दागदार दिल्ली में तब्दील होती `दिलदार दिल्ली`
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दागदार दिल्ली में तब्दील होती `दिलदार दिल्ली`

देश की राजधानी दिल्ली अब डराने लगी है। यहां अब लोगों के बीच खासकर महिलाओं में खौफ पसरने लगा है।

संजीव कुमार दुबे
देश की राजधानी दिल्ली अब डराने लगी है। यहां अब लोगों के बीच खासकर महिलाओं में खौफ पसरने लगा है। इस शहर को हैवानियत ताबड़तोड़ शर्मसार कर रही है। दरिंदगी इसके दिलवाले होने के दावे को पल-पल चिढ़ाती नजर आती है। खौफ, हैवानियत, दरिंदगी यहां की फिजाओं में समाज का सबसे शर्मनाक प्रदूषण बनकर घुलने लगा है। कुछ हैवानों की वजह से दिल्ली दागदार हो गई है और ये दाग कुछ हैवानों ने लगाया है जिनके लिए दुनिया की हर सजा भी कम पड़ जाए। समाज के कुछ दरिदों की ये हैवानियत महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ कर रही है।
अब हम यह गर्व के साथ नहीं कह सकते कि हम देश की राजधानी दिल्ली में रहते हैं। पिछले दिनों जब दिल्ली में एक मासूम को अगवा कर बलात्कार करने की खबर आई तो मन व्यथित हो गया। 6 साल की उम्र, जो एक अबोध बच्चे की उम्र होती है जिसे यह भी अंदाज नहीं होता कि सेक्स भला होता क्या है। उसके साथ एक दरिंदे ने अंतहीन दुख की ऐसी पटकथा लिखी जिसने उस मासूम को अस्पताल पहुंचा दिया।
इस घिनौनी और दुखद वारदात के बाद दिल्ली की जनता 16 दिसंबर को हुए गैंगरेप की वारदात के बाद एक बार फिर आक्रोशित हुई। सड़कों पर सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई। लोगों का गुस्सा कई दिनों तक विरोध-प्रदर्शनों,सड़क जा,नारेबाजी के बीच उबलता रहा। सरकार के आला मंत्रियों का फिर वहीं जवाब और सियासी भरोसा कि रेप की घटनाएं दुखद है और इसपर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है।
यह बड़ा ही दुखद है कि बलात्कार जैसी घिनौनी वारदात का शिकार अब मासूमों को भी होना पड़ रहा है और यह बात हमें नए सिरे से सोचने और जल्दी कुछ करने को कहती है।
एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के आंकड़ों को मानें तो यह सवाल और भी अहम हो जाता है। आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच बच्चों से बलात्कार के 48 हजार 338 मामले दर्ज किए गए यानि इन 10 सालों में रेप के मामलों में 336 फीसदी की बढोतरी हुई। 2001 में जहां ये आंकड़ा 2 हजार 113 था, 2011 में बढ़कर 7 हजार 112 पहुंच गया।
ध्यान देने वाली बात ये कि देश में अब भी बड़ी तादाद में बच्चों से बलात्कार की वारदात रिपोर्ट नहीं होती। ज्यादातर घरों में बदनामी के डर से इसे दबा दिया जाता है। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच बच्चों से रेप के सबसे ज्यादा मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए। यहां रेप का आंकड़ा रहा 9 हजार 465। इसके बाद महाराष्ट्र में 6868 केस दर्ज हुए जबकि उत्तर प्रदेश में 5 हजार 949 मामले दर्ज हुए।
यह बात सही है इस प्रकार की वारदातों के पीछे सिर्फ पुलिस और सिस्टम को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । पुलिस सबलोगों की हिफाजत नहीं कर सकती यह सच बात है। लेकिन यह भी उतना ही कड़वा सच है कि लोगों में पुलिस और कानून का खौफ नहीं है। हम महिलाओं को सम्मान देने की थोथी दलील जरूर देते है लेकिन देश का आम आदमी जानता है कि महिलाएं और लड़कियां आज की तारीख में कितनी महफूज रह गई है।
सियासतदान 33 फीसदी संसद में महिलाओं को आरक्षण देने के मुद्दे पर तो एकमत हो नहीं पाए फिर ऐसे में महिलाओं ,कन्याओं, लड़कियों को हिफाजत देने की बात करना एकदम बेमानी ही नजर आती है।
पुलिस अपना काम अगर ठीक से करती तो दिल्ली में जिस `गुड़ियां` के साथ बलात्कार हुआ उसके पिता को 2 हजार रुपये देकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश नहीं करती। यहीं पुलिस का सच सामने आता है और इससे यह भी जाहिर होता है कि ना जाने कितने ऐसे मामले पुलिस की धौंस,डराने-धमकाने और उसकी लापरवाही की वजह से ही दर्ज नहीं होते हैं। दिल्ली पुलिस के दावों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि उसपर दिल्ली पुलिस एक किताब लिख सकती है लेकिन उन दावों पर क्या हुआ और क्या हो रहा है यह बात सामने आने पर महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध के आंकड़ों से सच्चाई की पोल खुलती है। तब ऐसा लगता है कि सिस्टम में पुलिस का होना और ना होना बराबर है। पुलिस की यहीं लापरवाही इस प्रकार के अपराध को बढ़ावा देती है। इसमें और इजाफा हो जाता है क्योंकि हमारा लचर कानून ऐसा है ही नहीं जो रेप के आरोपी को जल्द सजा दिला सके।
पिछले साल 16 दिसंबर को गैंगरेप की घटना के बाद ऐसे लगा था कि केंद्र सरकार रेप के मौजूदा कानून को तर्कसंगत बनाने और उसे कठोर करने पर गंभीर है। लेकिन बातों और दावों के बीच दुर्भाग्य यह है कि इस देश के राजनेता और हुकूमत करनेवाले लोग अमलीजामा नहीं पहना पाते। इसके पीछे सियासी इच्छाशक्ति की कमी दिखती है। सरकार के नुमाइंदे कठोर कानून बनाने की बात जरूर कहते हैं लेकिन उसपर अमल और अमलीजामा पहनाने की जब बात आती है तो फिर सबकुछ ढाक के वहीं तीन पात वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
रेप के आंकडे हमारे सिस्टम और मानवता को शर्मसार करते है जब यह सामने आता है कि सिर्फ राजधानी दिल्ली के विभिन्न थानों में वर्ष 2013 के पहले साढ़े चार महीनों में दुष्कर्म के 463 मामले दर्ज किए गए, जो कि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 158 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। छेड़खानी के मामलों में 600 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। जबकि समान अवधि में प्रताड़ना के मामलों में 783.67 प्रतिशत वृद्धि हुई। पिछले साल 15 अप्रैल तक दुष्कर्म के 179, छेड़खानी के 139 और प्रताड़ना के 49 मामले दर्ज किए गए थे।
दिल्ली में महिलाओं पर जुल्म तेजी से बढ़े हैं। देश की राजधानी में इस साल एक जनवरी से लेकर 15 फरवरी तक दुष्कर्म के 181 मामले सामने आए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में हर रोज औसतन चार महिलाएं दुष्कर्म की शिकार हो रही हैं जबकि साल 2012 में यह अकड़ा औसत दो पर सीमित था। 2012 में पूरे साल में दुष्कर्म के कुल 706 मामले दर्ज हुए थे। 1 जनवरी, 2008 से 31 दिसंबर, 2011 तक दिल्ली में 1814 महिलाएं बलात्कार का शिकार हुई अर्थात 38 महिलाएं प्रतिदिन हैवानियत का शिकार हुई।
हैवानियत के इस माहौल में शीला सरकार का दिलदार दिल्ली का नया स्लोगन किसी को भी हजम नहीं होगा। अगर हम यहां रहनेवाली महिलाओं,लड़कियों,मासूमों के जेहन से डर और खौफ नहीं निकाल पाए तो दिल्ली कभी दिलदार नहीं बन सकती, यह हमेशा दागदार ही रहेगी।

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