकार में डिप्टी CM की भूमिका निभाएंगे. इससे पता चलता है कि बीजेपी में एक नेता और एक परिवार का कल्चर नहीं है.

आज आपको ये भी समझना चाहिए कि बीजेपी और दूसरे विपक्षी दलों में बुनियादी फर्क क्या है? बीजेपी एक संगठन से जुड़ी हुई पार्टी है. यानी उसकी मुख्य ताकत कोई परिवार नहीं है. बल्कि उसका संगठन और उसके कार्यकर्ता ही उसकी मुख्य ताकत हैं. जबकि एक परिवार वाली पार्टियों में संगठन का ज्यादा महत्व नहीं होता बल्कि इन पार्टियों में हाईकमान वाला कल्चर होता है. और जो ये परिवार चाहते हैं, वही उनकी पार्टियों में होता है. इस बुनियादी फर्क की वजह से ही आज बीजेपी में एक कार्यकर्ता मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच सकता है लेकिन एक परिवार वाली पार्टियों में सीएम और पीएम का पद उसी परिवार के सदस्यों के लिए फिक्स होता है.

उदाहरण के लिए.. बीजेपी में प्रधानमंत्री मोदी की शुरुआत एक कार्यकर्ता के रूप में हुई थी. इसके बाद वर्ष 1987 में उन्हें गुजरात बीजेपी का महासचिव नियुक्त किया गया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने गुजरात बीजेपी को मजबूत करने का काम किया. और वर्ष 1995 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया और इस दौरान उन्होंने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी प्रभारी के तौर पर काम किया. वर्ष 1998 में बीजेपी में उनका प्रमोशन हुआ और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया. और फिर वर्ष 2001 में उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया. और गुजरात में बीजेपी को लगातार तीन चुनाव जिताने के बाद उनकी राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री हुई और वो वर्ष 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने. यानी उन्होंने बिना किसी राजनीतिक परिवार से होते हुए एक कार्यकर्ता से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर तय किया जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं हैं.

इंदिरा गांधी इसलिए देश की प्रधानमंत्री बनीं, क्योंकि वो जवाहरलाल नेहरु की बेटी थीं. राजीव गांधी इसलिए प्रधानमंत्री बने, क्योंकि वो इंदिरा गांधी के बेटे थे. और इसके बाद सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी इसलिए कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने, क्योंकि वो गांधी परिवार से हैं.

और यहां बात सिर्फ कांग्रेस की नहीं है. एम. के. स्टालिन इसलिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने, क्योंकि उनके पिता एम. करुणानिधि DMK पार्टी के अध्यक्ष थे. इसी तरह हेमंत सोरेन इसलिए झारखंड के मुख्यमंत्री बने, क्योंकि उनके पिता शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हैं. नवीन पटनायक इसलिए ओडिशा के मुख्यमंत्री बने, क्योंकि उनके पिता बीजू पटनायक ओडिशा के बड़े नेता थे. और ये सूची बहुत लम्बी है.

इसमें आप उद्धव ठाकरे से लेकर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख़ अब्दुल्लाह, अखिलेश यादव, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चोटाला का नाम भी ले सकते हैं. ये एक परिवार वाली वो पार्टियां हैं, जिनमें मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का पद एक परिवार के लिए फिक्स रहता है. जबकि बीजेपी में ऐसा नहीं है.

इस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिनकी बीजेपी में शुरुआत एक कार्यकर्ता के रूप में हुई थी. उनका परिवार राजनीति में नहीं था. इसी तरह शिवराज सिंह चौहान का भी परिवार राजनीति में नहीं था. उनका राजनीतिक जीवन एक छात्र नेता के रूप में शुरू हुआ और काफी संघर्ष के बाद वो मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचे. इसी तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल का परिवार भी राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं था. इन सभी नेताओं ने बीजेपी में एक कार्यकर्ता की तरह अपना सियासी सफर शुरू किया और मेहनत करते हुए इन पदों तक पहुंचे. और बीजेपी और एक परिवार वाली पार्टियों में यही बुनियादी फर्क है.

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