विधानसभा में बीजेपी और येदियुरप्पा के फ्लोर टेस्ट से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिरकार यह होता क्या है और कैसे साबित किया जाता है.
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बेंगलुरु : कर्नाटक में सत्ता संग्राम का संभवत: आज (19 मई) आखिरी दिन है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शाम 4 बजे सीएम येदियुरप्पा बहुमत साबित करेंगे. शुक्रवार (18 मई) को सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस ने दावा किया है कि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 116 सीटें हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस ने यह भी दावा किया है कि बीजेपी के 104 विधायक हैं. विधानसभा में बीजेपी और येदियुरप्पा के फ्लोर टेस्ट से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिरकार यह होता क्या है और कैसे साबित किया जाता है. फ्लोर टेस्ट या बहुमत 3 तरह से साबित होता है. पहला ध्वनिमत, दूसरा संख्याबल और तीसरा हस्ताक्षर में किया गया विधायकों का मतदान.
इन तरीकों से साबित होता है बहुमत
1.ध्वनिमत.
2.हेड काउंट या संख्याबल : जब विधायक सदन में खड़े होकर अपना बहुमत दर्शाते हैं.
3.लॉबी डिवीजन : यह तरीका सबसे पुख्ता माना जाता है. इसमें विधानसभा सदस्य लॉबी में आते हैं और रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं. -हां' के लिए अलग लॉबी और 'न' के लिए अलग लॉबी होती है.
कर्नाटक विधानसभा की पार्टियों की स्थिति
सदस्य - 224 (अभी 3 सीटों पर चुनाव बाकी है)
बीजेपी - 104
कांग्रेस - 78
जेडीएस - 38
अन्य - 02
बहुमत का आंकड़ा - 112
क्या होता है विश्वास मत ?
सत्ताधारी दल को बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत विधानसभा या लोकसभा में पेश किया जाता है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी ने दो बार लोकभा में विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया था. 1996 में हालांकि उन्होंने वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया था जबकि 1998 में वह एक वोट से विश्वास मत नहीं हासिल कर पाए थे. उनकी सरकार गिर गई थी. उस दौरान वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल की सरकार भी विश्वास मत नहीं हासिल कर पाई थी.
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कई राज्यों में आया था विश्वास मत प्रस्ताव
बिहार, गोवा और उत्तराखंड में राज्य सरकारों को हाल में विश्वास मत हासिल करने की नौबत आई थी. बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने आसानी से विश्वास मत जीता था. मणिपुर में 2017 में बीजेपी की एन बीरेन सिंह सरकार ने ध्वनिमत से यह प्रस्ताव जीता था. उत्तराखंड में भी 2016 में यह स्थिति बनी थी, जब हरीश रावत सरकार ने फ्लोर टेस्ट आसानी से पास किया था.