लड़कियों के लिए ये कैसा 'फलक'?
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लड़कियों के लिए ये कैसा 'फलक'?

अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो। इस जुमले को अब बदल देना चाहिए। अगले जन्म मोहे बिटिया तो कीजो लेकिन भारत में न पैदा कीजो । आखिर क्यों बिटिया का भारत में जन्म लेना अभिशाप है।

 

खुशदीप सहगल

 

अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो। इस जुमले को अब बदल देना चाहिए। अगले जन्म मोहे बिटिया तो कीजो लेकिन भारत में न पैदा कीजो । आखिर क्यों बिटिया का भारत में जन्म लेना अभिशाप है। पिछले साल उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी ने दिल्ली में कहा था कि भारत में लड़कियों को पैदा होते ही मार देना चाहिए। उनके इस बयान पर ख़ूब विवाद हुआ था। ज़ाहिर है सलमा अंसारी का आशय भारतीय समाज में लड़कियों से किए जाने वाले भेदभाव और महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराधों पर अपना आक्रोश जताना था। ये कहते वक्त सलमा अंसारी के मन में जो कुछ भी रहा हो लेकिन संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा आंकड़ों ने उनके बयान पर मुहर लगा दी है। इन आंकड़ों के मुताबिक बच्चियों के अस्तित्व को दुनिया में भारत से ज़्यादा ख़तरा किसी और देश में नहीं है।

 

ये दुर्योग ही है कि संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (UN-DISA) ने बच्चियों की भारत में भयावह स्थिति को लेकर आंकड़े ज़ाहिर किए तो दिल्ली के एम्स में भर्ती दो साल की मासूम फ़लक की दर्दनाक कहानी सबके सामने है । संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के ज़िक्र से पहले फ़लक की बात कर ली जाए । फ़लक को जिस 15 साल की लड़की किशोरी (काल्पनिक नाम) ने एम्स में बुरी हालत में भर्ती कराया, उसकी आपबीती भी कम रौंगटे खड़े करने वाली नहीं है। किशोरी पर आरोप है कि उसने वहशी की तरह नन्ही सी जान फलक को पीटा, सिर पटक कर दे मारा, मुंह पर बुरी तरह से काटा । फ़लक की हालत देखकर किसी का भी कलेजा मुंह को आ सकता है। लेकिन सवाल ये भी है कि 15 साल की किशोरी के सिर पर दरिंदगी क्यों सवार हुई। क्या ये लड़की खुद उसके साथ जो अपने-परायों ने किया, उसका बदला मासूम से लेना चाहती थी । या वो नहीं चाहती थी कि जो उसके साथ हुआ  वो बड़ी होने पर फ़लक को भी झेलना पड़े।

 

आरोप के मुताबिक किशोरी ने बेशक उन्माद के चलते फ़लक का बुरा हाल किया लेकिन होश में आने के बाद वो खुद ही मासूम को एम्स में भर्ती कराने के लिए भी लाई। एम्स में उसने खुद को फ़लक की मां ही बताया और फ़लक को चोट लगने की वजह ऊंचाई से गिर जाना बताया। ​लेकिन बाद में किशोरी ने फलक की मां होने से इनकार किया। अब वो बाल कल्याण कमेटी के संरक्षण गृह में है। नाबालिग किशोरी के मुताबिक फ़लक को उसके पहले से ही शादीशुदा प्रेमी और टैक्सी ड्राइवर राजकुमार ने सौंपा था ।

 

राजकुमार से वो कैसे मिली, इस पर किशोरी का कहना है कि पिता ने उसे  पिछले साल जून में घर से निकाल दिया था तो राजकुमार ने ही उसे सहारा दिया । उसका पिता उससे जानवरों जैसा सुलूक करता था। किशोरी को मारने पीटने और घर से निकालने केआरोप में उसके पिता जीतेंद्र को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। जीतेंद्र हत्या के एक मामले में पहले से ही अभियुक्त है। किशोरी की सुनाई आपबीती के अनुसार घर से निकाल दिए जाने के बाद उसे  पहले से जानने वाली एक महिला पूजा के पास ले गई।

 

मूल रूप से कोलकाता के रेड लाइट एरिया सोनागाछी की रहने वाली पूजा ने ही किशोरी को जिस्मफरोशी के लिए मजबूर किया। पूजा के पति संदीप ने किशोरी का बलात्कार किया जिससे उसे मनमानी कराई जा सके। पूजा किशोरी को यूपी के एटा भी ले गई जहां उसे एक अधेड़ से शादी करने के लिए कहा गया। किशोरी ने मना किया तो संदीप ने फिर उसके साथ बलात्कार किया। फिर किशोरी को पूजा दिल्ली में तुगलकाबाद स्थित अपने घर ले आई। पूजा और संदीप भी अब पुलिस की गिरफ्त में है। पुलिस ने चार और लोगों की पहचान की है जिन्होंने किशोरी की अस्मत से खिलवाड़ किया। तुगलकाबाद में ही किशोरी की मुलाकात एक दिन टैक्सी ड्राइवर राजकुमार से हुई। किशोरी के मुताबिक राजकुमार ने उसे जिस्मफरोशी के दलदल से निकालने का वादा किया और मंदिर में शादी भी की।

 

किशोरी के दावे के मुताबिक राजकुमार ने ही पिछले साल नवंबर में फ़लक को उसे देखभाल के लिए सौंपा था। राजकुमार के पास फ़लक कहां से आई, पुलिस के मुताबिक वो कहानी भी बड़ी पेचीदा है। इस कहानी में फ़लक का कई  हाथों से गुज़रना शामिल है। ​फ़लक को लेकर मुन्नी नाम की एक महिला पिछले साल सितंबर में दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाली महिला लक्ष्मी के पास आई...मुन्नी ने लक्ष्मी को बताया कि उसके पति ने बच्ची समेत उसे घर से निकाल दिया और उसे सहारा देने वाला कोई नहीं है। लक्ष्मी ने मुन्नी को नौकरानी के तौर पर फ़लक के साथ घर में रख लिया। मुन्नी लक्ष्मी के घर पर बीस दिन तक रहने के फ़लक को वहीं छोड़कर गायब हो गई। लक्ष्मी के घर से बच्ची मनोज नाम के शख्स के ज़रिए राजकुमार तक पहुंची। राजकुमार ने बच्ची की परवरिश करने की इच्छा जताई थी।

 

शादीशुदा राजकुमार बच्ची को अपने घर लेकर गया तो उसकी पत्नी ने उसे साथ रखने से इनकार कर दिया। इसी के बाद राजकुमार बच्ची को लेकर पिछले साल नवंबर से किशोरी के साथ रहने लगा । जनवरी के मध्य में राजकुमार अपने एक विकलांग बच्चे के इलाज़ के लिए मुंबई गया तो बच्ची फ़लक किशोरी के साथ दिल्ली में अकेली रह गई। पंद्रह साल की किशोरी के लिए अकेले बच्ची को संभालना मुश्किल हुआ और उसने आरोप के मुताबिक बच्ची का बुरा हाल कर डाला और फिर उसे 18 जनवरी को एम्स में भर्ती कराया।

 

न तो पुलिस के हाथ अभी तक राजकुमार आया है और न ही लक्ष्मी के घर पर फ़लक को छोड़ने वाली मुन्नी। उनके सामने आने पर ही पता चल सकेगा कि फ़लक को जन्म देने वाले मां-बाप कौन है। शक जताया जा रहा है कि राजकुमार और मुन्नी के रिश्ते से ही फलक का जन्म हुआ और वो पकड़े जाने के डर से भूमिगत हो गए हैं। फ़लक को जन्म देने वालों की गुत्थी को सुलझाने के लिए ही एम्स में उसका डीएनए सेम्पल लिया गया। ​किशोरी और फ़लक की दास्तान से ही साफ़ है कि लड़कियों के लिए हालात कितने बदतर हैं...

 

फ़लक एम्स में है, इसलिए इसकी कहानी मीडिया के ज़रिेए दुनिया के सामने आ गई। वरना न जाने भारत में कितनी ही फलक और किशोरियां ऐसे ही बदतर हालात से गुज़र रही होंगी। संयुक्त राष्ट्र के के आंकड़ों की माने तो भारत बच्चियों के मामले में सबसे असुरक्षित देश है।

लड़के की चाहत में पहले लड़कियों को कोख़ में ही मार दिया जाता है। अगर पैदा हो भी जाती हैं तो उन्हे कैसे हालात से गुज़रना पड़ता है ये फ़लक और किशोरी की कहानी से ही साफ़ हो जाता है। ​संयुक्त राष्ट्र के विभाग के आंकड़ों के मुताबिक भारत में   1 से 5 साल की लड़कियों का मरने का खतरा इसी वर्ग के लड़कों की तुलना में 75 फीसदी ज़्यादा होता है। एक दिन से लेकर एक साल के नीचे के नवजातों और 1 से 5 साल के बच्चों की मृत्यु दर पूरी दुनिया में गिरी है। लेकिन भारत में मृत्यु दर की ये गिरावट उतनी तेज़ी से नहीं गिरी जितनी कि दुनिया के और देशों में।

 

दुनिया के दूसरे हिस्सों में ये भी देखा गया है कि लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों के मुकाबले ज़्यादा गिरी है। लड़कियों की जैविक सृष्टि ऐसी होती है कि उनकी समान संसाधन दिए जाने पर लड़कों के मुकाबले जीवित रहने की ज़्यादा संभावना होती है। लेकिन भारत में इस मामले में उल्टी गंगा बह रही है। संयुक्त राष्ट्र के विभाग ने डेढ़ सौ देशों से चार दशक के जो आंकड़े जुटाए है उनके मुताबिक भारत और चीन ही ऐसे देश हैं जहां एक साल से नीचे की नवजात बच्चियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में ज़्यादा है। चीन में हर 100 लड़कियों के मुकाबले सिर्फ ७६ लड़कों की मौत की होती है। वहीं भारत में 100 नवजात बच्चियों की तुलना में 97 लड़कों की ही मौत होती है। जबकि दुनिया के दूसरे विकासशील देशों में चीन-भारत के विपरीत 100 नवजात बच्चियों के मुकाबले 122 लड़कों की मौत होती है। भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका में 100 नवजात लड़कियों की तुलना में 125 लड़कों और पाकिस्तान में 120 लड़कों की मौत होती है।

अगर 1से 5 साल की बच्चियों की बात की जाए तो इक्कीसवीं सदी शुरू होने के बाद से भारत का रिकार्ड सबसे खराब निकला। यहां मरने वाली हर 100 बच्चियों  की  तुलना में सिर्फ 56 लड़कों की ही मौत हो रही है। सत्तर के दशक के बाद से भारत का इस मामले में रिकार्ड लगातार खराब ही होता आ रहा है। जबकि पाकिस्तान, श्रीलंका, मिस्र और इराक में स्थिति में काफ़ी सुधार आया है।

 

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लड़कियों से किया जाने वाला भेदभाव और संसाधनों तक उनकी कम पहुंच ने भारत को लड़कियों के वजूद के लिए सबसे ख़तरनाक जगह बना दिया है। यहां बच्चियों को खाना देने में, बीमार पड़ने पर डाक्टर के पास ले जाने में, यहां तक कि जीवन रक्षक टीके लगवाने में भी लड़कों के मुकाबले दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। एक तरफ़ समाज में लड़कियों के लिए विषम परिस्थितियां है तो बड़ी होने पर उनके खिलाफ बलात्कार, छेड़छाड़ जैसे अपराध देश में लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में बिटिया क्यों न कहें...अगले जन्म मोहे भारत में पैदा न कीजो...।

 

(लेखक ज़ी न्‍यूज में सीनियर प्रोड्यूसर हैं)

 

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