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इंसान की ख्वाइश की कोई इंतहा नहीं
दो गज जमीन चाहिए दो गज कफन के बाद
यूं तो इंसान की ख्वाइशों का कोई अंत नहीं यह तो आपको ऊपर लिखे शेर से समझ आ ही गया होगा। मगर यदि कुछ देर के लिए इंसान के लालची मन को परे रखकर सोचा जाये तो जीने के लिए मूलतः जिन चीजों की सबसे ज्यादा आवशकता होती है वह तीन चीज़ हैं रोटी, कपड़ा और मकान। अब यदि बात की जाये रोटी की यानि जीवन यापन की तो उसके लिए तो सभी भरपूर प्रयास करते हैं और अपने अपने कार्य क्षेत्र और क्षमता के हिसाब से पैसा भी कमाते हैं फिर चाहे वो दिन भर मजदूरी करने वाला मजदूर हो, या किसी बड़े से ऑफिस में बैठकर काम करने वाला कोई पढ़ा लिखा काबिल व्यक्ति, इससे रोटी और कपड़े की समस्या तो सुलझ ही जाती है।
अब मकान की बात करें तो साधारण तौर पर यदि देखा जाये तो अपना खुद का घर हो ऐसी इच्छा हर किसी व्यक्ति की होती है खासकर घर की गृहिणी की, फिर घर छोटा हो या बड़ा हो वह बात अलग है। क्यूंकि वो बात जरूरतों पर ज्यादा निर्भर करती है, कि किसके घर में कितने सदस्य है और किस आयु वर्ग के अंतर्गत आते हैं। वैसे आज के जमाने में हर कोई बैंक से उधार लेकर ही सही मगर सबसे पहले अपना घर बनाने के बारे में ही सोचता है और बनाता भी है। किन्तु पहले ऐसा नहीं था, पहले तो लोग रिटायर्ड होने के बाद या उससे कुछ ही समय पहले अपना खुद का का घर बनाने के बारे में सोचना शुरू किया करते थे। उसके पहले तो बच्चों की पढ़ाई और गृहस्थी के खर्चों को लेकर, यह सब बातें सोचने का शायद मौका भी नहीं मिल पाता होगा। जिसका एक अहम कारण एक ही व्यक्ति पर पूरे परिवार का आश्रित होना भी होता होगा। मगर आज स्त्री और पुरुष दोनों ही कमाते हैं। जिसके चलते घर के लिए बैंक से लिया हुआ उधार भी पटाने में आसानी हो जाती है।
लेकिन क्या आप बता सकते हैं एक अच्छे घर की परिभाषा क्या होनी चाहिए? मेरे हिसाब से तो एक अच्छे घर की परिभाषा का अर्थ है एक खुला हवादार घर जो थोड़ा बहुत वास्तु के हिसाब से भी ठीक ठाक हो, घर के आस पास ही रोज़ की जरूरत से संबन्धित सभी सुविधायें आसानी से उपलब्ध हो, बिजली,पानी की कोई समस्या ना हो पड़ोसी के विषय में हल्की फुल्की जानकारी हो और ज्यादा हुआ तो घर सुरक्षा की दृष्टि से, बजाय एक सुनसान इलाके के शहर के चहल पहले वाले हिस्से में हो। बस इतना सब मिल जाये तो और किसी को क्या चाहिए।
मगर आजकल ऐसा नहीं है बल्कि आजकल तो इन्हीं सब चीजों का लालच इस प्रकार दिया जाता है जैसे कोई घर न हो राजमहल दे रहे हों, मज़े की बात तो यह है कि आपके ही पैसों से आपको ही दिये जाने वाले घर के सपने दिखाता कोई और है। यदि आप सोचो भी ना कभी इस विषय में तो आपका दिमाग घूम जाता है। इतने सारे प्रॉपर्टी डवलपर्स इन्हीं सब सुविधाओं को अलग-अलग ढंग से सजा सवारकर कुछ इस प्रकार से आपके सामने रखते हैं, कि समझ ही नहीं आता किस पर विश्वास किया जाये और किस पर नहीं। क्या सही है क्या गलत है, कौन झूठा है, कौन सच्चा, कुछ समझ नहीं आता है। आजकल तो समाचार पत्र के साथ पूरा एक अलग से पेपर भी आता है जिसमें केवल प्रॉपर्टी के विषय में ही सम्पूर्ण जानकारी होती है। कहां कितने में कौन सी प्रॉपर्टी बिक रही है और किन-किन सुविधाओं के साथ। आपको आपके बजट के अनुसार अच्छी से अच्छी और ज्यादा से ज्यादा सुविधाओं के साथ घर आसनी से मिल सकता है इत्यादि।
जबकि अच्छी से अच्छी सुविधाओं के नाम पर होगा क्या बिजली का पावर बैकप, कहने को 24 घंटे पानी जबकि उसी शहर में लोग पानी की कमी से त्रस्त हैं फिर भी यह सफ़ेद झूठ बोलने में ना तो उनकी ज़ुबान ही लड़खड़ाती है, और न ही हम भी इस बात पर ध्यान देते हैं, नतीजा यह सब जानते हुए बेबकूफ़ भी हम ही बनते है। घर के सामने बच्चों को खेलने के लिए पार्क, कवर्ड कार पार्किंग, लिफ्ट की सुविधा, वुडवर्क, गैस के ऊपर चिमनी, वुडन फ़्लोर, गैस पाईप लाइन, बाथटब और आस पास कोई अच्छा स्कूल, जो कि इंडिया में घर के नज़दीक हो ना हो कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। फिर भी उनका तो काम है इसलिए वह इसे भी एक सुविधा में गिनते हैं, साथ ही आपकी सोसाइटी में क्लब का होना भी आजकल फ़ैशन बन गया है। जिसमें शामिल हैं जिम, स्विमिंग पूल, टेनिस इत्यादि खेलने की सुविधा उपलब्ध है। ऐसा आशवासन दिया जाता है। फिर भले ही उसमें लोग नियमित जाते हो या ना जाते हो, उनकी बला से। अभी कुछ ही दिनों पहले पढ़ने में आया था कि अब एटीएम की सुविधा भी देना शुरू कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त घर के आगे पीछे हलियाली और इन सब चीजों का मेंटनेंस भी आपसे ही ले लिया जाता है, ज़्यादातर जगहों पर हर महीने देना पड़ता है और करीब करीब आपके घर की कीमत का 0.05 % मेंटनेंस देना पड़ता है।
बात यहीं खत्म नहीं होती और तो और सैंपल फ्लॅट भी आपको ऐसा सजाकर दिखाया जाता है कि मन करता है बस यही सजा सजाया घर यूं ही मिल जाये, बस यही सब सुविधाओं की दुहाई देते कब आपको बातों ही बातों में लूट लिया जाता है और आप लुट भी जाते हैं और आपको पता भी नहीं चलता। जब तक घर बनकर आपके हाथों में आता है तब तक वहाँ और भी लोग बस चुके होते हैं और आपका घर उन सभी घरों के बीच एक साधारण सा घर ही नज़र आता है। तब उस घर को देखकर ऐसा ज़रा भी नहीं लगता कि यह वही हमारा सपनों का घर है जिसे लेने से पहले हमने न जाने कितने सपने बुने थे।
लेकिन फिर भी यह धंधा आज की तारिख में ज़ोरों पर हैं लोग लूट रहे हैं और लोग लुट भी रहे हैं। आपने वो कहानी तो सुनी ही होगी शायद। वो एक राजकुमार और चार बुढ़ियों की कहानी जिसमें चारों का नाम था आस, प्यास, भूख, नींद वो जिसमें जब राजकुमार सबसे उनका नाम पूछता है तो पहली कहती है मेरा नाम आस है और राजकुमार कहता है अरे आस मैया के तो क्या कहने उनके सामने तो सारी दुनिया सर झुकाती है, फिर दूसरी से पूछता है आपका नाम क्या है वह कहती प्यास तो फिर वो कहता है अरे प्यास का क्या है चाँदी या सोने के गिलास में पानी पियो तो भी प्यास बुझ जाती है और यदि हाथ से चुल्लू बनाकर पियो तो भी प्यास बुझ ही जाती है। इसी प्रकार तीसरी जब अपना नाम बताती है भूख तभी वो वही कहता है भूख का क्या है छप्पन भोग खाओ तो भी खत्म हो जाती है और यदि सूखे टुकड़े भी खाओ तो भी भूख मिट तो जाती ही है। ऐसे ही चौथी बुढ़िया से पूछने पर जब वह अपना नाम बताती है नींद तब भी वह वही कहता है अरे नींद का क्या है सैर सोपौदी और मखमल के बिस्तर भी नींद आजाती है और यदि आँगन में ज़मीन पर सो जाओ तब भी नींद आ ही जाती है।
ऐसा ही कुछ तो है मानव स्वभाव भी इंसान अपनी जरूरतों को कम करके भी एक खुशहाल जीवन जी सकता है मगर आज की तारीख में जीना नहीं चाहता। क्यूंकि आज कल पैसे की कमी नहीं है और यदि है भी तो दिखावा जिसे अंग्रेजी में स्टेटस सिंबल कहा जाता है। वह आपको अपनी कमी दिखाने का मौका नहीं देता वरना रहने को पहले भी लोग कच्चे घरों में रहा ही करते थे, मगर आज महल जैसे घर भी छोटे या किसी न किसी वजह से असुविधा जनक ही लगते हैं। आखिरकार कहने का तात्पर्य यह है की यदि आप भी घर खरीदने के बारे में सोच रहे हों तो ज़रा सोचिए कहीं आपको भी तो लूटा नहीं जा रहा है न ।