नमो युग का आगाज
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नमो युग का आगाज

भाजपा में समय-समय पर युग परिवर्तन होते रहे हैं। एक था अटल युग, फिर आया आडवाणी युग और अब मोदी युग।

प्रवीण कुमार
भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी जैसे राजनेता कम ही नजर आते हैं जिन्होंने जनमत को इतना प्रभावित और ध्रुवीकृत किया हो। शायद भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश की जनता किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहा है। ये जुमला नरेंद्र मोदी पर बिल्कुल सटीक बैठता है `आप उनके पक्ष में हो सकते हैं या धुर विरोधी हो सकते हैं, लेकिन उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते है।` देश और पार्टी कैडर के इसी मिजाज को भांपकर पार्टी ने नरेंद्र मोदी को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है।
भाजपा में समय-समय पर युग परिवर्तन होते रहे हैं। एक था अटल युग, फिर आया आडवाणी युग और अब नमो (नरेंद्र मोदी) युग। अटल युग को अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्थक किया और देश के प्रधानमंत्री बने। उनके प्रधानमंत्री बनने में किसकी क्या भूमिका रही यह एक अलग बहस का विषय है। एनडीए की सरकार 2004 में सत्ता से बाहर हुई और इसके साथ ही अटल युग खात्म हो गया। फिर आया आडवाणी युग।

2009 का आम चुनाव आडवाणी के नेतृत्व में लड़ा गया। भाजपा की तरफ से आडवाणी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनाए गए थे लेकिन किस्मत ने आडवाणी का साथ नहीं दिया और भाजपा नीत एनडीए सत्ता के जादुई आंकड़े को नहीं छू सकी। लेकिन पार्टी में आडवाणी की अहमियत बनी रही और उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि भाजपा 2014 का चुनाव भी उनकी लीडरशिप में लड़े। लेकिन यह ना तो देश की जनता को मंजूर था और ना ही पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को। लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के बड़े नेता हैं इसमें कोई दो राय नहीं। इसमें भी दो राय नहीं कि जब-जब नरेंद्र मोदी के ऊपर संकट के बादल गहराए, आडवाणी ने उनकी नैया पार लगाई। लेकिन आज उसी नरेंद्र मोदी ने उनके प्रभुत्व को चुनौती दे दी और आडवाणी के पीएम इन वेटिंग की कुर्सी को हथिया लिया। सीधे शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा होते ही भाजपा में आडवाणी युग खत्म हो गया और मोदी युग का शुभारंभ।

जीवन में जो सक्रिय सत्ता होती है, जीवन को बदलने का जो सक्रिय आंदोलन होता है, जीवन को चलाने और निर्मित करने की जो व्यवस्था होती है, उस सबका नाम ही राजनीति है और कुछ इसी तरह की राजनीति को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जीते हैं जो अब देश के संभावित प्रधानमंत्री के उम्मीदवार भी हैं। किसी जमाने में अपने बड़े भाई के साथ चाय की दुकान चलाने वाले नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने लोकसभा चुनाव-2014 के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। दामोदरदास मूलचन्द मोदी व उनकी पत्नी हीराबेन मोदी के बेहद साधारण परिवार में उत्तरी गुजरात के मेहसाणा जिले के गांव वड़नगर में 17 सितंबर, 1950 को जन्मे नरेंद्र दामोदर दास मोदी खानपान से विशुद्ध शाकाहारी हैं। आजीवन शादी न करने का व्रत लेने वाले नरेंद्र मोदी ने अपना पूरा जीवन समाज और देश को समर्पित कर रखा है।

1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने एक किशोर स्वयंसेवक के रूप में रेलवे स्टेशनों पर सैनिकों की खूब आवभगत की। युवावस्था में ही वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई और तत्पश्चात वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। बाद में उन्हें संगठन की दृष्टि से भारतीय जनता पार्टी में संघ के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया। वड़नगर से स्कूली शिक्षा लेने के बाद गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। मोदी जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में शुरू हुआ। गुजरात में शंकर सिंह वघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की रणनीति को आज भी सराहा जाता है।

अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लाई और गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनाएं इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा जिसमें आडवाणी जी के प्रमुख सारथी की भूमिका में नरेन्द्र मोदी का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार की दूसरी रथ यात्रा कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इन दोनों यात्राओं ने मोदी का राजनीतिक कद काफी ऊंचा कर दिया जिससे चिढ़कर शंकर सिंह वघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। तब केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बनाया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा संगठन केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया।

1995 में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पांच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत कर राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व सौंपा गया। इस पद पर वे अक्तूबर 2001 तक काम करते रहे। भाजपा ने अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र मोदी को सौंप दी। नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिए राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं। कोई भारी भरकम अमला नहीं होता। नरेंद्र मोदी एक लोकप्रिय वक्ता हैं जिन्हें सुनने के लिए बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुंचते हैं। धोती कुर्ता और सदरी के अतिरिक्त वे कभी कभार सूट भी पहन लेते हैं। गुजराती उनकी मातृभाषा है और इसके अतिरिक्त वे हिन्दी में ही बोलते हैं।

गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने पार्टी और अपने राज्य में बहुत लोकप्रियता हासिल कर ली। उन्हें एक प्रगतिशील नेता के रूप में पहचान भी मिली। जिस समय नरेंद्र मोदी को गुजरात का प्रभार सौंपा गया था, उस समय गुजरात आर्थिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ था। नरेंद्र मोदी के प्रयासों से गुजरात ने उनके पहले कार्यकाल के दौरान ही सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। गुजरात के एकीकृत विकास के लिए नरेंद्र मोदी ने कई योजनाएं लागू की जिसमें पंचामृत योजना सबसे प्रमुख है।

नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगों में शामिल होने का आरोप है। जब तब उन्हें हिंदू-मुस्लिमों की आपसी भावनाओं को भड़काने और दंगों में प्रभावी कदम ना उठाने जैसे कई आरोपों का सामना करना पड़ता है। 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे हिन्दू तीर्थयात्रियों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में मुस्लिमों द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया था। इस हादसे में 59 स्वयंसेवक भी मारे गये थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मोदी ने गुजरात की 10वीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया था। राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की। 2007 में सोनिया के मौत के सौदागर वाले बयान को गुजरात की अस्मिता का सवाल बनाकर नरेंद्र मोदी ने वोटों की अच्छी फसल काटी और 49 प्रतिशत वोटों के साथ 117 सीटों पर जीत दर्ज कर एक बार फिर गुजरात में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।

दिसंबर-2012 में मोदी ने विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता की हैट्रिक लगाई। इसके बाद मोदी ने देश का मिजाज भांपा, जनता की नब्ज टटोली और पार्टी कार्यकर्ताओं की मंशा को समझा और फिर तय किया कि अब दिल्ली जीतने का वक्त आ गया है। कार्यकर्ताओं की जबरदस्त मांग पर नरेंद्र मोदी को पार्टी की संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया और फिर उन्हें चुनाव अभियान समिति की कमान भी सौंपी गई। भले ही मोदी पर 2002 के दंगों के दाग लगे हों, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना। इसे नरेंद्र मोदी का करिश्मा ही कहा जाएगा कि चाहे गुजरात विधानसभा चुनाव हो या फिर कोई और चुनाव भाजपा से कहीं ज्यादा, मोदी का व्यक्तित्व हावी हो जाता है।

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