सियासत की बात शरद यादव के साथ
Advertisement
trendingNow153089

सियासत की बात शरद यादव के साथ

एनडीए संयोजक और वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव देश के वरिष्ठ नेताओं में शुमार किए जाते हैं। देश के ज्वलंत विषयों पर शरद यादव बेबाकी से अपनी राय ऱखते आए हैं। मौजूदा दौर की राजनीति को लेकर उन्होंएने अपनी बात साफगोई से जाहिर की।

एनडीए संयोजक और वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव देश के वरिष्ठ नेताओं में शुमार किए जाते हैं। देश के ज्वलंत विषयों पर शरद यादव बेबाकी से अपनी राय ऱखते आए हैं। मौजूदा दौर की राजनीति को लेकर उन्होंने अपनी बात साफगोई से जाहिर की। इस बार सियासत की बात में शरद यादव से ज़ी रीज़नल चैनल्स (हिंदी) के संपादक वासिंद्र मिश्र ने खास बातचीत की। पेश हैं इसके मुख्य अंश:-
वासिंद्र मिश्र: शरद यादव जी, जिस वैचारिक प्रतिबद्धता के चलते आजादी के आंदोलन में और आजादी के बाद राजनीति हुआ करती थी आज वो राजनीति किस दशा और दिशा में है और उसको आप इसे किस रूप में देखते हैं।
शरद यादव: परिस्थिति 1991 तक खराब नहीं थी। बाजार आया तो बाजार का जो व्यापक असर हुआ उसके चलते कोई एक क्षेत्र नहीं है, हर इलाके में हर क्षेत्र में इस बाजार का ऐसा असर हुआ कि चुनाव में साधन बहुत हो गए, दूसरी चीज ये कि देश में आजादी के बाद जो अच्छे लोग थे, वो लड़ते जरूर रहे लेकिन देश ने उन्हें नहीं माना। माना तो फिर वो खंडित जनादेश आया। एक लंबी प्रक्रिया के अंतर्गत देश जैसे-जैसे गांधी जी से दूर होता गया।
वासिंद्र मिश्र: शरद जी, जब आप लोग राजनीति में आए थे हम लोग उस वक्त विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। उस समय एक रोल मॉडल हुआ करता था, आपलोगों के भी रोल मॉडल थे-गांधी थे, लोहिया थे, जयप्रकाश थे। हम लोग भी एक वैचारिक रोल मॉडल के तहत अलग-अलग पेशों में गए। आपको नहीं लगता कि जो लोग राजनीति में हैं उनकी ज्यादा जिम्मेदारी बनती है कि एक रोल मॉडल के तौर पर पेश करें।
शरद यादव: दुर्भाग्य है कि 2 बजे के बाद यानि लंच ऑवर के बाद संसद में जो आए हैं वो तो शाम के वक्त ही बोलते हैं। आज भी संसद में बेजोड़ लोग है। पार्टी जरूर उन्हें इधर-उधर करती है लेकिन उनके विचार ज़मीन से ही लिपटे हुए हैं लेकिन उसमें जो अच्छा पक्ष है उसे कोई देखने को तैयार नहीं।
वासिंद्र मिश्र: मैं समझ गया। आप ये कहना चाहते हैं कि मीडिया उन पक्षों को दिखाना नहीं चाहता है।
शरद यादव: नहीं, मीडिया नहीं, समाज।
वासिंद्र मिश्र: जो एक वैचारिक प्रतिबद्धता थी वो धीरे-धीरे कम होती जा रही है और जब वैचारिक प्रतिबद्धता कम हो जाती है, जिसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है, जो लोग सार्वजनिक जीवन में है राजनीति में हैं उनकी है। गांधी के नाम पर जो राजनीति करने वाले लोग हैं, जो पार्टियां हैं, सिर्फ गांधी का नाम ले रही हैं, उनकी जीवन शैली को, दर्शन को भूल गई हैं। गांधी का नाम सिर्फ फैशन के तौर पर लिया जा रहा है उन राजनैतिक दलों के द्वारा भी और नेताओं का द्वारा भी। आप क्षमा करिएगा एक बहुत कड़वी बात बोल रहा हूं आप वरिष्ठ हैं, वैसे ही डॉ. लोहिया का नाम लेने वाले लोग हैं और जयप्रकाश का सिर्फ वोट के लिए ले रहे हैं। डॉ. लोहिया ने कभी नहीं सोचा था कि जिस परिवारवाद का विरोध करके वो नेहरू का विरोध कर रहे हैं, अपना पूरा जीवन उन्होंने संघर्ष में लगा दिया, आपने लगा दिया वहीं, डॉ. लोहिया का नाम लेने वाले लोग परिवारवाद को परवान चढ़ा रहे हैं। अगर बस चले तो पेट में जो बच्चा है उसे भी एमपी नॉमिनेट कर दें। आप इसे कितना उचित मानते हैं
शरद यादव: मैं मानता हूं कि ये एक तरफा बात है, जो ये काम नहीं करते उनके बारे में एक दो शब्द भी नहीं छपते तो ये दो तिहाई परिवारों के हाथ चला गया। लेकिन इस विकट परिस्थिति में जो परिवारवाद नहीं करते, हमारी पार्टी बीएसपी से तो कम नहीं है, हमारी पार्टी समाजवादी पार्टी से छोटी नहीं है लेकिन इनका जिक्र है। लेकिन नीतीश कुमार का कोई परिवार है, हमारा कोई परिवार है। हमारा परिवार तो बहुत बड़ा परिवार है, स्वतंत्रता आंदोलन में भी रहा, झांसी की रानी की लड़ाई में भी रहा लेकिन हमने तो अपने कभी बाप दादाओं का नाम लेके राजनीति नहीं की। हमारे पिता तो कांग्रेस के थे तो मैं अकेला आदमी नहीं हूं, ऐसे बहुत लोग हैं, लेकिन जो परिवारवाद में आकंठ लोग हैं उनकी चर्चा ज्यादा है, जो इस तरह के काम में नहीं है तो कैसे समाज बने यानि समाज को ये दिखाते नहीं कि अच्छाई, एवं पुरुषार्थ विहीन और बिल्कुल सिद्धांत हीन नहीं हुआ है। जैसे डॉ लोहिया हैं, गांधी जी के इतने फालोवर नहीं है जितने डॉ लोहिया के फालोवर हैं। वाकई में राजनीतिक रूप क्यों देख रहे हो, वो लिट्रेचर में हैं, वो लिखने वाले हैं वो ज्ञानपीठ पुरुस्कार पा रहे हैं लेकिन पार्टी जो है वो एक गैलेक्सी ऑफ द लीडर्स है। वो पार्टियां मर्ज हो जाती थीं यानि सोशलिस्ट पार्टी में, टूटना और जुड़ना एक प्रक्रिया थी लेकिन आज परिवार को कैसे आप यानि मर्जर कर रहे हैं।
वासिंद्र मिश्र: यही मैं समझना चाह रहा हूं।
शरद यादव: इसलिए, मैं कह रहा हूं कि बीमारी ये खड़ी हुई कि जो परिवारवाद कर रहे हैं, यहीं से गए हैं वो लोग, यानि ये नही है मैंने खुद ही उन सबको प्रोजेक्ट किया। अब वो देश का जो परिवारवाद है यहां कहावत है मन चंगा तो कठौती में गंगा, मन किसका चंगा रहेगा, जिसका घर चंगा है यानि इस देश में औरत की गुलामी और जात की चक्की जब चलती है तो उसमें जो आटा निकलता है वो परिवार निकलता है तो हर आदमी का जो परिवार है उसका कोई दोष नहीं है। ये भारतीय समाज का दोष है कि परिवार को कोई दूसरा देखने वाला नहीं है, यदि उसके परिवार में कोई दिक्कत आ जाय, वो जेल चला जाय तो उसके बाजू का पड़ोसी जो कहेगा, बहुत एक उचक रहा था अच्छा हुआ यानि बुद्ध कहते हैं कि जगत बनेगा तो व्यक्ति बनेगा, यहां उल्टा चला हुआ है कि व्यक्ति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है पहले से रामायण-महाभारत क्या है।
वासिंद्र मिश्र: उस समय भी व्यक्तिवाद की बात होती थी व्यक्ति की पूजा होती थी, लेकिन अगर आपकी बातों को हम जितना समझ पा रहे हैं तो क्या ये मान लिया जाय कि देश में जो वैचारिक प्रतिबद्धता है वो अप्रासंगिक हो गई है।
शरद यादव: ना-ना।
वासिंद्र मिश्र: राजनीति हो रही है आने वाली पीढी़ को, जेनरेशन को, हम क्या मैसेज देना चाहते हैं।
शरद यादव: नहीं, मैं आपसे कहना चाहता हूं कि राजनीति विचारों से बिल्कुल अलग हो गई है, ये अतिरेक है, हटी है और बहुत दूर तक हटी है। इसलिए, कि जयप्रकाश लोहिया, गांधी जी थे, लोहिया, मधुदंडवते, राजनारायण, चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर ये जितनी बात आपने कही उन बातों से निरपेक्ष रहे ये यानि कोई किसी तरह का, यानि कबीर ने कहा ना कि ‘झीनी-झीनी बिनी चदरिया....दास कबीर जतन से ओढी़, जस की तस धर दीनी चदरिया’, इनमें कौन आदमी है जो इस कहावत से दूर है। कौन आदमी है बताइये, अब देश इनको नहीं माना, वो कभी रूस की तरफ देखने लगता है, कभी यूरोप की तरफ देखने लगता है और बताइये महात्मा जी तो कलकत्ता में भूखहड़ताल कर रहे थे और यहां आजादी का झंडा फहरा रहे थे। जवाहरलाल जो हैं वो महात्मा जी के विचारों से बिल्कुल अलग थे।
वासिंद्र मिश्र: शरद जी, लेकिन आपके तमाम जो सहयोगी रहे हैं, आज की तारीख में कांग्रेस में हैं जो कभी समाजवाद के नाम पर आपके साथ थे आपकी अगुवाई में, उन लोगों ने आंदोलन भी चलाया राजस्थान से लेके बिहार और मध्य प्रदेश पूरे देश में, मैं नाम नहीं लूंगा लेकिन अब आप समझ रहे हैं, इसके प्रति इशारा कर रहे हैं। हम बार-बार ये ही समझना चाह रहे हैं जिम्मेदारी किसकी है, अब जिम्मेदारी आपकी है जो लोग समाजवादी बचे हैं जिन लोगों ने अपना जीवन पूरा लगा दिया, समाजवादी आंदोलन में, वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए, वो चाहे वामपंथी विचारधारा हो या समाजवादी विचारधारा हो, अब अगर वे लोग या तो हम मान लें कि वे लोग लाचार हैं, असहाय हैं। इन परिवारवादी नेताओं के मुकाबले, कॉरपोरेट घरानों के मुकाबले इनको भी लग रहा है कि अगर ज्यादा विरोध करेंगे तो कॉरपोरेट घराने ये परिवारवादी नेता उनको चुनाव नहीं जीतने देंगे उनको हरवा देंगे तो अब गुंजाइश कहीं बची है कि नहीं। मैं सिर्फ ये समझना चाह रहा हूं और आप लोग किस तरह से इसको दुबारा रिवाइव करेंगे।
शरद यादव: देखिए, ऐसा है कि हमको तो इस देश में सबसे ज्यादा लोगों ने छोड़ा, कुछ लोग कहते हैं कि हाथ में यश नहीं है, तो वो तो हम अंधविश्वासी हैं- नहीं, असली बात ये है कि जो लोग यहां से गए हैं वो कोई मतभेद के कारण नहीं गए हैं, मेरे से यानि पार्टी से। वो गए हैं यहां देख लिया और जो वातावरण बना है उसमें अपने भविष्य को देखने गए हैं लेकिन जब मै सदन में खड़ा होता हूं तो आम संसद शांत खडी़ रहती है, बैठी रहती है, शांत रहती है उसका कारण ये है कि मेरे दिए सत्तर आदमी तो वहीं बैठे हैं, मेरी पार्टी को छोड़ दो लेकिन उनके दिल में तो जब मैं बोलने लगता हूं तो अच्छा लगता है क्योंकि संस्कार तो उनकी वैचारिक है।
वासिंद्र मिश्र: डीएनए में तो वही हैं समाजवादी।
शरद यादव: तो वो चले गए और मैं आपसे एक बात कहूं कि मैं मस्ती से जीता हूं और मस्ती से सोता हूं, ये मुझे परवाह नहीं कि कितने लोग मेरे साथ रहे और कितने नहीं रहे। मैं जिन विचारों को मानता हूं तो मैं तो इंजिनियरिंग कॉलेज का टॉपर था, मेरा चयन टिस्को में हो गया था, तो मैं जो इसमें आया हूं तो मेरी जो वैचारिक पृष्ठभूमि बनी तो उससे मैं बहुत सकून में हूं, सुख में हूं। मुझे कोई चिंता नहीं होती मुझे मालूम है कि ये देश तो कभी अपने पैरों पर खड़ा ही नहीं हुआ, गांधी को छोड़कर हमेशा लुढ़कता रहा। कभी रूस की तरफ देख रहा है, कभी यूरोप की तरफ देख रहा है। यूरोप के रास्ते से और मनमोहन सिंह का तो मांइड सेट है कि जो बाजार है इसके जरिए देश बनेगा। मेरा ये मानना है कि बाजार से भी और ज़मीन में जो ताकत है उन दोनों के मेल से बनेगा जैसे चीन बना है। चीन ने अपने यहां के ज़मीन की ताकत पहले कनसोलिडेट की वो ना रूस की तरफ देखता है ना कहीं यूरोप की तरफ देखता है। पचास साल साइकिल से चला और आज हालत ये है कि दुनिया का नंबर एक देश है वो।
वासिंद्र मिश्र: ये सच है, जैसे कि चीन।
शरद यादव: इसलिए है, सुन लो कि उसने अपने दस्तकार बचा के रखे, उसने अपनी भाषा को बचा के रखा, अब वो तो सारे हथियार बना रहा है, सारे विज्ञान और सारी चीजें अपनी भाषा में पढ़ा रहा है। जवाहर लाल जी फ्राम डे वन चतुराई करके अंग्रेजी को आपके सिर पर थोप गए थे। ट्रांसलेशन से देश कैसे चलेगा और कबीर के जमाने में क्या अंग्रेजी नहीं थी लेकिन दुनिया को उससे ज्यादा बड़ा दार्शनिक मिलेगा, नहीं मिलेगा। वो कहता है ‘कि साधू इतना पाइये जा में कुटुंब समाए, मैं भी भूखा ना रहूं साधू न भूखा जाय’ । अब मार्क्स का कैपिटल लिखा हुआ है, उसमें ये ही तो है कि आदमी की अतिरिक्त आमदनी देश की आमदनी है, समाज की आमदनी है लेकिन कबीर तो खड़ा हुआ और चला गया, महात्मा गांधी खड़ा हुआ और चला गया, बुद्ध खड़ा हुआ यहां से समाप्त हो गया। अब ये जो देश बदलते नहीं हैं और आज की बात नहीं है ये तो ये तो देश बदलने में बहुत मेहनत लगेगी। पूरे पीरियड का जिक्र किया ये जो पिरियड जो है इस देश के अनुसार कम पड़ता है। इस देश के लिए उलटफेर चाहिए और उलटफेर इसमें खुद नहीं होगी। हां यूरोप में विद्रोह होगा तो फिर ये यहां होगा, ये खुद नहीं आगे बढ़ेगा, ये तो 1100 साल तक हथियार डाल कर खड़ा रहा, हथियार डाल दिए। यहां अंधविश्वास के रिकॉर्ड कई हैं। कदम-कदम पर अंधविश्वास है यानि जो प्रतिगामी ताकते हैं वो इतनी ताकतवर रहती हैं कि वो हर बदलाव को यानि पूरा जैसे अगस्त मुनि समुंदर पी जाते हैं वैसे पी जाते हैं।
वासिंद्र मिश्र: एनडीए में अगर कहें, तो एक मुहावरा प्रयोग करें तो भानुमती का कुनबा है और उस भानुमती के कुनबे को संभाले रखना और उसको आगे बढ़ाना कांग्रेस के मुकाबले, यूपीए के मुकाबले कितना चुनौतीपूर्ण है।
शरद यादव: देखिए, एनडीए कोई परिवर्तन का हथियार नहीं है, ये व्यावहारिक हथियार है, जैसे जयप्रकाश को देखिए, कोई साधुओं की जमात राजनीतिक पार्टियां नहीं होती, इसलिए उनको पार्लियामेंट में जीतना है, विधानसभा में जीतना है और सत्ता के लिए भी मन में संकल्प रखना है। ये मुहावरा है इस देश में कोई आज ही सवेरे पूछ रहा था कि कांग्रेस पार्टी ये कर रही है, चुनाव के लिए कर रही है, अरे क्यों नहीं करेगी, चुनाव पांच साल बाद आता है तो निश्चित तौर पर आप कह रहे है कि हम सर्वाइव ना करें, जैसे देश की जनता देती नहीं किसी एक पार्टी को बहुमत तो जब मैंडेट आ रहा है कि आप साझा बनाओ, तो साझा जो आपने कहा भानुमती का कुनबा तो भानुमती का कुनबा तो जयप्रकाश जी ने भी बनाया है, यानि उसमें समाजवादी पार्टी थी, जनसंघ था, कांग्रेस थी, बाबूजी की सीएफडी थी, चौधरी साहब की बीकेडी बहुत बड़ी पार्टी थी इन सबको मिलाया, मैं तो उनका चेला हूं, मैंने खुद देखा कि उन्होंने कहा कि भाई सब आप लोग मिलो नहीं तो मैं आगे नहीं बढ़ता इमरजेंसी के बाद और फिर ये उनके दबाव से एक हुए और उनके दबाव में 27 महीने एक साथ रहे। उन्होंने जो बात कही कुनबा बिखर गया तो जस राजा तस प्रजा अब इसको मिश्रा जी पलटोगे, जस प्रजा तस एमएलए होगा, तस विधायक होगा, तस पार्टी होगी तस सरकार होगी, तो मैंने पहले ही कहा कि जगत नहीं बनेगा, जनता समाज नहीं बनेगा तो व्यक्ति नहीं बच सकता।
वासिंद्र मिश्र: मतलब, आप ये सारी जिम्मेदारी जनता पर छोड़ रहे हैं।
शरद यादव: ना-ना।
वासिंद्र मिश्र: राजनीति में जो भ्रष्टाचार है उसके लिए जनता जिम्मेदार है।
शरद यादव: दोनों जिम्मेदार हैं।

वासिंद्र मिश्र: जो राजनीति में अपराधी चुन के आ रहे हैं, उसके लिए जनता जिम्मेदार है, आपने हमेशा सार्वजनिक जीवन में आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होकर अपनी आवाज़ उठाई। आपने राजनीति में अपराधीकरण का खुलकर विरोध किया। बिहार में आपसे जो मतभेद पैदा हुए लालू जी से, उसका एक कारण ये भी था कि उनके जरिए जो अपराधी राजनीति में लाए जा रहे थे, आप उसका विरोध कर रहे थे और वो आपके दल में ही थे, बावजूद इसके बिना ये परवाह किए कि अबका चुनाव वो हरवा देंगे, आपने चिंता नहीं कि आज क्या मजबूरी है कि एनडीए में इन सारे तत्वों का जमावड़ा है और आप उसके संयोजक बने हुए हैं।
शरद यादव: नहीं, देखिए ये आप जो कह रहे हो वो सब संपूर्ण समाज की रिवोल्यूसनरी जो परिवर्तन है उसके बाद जो निकलेगा, अभी तो जो आप कह रहे हो वो आज मेरी पार्टी में मुझको हमारी पार्टी में हमको मेहनत करके बहुत दूर तक मार करते हुए और सब लोग छोड़ते गए। राम विलास भाग गया, अजित सिंह चले गए, चौटाला चले गए, बीजू जनता दल चला गया, आपके-आपके देवेगौड़ा चले गए, मधु दंडवते और मधुलमे की डेथ हो गई। एन जी वोहरे की डेथ हो गई, एस एम जोशी चले गए। अब जितनी बड़ी पार्टी हमारे चौधरी साहब ने छोड़ी थी तो वो हमारी उन्हीं आदतों के सहारे भागे कुछ लोग तो, जानते है कि लालू यादव हमारी पार्टी क्यों छोड़ते उन्हें राबड़ी को बनाना था मुख्यमंत्री, तो हम व्यावहारिकता के नाते कुछ एडजस्ट करते लेकिन उन्हें मालूम था कि शरद यादव इसके लिए तैयार नहीं होंगे यानि रास्ता नापो। ऐसे ही बहुत से केस हैं लेकिन एक बात बताऊं कि आज हम लोगों की पार्टी में पुटकल कार्यकर्ता एक आध दो कार्यकर्ता हैं। एब्रेशन हो सकता है क्योंकि हम संपूर्ण अच्छाई तो नहीं है। जैसे मान लो पूछा कि पार्टियों का फंड कितना-कितना है, अब देखिए समाजवादी पार्टी या बीएसपी का, कम्युनिस्ट पार्टी का बीजेपी का कांग्रेस का दिया, हमारी पार्टी का छुपा लिया, दिया ही नहीं क्योंकि है हि नहीं कुछ। अब इतना लिखा पढ़ी में बैमानी हो जाय सच को दबाने का हमने खुद ही ठेका ले लिया है ऐसे।
वासिंद्र मिश्र: कॉरपोरेट फंडिंग आपके यहां नहीं है।
शरद यादव: अरे, मैं वही कह रहा हूं कि कॉरपरेट फंडिंग हो चाहे कहीं हो तो हमारा जो हिसाब किताब था वो तो इलेक्शन कमीशन में है, यानि हमारी पार्टी बगैर पैसे के लड़ती थी, चौधरी साब और मैं दोनों थे। मैं उनका बहुत क्लोज आदमी था, सिंबल देते तो जीत जाते थे। मैं पहला चुनाव लड़ा तो मुझे पैसा 72 हजार बचा था। आज नहीं है ये हालत आप कहेंगे आज ऐसा क्यों कर रहे हो आप तो यदि मान लो मैं भी यहां बिस्तर उठा के चला जाऊं तो ये लड़ाई खत्म हो जाएगी। जैसे मान लो गरीब आदमी के सामने कुछ हो रहा हो और मुझसे कोई कहे कि तुम अपनी रजाई उसको दे दो, इसका तो इतना ही मतलब है कि समाजवाद तुमने नाम ले लिया इसलिए तुम्हें जिंदा रहने की जरूरत नहीं है, मरने के लिए कुछ हो तो कर दो, ये अतिरेक है इस देश में, आज भी जो है पार्टियों के अंदर, जो कार्यकर्ता हैं उसकी सहानूभूति हमारे साथ है जो अलग हो गए हैं उनकी सहानूभूति हमारे साथ है लेकिन वहां वोट मेरे पास नहीं बचा यानि जातियों का जो चक्र है, दुष्चक्र जो है ऐसा है कि वो एक मुख्यमंत्री बन गया तो जाति के आदमी भी उसी के साथ चले गए,अब ये मुझे मालूम नहीं था चौधरी साहब को मालूम था वो कभी घुटने के ऊपर किसी को नहीं आने देते थे। मैं सबको बराबरी से खड़े करके ये मैं उनका सबक भूल गया तो ये सुधार की जो बात कर रहे हो आप तो अब पार्टियों में सुधार का तो हमारी पार्टी जो है तो बताओ कौन सी चीज में उंगली उठा सकता है।
वासिंद्र मिश्र: अब हम लोग थोड़ा व्यावहारिक बात करते हैं। 2014 का चुनाव होने वाला है लोकसभा का। जेडीयू में एक किल्जिंग ऑपरेशन कर रखा है नीतीश जी ने अपनी पार्टी में। अगर हम कहें प्रोफेशनली तो साफ-सुथरी छवि के लोग। आपकी सरकार चल रही है, उसके ऊपर कोई गंभीर ऐसे आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप अभी तक कोई साबित नहीं कर पाया है। ये सच है लेकिन एनडीए का जहां तक सवाल है चाहे वो सांप्रदायिक्ता का सवाल हो, आर्थिक भ्रष्टाचार का सवाल हो, भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता कांग्रेसियों के बराबर आरोपी हैं, चाहे वो आर्थिक भ्रष्टाचार हो, चाहे सांप्रदायिक भ्रष्टाचार हो, आप कितना उम्मीद करते हैं।
शरद यादव: नहीं, ये मैं कहना चाहता हूं कि एनडीए पार्टियों का संम्मेलन है, बीजेपी अलग पार्टी है हमारी अलग पार्टी है। नेशनल एजेंडा हमने बनाया था जिसमें जो विवादास्पद बातें हमने की हैं और हमारी बहुत विवादास्पद बात है, जो वो नहीं मानते यानि समाजिक विषमता के मामले में वो बहुत कमजोर है। हम मानते हैं कि समाजिक और आर्थिक विषमता बराबर बीमारी है, एक-दूसरे से जुड़ी बीमारी है, हमने अलग किया तो निश्चित तौर पर बीजेपी और हमारी पार्टी अलग है। बीजेपी हमारी सहयोगी पार्टी है, मैं कह सकता हूं उसे, जैसे येदियुरप्पा के बारे में मैंने बहुत पहले कहा था कि इसमें ये स्कोप तो बनाया आपने, जात को आप जानते नहीं, तो लिंगायत पूरा का पूरा हमारे साथ था, वो उनके साथ चला गया और फिर वो उनके साथ भी नहीं रहा। उस पर एक्शन करने में उन्होंने बहुत देर लगाई और वहां जनता दल के साथ जो एलाएंस था उसको तोड़ लिए तो जनता दल नेजिवत्ता के जमाने से बना है साउथ इंडिया में, पहली सरकार हेगड़े साहब की बनी थी, फिर जेएच पटेल की बनी फिर आपके बोमई की बनी, एक कोई उंगली नहीं उठा सकता लेकिन हमारी पार्टी जैसे मान लो अभी आपके मुख्मंत्री हैं सिद्धारमैया ये तो मैं जब भी कर्नाटक जाता था तो पहला आदमी मेरी पसंद का ये था लेकिन अब मेरे पास कर्नाटक में तो इतना पैसा लगता है तो मुझसे पूछता था कि साधन बताइए आप कहां से लाएंगे, उसमें हाथ खड़ा करता था मैं कि मेरे पास साधन नहीं है तो जो आप पूछ रहे हो, तो वो हमारी अलग-अलग पार्टी है और उनके कार्यक्रम भी अलग हैं। हां, एनडीए के तहत वो कोई मुद्दा ऐसा नहीं ले सकते जो नेशनल ऐजेंडा हमारा जो था उससे बाहर हो।
वासिंद्र मिश्र: तो आपको उम्मीद है 2014 में जब चुनाव होने वाला है तो भारतीय जनता पार्टी जो आप लोगों का था नेशनल ऐजेंडा उसी पर स्टीक करेगी।
शरद यादव: नहीं, हमने जो प्रस्ताव किया है, सत्रह साल से यही इसके दायरे में। नेशनल एजेंडा जो है इसके दायरे में हम लोग चलते रहे हैं, अब कई जगह सरकारें बनीं, झारखंड में बनी, आपके बिहार में बनी, पहले हम लोग सहयोगी थे बीजेपी के कर्नाटक में, उस दायरे से बाहर नहीं गए, आज भी हमारा यही आग्रह है क्योंकि वो नेशनल ऐजेंडा हमने बनाया था अटल जी आडवानी जी के साथ, और मैंने नहीं बनाया था, मैं बाद में गया हूं एनडीए में, पहले चले गए थे समता पार्टी के लोग और हेगड़े साहब तो इन लोगों ने बैठ के उनसे ये काम करवाया और जब मैं ज्वाइन नहीं कर रहा था तो मेरे पास हेगड़े साहब, जार्ज साहब य़े सब लोग मेरे पास आए औऱ दो-तीन बार मिले और बोले कि भाई नेशनल ऐजेंडा ये है तो आपको इसमें क्या एतराज है, तब मैं इनके साथ ज्वाइन किया। यह नेशनल एक्जिक्यूटिव जो थी उसमें जो हमने प्रस्ताव किया है, जिसको उन्होंने व्यक्ति की लड़ाई में बदल दिया, उस प्रस्ताव का जिक्र ही लोगों ने नहीं किया, वो ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने जरूर पूरा फुल छापा उसको, लेकिन उस पर डिबेट ही नहीं हो पाई, हम क्या कह रहे थे नेशनल एक्जिक्यूटिव में। एक हजार आदमियों ने जो बात पास की वो तो हम पुरानी बात कह रहे हैं कि भाई जिस ब्राड जिस दायरे में हम लोग चल रहे थे उसमें ये आगे चले।
वासिंद्र मिश्र: आपको क्या लग रहा है 2014 के चुनाव में आपकी नजर में सबसे बड़ा मुद्दा क्या होना चाहिए।
शरद यादव: देखिए, मुद्दा सबसे बड़ा यही होगा कि देश के पैमाने पर महंगाई और बेरोजगारी का समूल नाश हो। फिर इस देश में 2-ढाई लाख किसान आत्महत्या कर गया। हजार बरस का देश है ये, हर तरह की दिक्कत आई लेकिन किसान आत्महत्या नहीं करता था, आज आत्महत्या कर रहा है तो सरकार 65 साल में हम भी हैं और वो भी हैं, हमने देश को जहां खड़ा कर दिया, इस देश का सबसे ज्यादा जमीन से लिपटा हुआ आदमी श्रम करने वाला आदमी आत्महत्या करता है क्योंकि कोई चीज बचती नहीं है। उसकी इज्जत जाने वाली है, उसकी आप स्कैम के बाद स्कैम देखिए, 4-5 तो सीएजी की रिपोर्ट रखी हुई है। पावर के बारे में, कोल के बारे में, 2जी के बार में। 2जी में तो बहुत लोग अंदर कराए हमने, कोल ब्लॉक में तो भी हम लगे रहे, वो छोड़ेंगे थोड़ी। अब हमारा काम है कि जो पर्दा डाले हुए हैं उसको बेनकाब करना अब ये बेनकाब कर रहे हैं तो जनता को दिखा रहे हैं हम। सरकार थोड़ी मानेगी हमारी। इसलिए, मैंने अपने साथियों से कहा कि संसद जैसी जगह में गए, इसमें कोई सरकार थोड़ी सुनाना है हमें। सरकार कोई माने या ना मानें हमें कोई फर्क नहीं पड़ता हमें तो देश को बताना है। मैं ये कहना चाहता हूं कि जो परिस्थिति है, उसमें जो चुनाव होगा और रीजन टू रीजन भी उस चुनाव में अपने तरीके से होगा, जैसे मान लो बिहार है, यूपी है, वहां मुद्दे नेशनल भी होंगे और ये भी होंगे। बंगाल है तो वहां तो कांग्रेस पार्टी का मुद्दा भ्रष्टाचार है तो वैसे ही नीचे पड़ी हुई है दिल्ली से ले के। गंगा का जहां अंत होता है वहां तक कांग्रेस का कोई कुछ वजूद बचा नहीं है, तो दोनों बीजेपी हो या कांग्रेस लोकसभा की 270 सीटें नहीं ला सकती हैं।
वासिंद्र मिश्र: लेकिन जो आपकी सबसे बड़ी कांसिटवेंट पार्टी है भारतीय जनता पार्टी उसका तो जब जब चुनाव नजदीक आता है त्यों-त्यों वो जज्बाती मुद्दों में ही उलझ के रह जाती है और इसको लेके उनको कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है लेकिन फिर भी वो अपनी आदत नहीं छोड़ पाते, जिससे होता क्या है कि बीन अगर आप बजा दिए तो सांप कहीं भी रहता है निकल के आके नाचने लगता है। बीजेपी से जुड़े हुए जो लोग हैं उनकी मजबूरी है कि आप चाहें उनकी कितनी ब्रेन वाशिंग कीजिए, उनकी पॉलिटिकल ट्रेंनिंग करिए लेकिन ज्यों ही उनके सामने वंदे मातरम और वो ‘गमछा’ दिखता है ‘रामलाल हम आए हैं’ तो सब कुछ भूल के उसी में नाचने लगते हैं।
शरद यादव: इसमें बदलाव हुआ।
वासिंद्र मिश्र: कहां हुआ मोदी को अभी भी लेकर घूम रहे हैं।
शरद यादव: नहीं, अटल जी आए।
वासिंद्र मिश्र: नहीं, आज की हालत की बात कर रहे हैं।
शरद यादव: आज की ही बता रहा हूं, जैसे अटल जी आए, बदलाव नहीं होता तो इतनी बड़ी 24 पार्टियां कैसे इक्ट्ठा करते। ये फिर नेशनल एजेंडा कमिट कैसे करते, समझ तो उन्हें भी आया कि राज जो है वो, जो आर्तिक मुद्दे हैं, इकोनामिक मुद्दे हैं, उनपे ही चलेगा। नंबर दो, अब जिन मुद्दों से उनका विकास हुआ, यानी जिन मुद्दों पर चलते हुए उनका जनाधार हुआ है। तो आपने ठीक बात कही कि वो जनाधार की चिंता में कभी कभी दूसरे लोगों के साथ रहने की जो जरुरत है, वो उसको भूल जाते हैं। और जब भूल जाते हैं तो हमारे जैसे आदमियों को एनडीए को बढ़ाने में दिक्कतें हो जाती हैं। हम भारत बंद तो तीन बार करा लेते हैं, लेकिन जब कहते हैं कि एनडीए में विस्तार करें तो उसमें दिक्कत आती है।
वासिंद्र मिश्र: तो कैसे करेंगे आप 2014 में। आपका बयान आया था पिछले दिनों हमने पढ़ा था अखबारों में कि जो गुजरात का डेवलपमेंट मॉडल है वो नेशनल लेबल पर एक्सेप्टेबल नहीं होगा और शायद आपने ये भी कहा था कि गुजरात की तुलना में मध्य प्रदेश के डेवलपमेंट का जो मॉडल है वो ज्यादा व्यवहारिक है। उसको अगर प्रयोग के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाय तो नीतीश या शिवराज सिंह का जो डेवलपमेंट का मॉडल है वो ज्यादा बेहतर होगा।
शरद यादव: मेरा आपसे निवेदन ये है। कहना मेरा ये है कि एक सूबा कोई हो यदि मैंने कहा कि मध्य प्रदेश या बिहार ये देश भर का मॉडल नहीं बन सकता। उनका मॉडल बिहार का गरीबी उन्मूलन करने में गरीबी मिटाने में काम आ सकता है। फिर इस देश की संस्कृति, कल्चर से ये निकलता है कि जो कमज़ोर है उसको काटो और जो जग रहा है उसको चाटो।
वासिंद्र मिश्र: शरद जी हम अपने चैनल के जरिए आपसे जनता को एक आश्वासन दिलाना चाहते हैं कि अगर 2014 के इलेक्शन में कांग्रेस पार्टी या यूपीए सत्ता से बेदखल होता है और संयोग से एनडीए को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो क्या आप ये सुनिश्चित करेंगे कि मोदी जी जैसी विचारधारा का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ना बैठ जाय।
शरद यादव: देखिए ऐसा है कि 270 आदमी चाहिए। जिन लोगों के भी नाम चलते हैं, क्योंकि वो अभी बहुत 10-5 साल से ही उनका नाम है। मैं 74 से यहां बैठा हूं। तो जिनके भी नाम चलते हैं। आप उस समय बहुत वो थे। उस समय हेगड़े साहब, बीजू पटनायक, बहुगुणा सब ये प्राइम मिनिस्टर के कडीडेट थे। मगर संख्या कम थी। आज तो प्राइम मिनिस्टर के कंडिडेट यानी जो कुर्सी पर बैठा है उसी की खबर है और वो ही प्राइम मिनिस्टर बनने वाला है। मैं आपसे कहूं कि आप कोई कल्पना नहीं कर सकते कि कौन बनेगा। यदि कोई कह रहा, वो 14 के बाद ही आप मुझसे पूछेंगे तो बता सकता हूं। और वो भी अनाउंसमेंट नहीं होगा उससे पहले नहीं बताउंगा।
वासिंद्र मिश्र: लेकिन वैचारिक आधार पर आप कुछ विचारधारा के लोगों को मानते हैं।
शरद यादव: देखिए गांधी ने खूंटा गाड़ दिया है। उससे बाहर कोई चीज नहीं जाएगी, यानी पूरा देश जो हैं वो बगैर मेल जोल के नहीं चलेगा। गांधी के रास्ते पर होते तो देश नहीं बंटता।
वासिंद्र मिश्र: इसको थोड़ा और सिम्प्लीफाई करिए।
शरद यादव: दर्शकों के लिए मैं ये कह रहा हूं कि गांधी के इस देश में कौन विचार है। जमीन के लिए, दस्तकार के लिए, आपके समाज को एक रखने के लिए यानी जिस दिन देश में झंडा फहराया जा रहा था उस दिन गांधी दंगा रोकने में लगे हुए थे। फिर पाकिस्तान जाकर रहना चाहते थे वो, इसका मतलब है कि उनकी पक्की मान्यता है थी कि सभी धर्मों को मिलके ही चलना पड़ेगा। और जो लोग ये सोच रहे हैं कि धर्म को बगैर मिलाए आगे बढ़ जाएंगे मैं दार्शनिक तौर पर कह रहा हूं कि वो संभव नहीं है।
वासिंद्र मिश्र: बहुत बहुत धन्यवाद शरद जी आपको इतनी बेबाक बातचीत करने के लिए।
शरद यादव: धन्यवाद।

Trending news