Zee जानकारी : जीत के नशे में बेकाबू हुए सपा के छुटभैये नेता
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Zee जानकारी : जीत के नशे में बेकाबू हुए सपा के छुटभैये नेता

चुनाव में जीत के जश्न की तस्वीरें तो आपने कई बार देखी होंगी लेकिन हम आपको दिखाएंगे कि ब्लॉक स्तर के छोटे चुनाव में मिली जीत के नशे ने समाजवादी पार्टी के छुटभैये नेताओं और कार्यकर्ताओँ को कैसे बेकाबू कर दिया। और फिर उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से फायरिंग वाले जश्न की खूनी खबरें सामने आईं। हम इन्हीं खबरों का डीएनए टेस्ट करके ये जानने की कोशिश करेंगे कि चुनाव की जीत का जश्न, फायरिंग के बगैर पूरा क्यों नहीं होता?

Zee जानकारी : जीत के नशे में बेकाबू हुए सपा के छुटभैये नेता

नई दिल्ली : चुनाव में जीत के जश्न की तस्वीरें तो आपने कई बार देखी होंगी लेकिन हम आपको दिखाएंगे कि ब्लॉक स्तर के छोटे चुनाव में मिली जीत के नशे ने समाजवादी पार्टी के छुटभैये नेताओं और कार्यकर्ताओँ को कैसे बेकाबू कर दिया। और फिर उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से फायरिंग वाले जश्न की खूनी खबरें सामने आईं। हम इन्हीं खबरों का डीएनए टेस्ट करके ये जानने की कोशिश करेंगे कि चुनाव की जीत का जश्न, फायरिंग के बगैर पूरा क्यों नहीं होता?

उत्तर प्रदेश के शामली में गोलियों की आवाज़ें ऐसी गूंजी मानो जैसे यहां कोई युद्ध छिड़ गया हो लेकिन ये युद्ध नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी की जीत का जश्न है। उत्तर प्रदेश में रविवार को हुए ब्लॉक प्रमुख चुनाव के नतीजों से उत्साहित समाजवादी पार्टी के छुटभैये नेता और कार्यकर्ता अपने आप को बुलेट राजा समझने लगे। शामली सहित आगरा, बदायूं, गोंडा और भागलपुर में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर जीत का ऐसा नशा चढ़ा कि सड़क पर सरेआम अवैध हथियार लहराए जाने लगे। शामली में तो समाजवादी पार्टी के असामाजिक तत्वों की बेकाबू फायरिंग ने एक बच्चे की जान भी ले ली। उत्तर प्रदेश में कानून की नज़रों के सामने कानून की धज्जियां उड़ा दी गईं और पुलिसवाले तमाशा देखते रहे।

घूम-फिर कर सवाल फिर वही उठता है कि जश्न चाहे चुनाव जीतने का हो या शादी-ब्याह का, हवाई फायरिंग करने की ज़रूरत क्या है? बंदूक कोई खेलने की चीज़ नहीं होती और अगर बंदूक गैरज़िम्मेदार हाथों में हो तो फिर वो दूसरों की जान खतरे में डाल देती है। लेकिन हथियारों के शौकीन गुंडे किसी भी बात की परवाह नहीं करते। एनसीआरबी के मुताबिक

-वर्ष 2014 के दौरान देशभर में अवैध हथियारों से हत्या की 3115 घटनाएं दर्ज की गईं।
-इस दौरान 32 हजार 319 अवैध हथियार ज़ब्त किये गये।
-जिनमें से 47 फीसदी से ज्यादा यानी 15 हजार 327 अवैध हथियार अकेले उत्तर प्रदेश से ज़ब्त हुए।
-देश में बंदूक से होने वाली 40 फीसदी हिंसा अकेले उत्तर प्रदेश में होती हैं।
-वर्ष 2010 से 2014 के दौरान उत्तर प्रदेश में 6 हज़ार 929 लोगों को गोली मार दी गई। इन घटनाओं में 90 फीसदी हत्याएं अवैध हथियारों से अंजाम दी गईं।

अब आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि जहां अवैध हथियारों की मौजूदगी इतनी भारी मात्रा में होगी, वहां क्राइम की मात्रा का ग्राफ कितना ऊंचा होगा। अवैध हथियारों का फलता-फूलता बिज़नेस क्राइम रेट को बढ़ावा देने के लिए तो ज़िम्मेदार है ही। साथ ही हथियारों के सार्वजनिक प्रदर्शन और हवाई फायरिंग की जानलेवा घटनाओं के लिए भी ज़िम्मेदार है। हमें लगता है कि जबतक अवैध हथियारों की फैक्ट्रियों पर ताला नहीं लग जाता तबतक अवैध हथियार खूनी जश्न मनाने का ज़रिया बनते रहेंगे।

वैसे आपको बता दें कि अवैध हथियार खरीदने या बेचने के दोषियों को आर्म्स एक्ट की धारा 29 के तहत तीन वर्ष तक की सज़ा हो सकती है। हालांकि हमें लगता है कि ये सज़ा बहुत कम है। इसे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि अवैध हथियारों को इस्तेमाल करने में अपराधियों के हाथ ज़ोर से कांपें। हो सकता है कि ऐसे लोगों में से कुछ लोग लाइसेंसी हथियारों का इस्तेमाल भी कर रहे हों लेकिन ऐसे लोगों को भी ये पता होना चाहिए कि हथियारों का लाइसेंस आत्मरक्षा के लिए दिया जाता है। किसी की जान लेने और लोगों को डराने के लिए नहीं।

कुल मिलाकर जो कुछ उत्तरप्रदेश में हुआ है वो पुराने सरकारी विज्ञापनों का मज़ाक उड़ा रहा है। विज्ञापनों में कहा जाता है कि यूपी में दम है क्योंकि जुर्म यहां कम है लेकिन ये सच नहीं है।

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