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आलोक कुमार राव
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की मंजूरी दे दी है। इसका राजनीतिक दलों की ओर से भारी विरोध किया जा रहा है। विरोध करने वालों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में शामिल राजनीतिक दल भी हैं और वे दल भी हैं जो सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। अपने वोट-बैंक का नफा-नुकसान तौल कमोबेश सभी पार्टियों ने एफडीआई पर अपनी राय बना ली है।
विरोध में सबसे बड़ी बात जो कही जा रही है, वह यह है कि खुदरा कारोबार में वॉलमार्ट और टेस्को जैसे सुपरमार्केट के उतरने से देश का खुदरा कारोबार नष्ट हो जाएगा। खुदरा कारोबार से जुड़े करोड़ों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। वहीं, इसके उलट सरकार का कहना है कि खुदरा कारोबार के क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों के आने से नई दुकानें खुलेंगी। रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। बाजार प्रतिस्पर्धी होगा और उपभोक्ताओं को सस्ते दामों में वस्तुएं मिलेंगी। सुपरमार्केट से खरीदारी करने में लोगों को बचत होगी और इस बचत को वे अन्य जगहों पर खर्च कर सकेंगे।
एफडीआई को लेकर उपजी आशंकाओं पर सरकार भी चुप नहीं है। उसकी सफाई है कि है वालमार्ट जैसी दिग्गज विदेशी कम्पनियां देशी खुदरा व्यापारियों के हितों का नुकसान न पहुंचा पाएं, इसके लिए उसने व्यापक नियामकीय प्रबंध किए हैं। मसलन, विदेशी कम्पनियों को अपनी 30 फीसदी खरीदारी देश में करनी होगी और अपने निवेश की कम से कम आधी रकम कोल्ड चेन, प्रशीतन, परिवहन, पैकिंग, छंटाई और प्रसंस्करण सहित आधारभूत संरचना को विकसित करने में करनी होगी।
सरकार का तर्क है कि वॉलमार्ट जैसी कम्पनियों के आने से बाजार का जो स्वरूप तैयार होगा उसमें बिचौलियों और जमाखोरों की भूमिका समाप्त हो जाएगी। किसानों एवं उत्पादन में लगे लोगों को अधिक दाम मिलेगा और ग्राहकों को सस्ते दाम में वस्तुओं की खरीदारी का बेहतर विकल्प उपलब्ध होगा।
लोगों की यह आशंका कि सुपरमार्केट के खुलने से देशी खुदरे की दुकानें बर्बाद हो जाएंगी, निर्मूल नहीं है। रिपोर्ट और अध्ययन बताते हैं कि वॉलमार्ट के स्टोर अमेरिका सहित लैटिन अमेरिकी देशों में जहां भी खुले, वहां अगले चार से पांच सालों में खुदरे की दुकानें बंद हो गईं और इस कारोबार से जुड़े लोग बेरोजगार हो गए। साथ ही यह भी सच है कि वॉलमार्ट के आने से जो दुकानें बंद हुईं, वहां नई दुकानें खुलीं और लोगों को रोजगार मिला।
रिपोर्ट के मुताबिक मॉर्गनटाउन में वॉलमार्ट का स्टोर खुलने से वहां की ‘मॉम एंड पॉप’ (छोटी एवं मझोली) दुकानें बंद हो गईं लेकिन कुछ समय बाद महिलाओं की कपड़ों की दुकान जो वॉलमार्ट के कारण बंद हो गई थी, उसमें रेस्तरां और बिजली की दुकान में आइसक्रीम पार्लर खुला। धीर-धीरे उन सभी दुकानों में नए कारोबार की शुरुआत हुई जो वॉलमार्ट के आने से बंद हुए थे। कॉर्पोरेट की भाषा में इसे ‘क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन’ कहा जाता है।
शिकागो के लोयोला विश्वविद्यालय द्वारा 2006 में किए गए एक शोध के मुताबिक वॉलमार्ट अपने वादों पर खरा नहीं उतरा, लोयोला में स्टोर खुलने के दो साल के भीतर 82 स्थानीय स्टोर कारोबार से बाहर हो गए। लोयोला विश्वविद्यालय के अलावा अमेरिका में हुए अन्य सर्वेक्षणों ने भी यह माना कि जब वॉलमार्ट आता है तो छोटे कारोबारियों और रोजगार की विदाई हो जाती है। ‘द इफेक्टस आफ वालमार्ट आन लोकल मार्केट्स’ अध्ययन में पाया गया कि वॉलमार्ट ने प्रत्येक दो रोजगार पैदा करने के लिए तीन स्थानीय रोजगार नष्ट किए।
वॉलमार्ट के विरोध के पीछे उसके नकारात्मक प्रभाव हैं। पश्चिमी देशों ने सुपर मार्केट से अपने छोटे कारोबारियों और खुदरा कारोबार को बचाने के लिए जो नियम-कानून बनाए यह अलग से चर्चा का विषय हो सकता है। लेकिन भारत सरकार का दावा है कि वह खुदरा कारोबारियों के हितों का पूरा ख्याल रखेगी और देसी कारोबारियों के हितों के लिए उसने पुख्ता इंतजाम किए हैं। लेकिन कॉर्पोरेट और सरकार के बीच चलने वाले गठजोड़ और सरकारी नियमावली को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़-मरोड़ने की कॉर्पोरेट की जो संस्कृति रही है, वह शायह यह भरोसा नहीं जगा पाती कि खुदरा कारोबार के हितों को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
चीन में खुदरा कारोबार में 100 फीसदी एफडीआई है लेकिन चीन के साथ भारत की तुलना नहीं की जा सकती। चीन मुख्य रूप से उत्पादन करने वाली अर्थव्यवस्था है। यही नहीं वालमार्ट के लिए चीन सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश है। ऐसे में वह वालमार्ट और अन्य सुपरस्टोरों को अपने यहां खोले जाने से मना नहीं कर सकता। खुदरा वस्तुओं के उत्पादन के लिहाज से भारत चीन से अभी बहुत पीछे है।
चीन, थाईलैंड और इंडोनेशिया में खुदरा कारोबार में एफडीआई बढ़ने से वहां की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हुई है। सुपरमार्केट ने अमेरिका और यूरोप में छोटे कारोबार को जिस तरह से तहस-नहश किया, उससे ये देश अंजान नहीं हैं। इस खतरे को भांपते हुए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को सुपरमार्केट के विस्तार को रोकने के लिए सख्त लाइसेंस एवं नियामकीय प्रावधान लागू करना पड़ा है।
जाहिर है कि वालमार्ट जब किसी देश में जाता है तो देने के साथ ही वसूलता भी है। व्यापार का सारा जोर मुनाफे पर होता है। चाहे वह व्यापार अमेरिका, चीन में हो या भारत में। विदेशी पूंजी निवेश मौजूदा अर्थव्यवस्था में अनिवार्य है, इससे बचा नहीं जा सकता। या कहें कि वैश्विक आर्थिक मंच पर हम अलग-थलग नहीं रह सकते। लेकिन किसी भी क्षेत्र में एफडीआई कब, कितना और किस रूप में करना इसका आकलन सरकार को ही करना है।