RSS ने मोदी पर कभी वीटो नहीं लगाया : इंद्रेश
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RSS ने मोदी पर कभी वीटो नहीं लगाया : इंद्रेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ थिंक टैंक इंद्रेश कुमार से ज़ी रीज़नल चैनल्स के संपादक वासिंद्र मिश्र ने संघ और मुसलमान के रिश्ते, हिन्दुत्व, नरेंद्र मोदी की पीएम पद की उम्मीदवारी आदि मुद्दों पर लंबी बातचीत की। पेश है सियासत की बात में उसके कुछ प्रमुख अंश।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ थिंक टैंक इंद्रेश कुमार से ज़ी रीज़नल चैनल्स के संपादक वासिंद्र मिश्र ने भाजपा-संघ के रिश्ते, हिन्दुत्व, नरेंद्र मोदी की पीएम पद की उम्मीदवारी आदि मुद्दों पर लंबी बातचीत की। पेश है सियासत की बात में उसके कुछ प्रमुख अंश।
वासिंद्र मिश्र : नमस्कार, हमारे साथ हैं खास मेहमान इंद्रेश जी, इंद्रेश जी का सरोकार संघ परिवार से है, संघ के सीनियर मोस्ट अधिकारियों में से एक हैं। इनकी सबसे बड़ी पहचान है कि इन्होंने लगभग 10 वर्षों से अल्पसंख्यक समाज को संघ से जोड़ने के लिए बहुत बड़ा आंदोलन चला रखा है, इसमें काफी हद तक कामयाबी देखने को मिली है। आज हम इंद्रेश जी से ये जानने की कोशिश करेंगे, पिछले 10 सालों से इन्होंने जो आंदोलन चला रखा है, जिसको ये आगे बढ़ा रहे हैं, ये किस वजह से है? क्योंकि संघ के बारे में एक आम धारणा है संघ बहुसंख्यक समाज की बात करता है, हिन्दुत्व की बात करता है, तो ऐसे में अगर वो संगठन के जरिए अल्पसंख्यकों की बात करता है तो इसके पीछे क्या कारण हैं?
इंद्रेश कुमार : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूलत: ये मानना रहा है कि जो इस देश के तथाकथित अल्पसंख्यक माने जाते हैं, वो ईश्वर से पूर्वजों से, देश से, जाति-उपजाति से, भाषाओं से, पंराम्पराओं से 99 फीसदी मूल रूप से भारतीय हैं। बाहर से लोग आये लोगों ने उनमें कन्वर्जन किया, उसमें उन्होंने प्रवेश किया इसलिए केवल पूजा पद्धति बदली है, बाकी चीजें भारतीय रूप में ही हैं। दूसरी बात संघ का साफ चिंतन रहा है, जब आप हिन्दुत्व कहते हैं तो ये कोई पंथ या अवधारणा नहीं है, Religious conotation नहीं है, ये एक राष्ट्रीय और जीवन पद्धति की अवधारणा है। जैसे भारत से भारतीय है, हिन्दुस्तान से हिन्दु है। आज हिन्दु समाज के अंदर भी अनेक तरह की पूजा पद्धतियां हैं, जो हिन्दू समाज में हैं। कुछ पूजा पद्धतियां समय-समय पर बदलती रहती हैं। हमारी सोच धर्म से जुड़ी नहीं है, हमारी सोच एक मानवीय राष्ट्रीय अवधारणा है। इसलिए राष्ट्र के रूप में जब हम कहते हैं हिन्दु तो इसमें किसी को कोई संकोच नहीं लगता।

वासिंद्र मिश्र : संघ को शुरूआती दौर में समरसता, समन्वय बनाने में दिक्कतें आईं और इसमें कई साल लग गए। ऐसे में पिछले 10 साल से आप जो मुहिम चला रहे हैं, उस समाज के लोगों के बीच आपको दिक्कत नहीं हुई, अपनी बात पहुंचाने में....
इंद्रेश कुमार : मुझे कभी भी इस बात की कठिनाई महसूस नहीं हुई। इसका एक मूल कारण है, जब मैं जम्मू कश्मीर में संघ के प्रचारक के रूप में था, मेरा मुस्लिम लोगों से व्यक्तिगत और सामूहिक रूप में वार्ता और संवाद बहुत बड़े पैमाने पर हुआ। मैंने एक बार उनसे प्रश्न किया था कि इस मस्जिद, दरगाह में मैं इबादत करना चाहूं, इंद्रेश कुमार के नाते तो मैं कर सकता हूं या नहीं? अगर पंथीय विचार से देखें तो मैं सनातनी हूं, नाम से विचार करना है तो मैं भारतीय हूं, हिन्दु हूं और मेरी भाषा-बोली भी हिन्दुस्तानी है तो क्या मैं इबादत कर सकता हूं? मेरी प्रार्थना को प्रभु या खुदा स्वीकार करेगा या नहीं? इस चर्चा के दौरान में ये बात सामने आई कि कुरान पाक में भी लिखा है रब उल आलमी, रब उल मुस्मिल नहीं लिखा। ऐसे में जब वो आलमीन है तो मैं भी उसके आलम में आता हूं। दूसरा सवाल ये कि क्या मालिक एक दो ही जुबान जानता है? जवाब मिला कि मालिक उस बेजुबान की भी जुबान जानता है, कीट पंतग, पेड़ पौधों, और पत्थर की भी जुबान जानता है। उसका भी कल्याण करता है। ऐसे में वो एक जुबान सुनेगा और दूसरी नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? जैसे इस्लाम में भी अरब वाला अरबी में बोलता है तुर्किस्तान वाला तुर्की में बोलता है, ईरान और इराक वाला फारसी में बोलता है, हिन्दुस्तान में उर्दु में बोलते है, ये सब जुबानों में बोलते है ये सब अलग-अलग हैं। उसी मालिक के लिए कोई अल्हा, कोई तारिक, कोई खुदा कहता है, कोई रब कहता है ऐसे ही हम उसे भगवान ईश्वर, परमेश्वर कहते हैं। उस वक्त जब ये संवाद हुआ तो उन्होंने बड़े विश्वास से कहा, जो आपकी मानवीय, राष्ट्रीय सोच है, इससे आप यहां इबादत भी कर सकते है और वो इसे स्वीकार भी करेगा क्योंकि आपके मन में मूल रूप से भारत की वो संस्कृति है सर्वे भवन्तु सुखिन..सर्वे संतु निरामया...जिसको इस्लाम के अंदर लाकुम दिनकुम वालेयकुम कहा गया है। अपने-अपने दीन पर चलो, एक दूसरे के दीन में दखल मत दो बल्कि अपने पर चलो और दूसरे का सम्मान करो तो भाईचारा है। भारतीय संस्कृति मूल रूप से यही है, इसलिए हम मानते हैं कि भारत एक ऐसा देश है, भारत एक समाज ऐसा है, भारतीयता एक ऐसी संस्कृति है जिसमें विश्व के सब मत, पंथों के लोग समानता के साथ जी सकते हैं। जिसके बारे में रसूल साहब ने कहा मुझे हिन्दुस्तान से सुकून की हवा आती है, इसलिए मैं मुस्लमानों के बीच जाकर कहता हूं जिस हिन्दुस्तान से जिस हिन्दुस्तान के लोगों से, कौम से, जिसकी संस्कृति से रसूल साहब को ठंडी हवा आती है, वो मुझे और आप को नफरत की हवा कैसे दे सकता है। इसलिए मुझे लगा कि ऐसी कोई कठिनाई नहीं है।

वासिंद्र मिश्र : आपके बयान अखबारों में पढ़े हैं कि मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को महज वोट बैंक के रूप में नहीं देखना चाहिए, लेकिन ये जो धारणा है, ये सोच है, ये सिर्फ कांग्रेस और बाकी राजनैतिक दलों में ही नहीं है, ये भारतीय जनता पार्टी में भी देखने को मिला है। जब अटल जी प्राइम मिनिस्टर थे और उसके बाद चुनाव हुआ, तो रातों रात एक संगठन खड़ा किया गया और उस संगठन से पूरे देश में बस से कौमी एकता की यात्रा निकाली गई थी, उनमें कुछ चुनिंदा शायर और कुछ मौलवी भी थे। ये अलग बात है कि उस चुनाव में बीजेपी को कामयाबी नहीं मिली और कांग्रेस आ गई लेकिन ये काम भारतीय जनता पार्टी ने भी करने की कोशिश की थी दूसरा भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने संगठन के अंदर एक अल्पसंख्यक मोर्चा बना रखा है तो अगर वो मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में नहीं देखते तो सिर्फ चुनाव के वक्त मुसलमान क्यों याद आते हैं? चुनाव के समय ही ऐसे मोर्चे क्यों सक्रिय हो जाते हैं? जो आपका प्रयास है उसमें आपको नहीं लगता है कि इसका राजनैतिक लाभ भारतीय जनता पार्टी उठा सकती है?
इंद्रेश कुमार : हम तो समाज के अंदर एक अच्छे नागरिक की पहचान स्थापित करते हैं। लोकतंत्र के अंदर हर नागरिक अपने विचार, अपने नेता और दल को जानकर वोट करता है। इसका लाभ कौन उठाएगा, इसका फैसला तो राजनैतिक दलों को करना है। मुझसे कश्मीर में मिस्टर खांडेकर, जो पहले डीएम थे और बाद में प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे, उन्होंने पूछा था कि संघ का मुसलमान के बारे में नजरिया क्या है, मैंने कहा अगर मुझे गैर सियासी रूप से बोलना है तो संघ इस देश में मुसलमान को भारतीय हिन्दु नागरिक के रूप में मानता है और वो इंसान मानता है जिसे बेचे और खरीदे नहीं जा सकते है। ये कोई गुलामी की परंपरा और प्रथा का देश नहीं है। राजनैतिक दल मुस्लिमों को वोट मानते हैं, वोट की फिर खरीद-फरोख्त करते है, उसी का परिणाम है कि 60 वर्षों के बाद भी उनका पिछड़ापन, अनपढ़ता तमाम सुविधाएं मिलने के बाद भी दूर नहीं हुई हैं। इसलिए संघ का सुनिश्चित मत है और मैं इसे कहता भी हूं कि मुसलमानों को वोट बैंक के तौर पर ना लें, वो इस देश के ऐसे ही नागरिक हैं। सारा समाज इस देश का नागरिक है। एक बात और है कि वो मक्का मदीना जाते हैं, हज के लिए जातें हैं क्योंकि उससे जन्नत नसीब होगी लेकिन जब उन्हें जिंदाबाद बोलना होगा तो वो जिंदाबाद अरब नहीं बोलेंगे, वो जिंदाबाद हिंदुस्तान हीं बोलेंगे। जब उन्हें आजादी और इज्जत के लिए सर कटवाना होगा तो अरब के लिए नहीं हिन्दुस्तान के लिए कटवाएंगे। इसीलिए उन्हें सिर्फ वोट बैंक नहीं मानना चाहिए, वो हिन्दुस्तान की मूल ताकत हैं। लोकतंत्र में प्रजा राजा होती है और प्रजा जिनको चुनकर भेजती है और जो प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त होते हैं वो सेवक होते हैं। परन्तु डेमोक्रेसी के अंदर प्रजा सेवक हो गई और जो चुन के जाते हैं और जो नियुक्त होते हैं, नौकरियों के लिए, वो राजा बन गए हैं। लोकतंत्र में इस धारणा को बदलने की जरूरत है।

वासिंद्र मिश्र : संघ और संघ से जुड़े लाखों-करोड़ों कार्यकर्ता अपनी पूरी पूरी जिन्दगी समर्पित कर देते हैं, समाज को अच्छा बनाने में, समाज में एक अच्छा नागरिक बनाने में, लेकिन संघ के ही कुछ आनुवांशिक संगठन हैं, जो संघ से ही ऊर्जा लेते हैं, मार्गदर्शन लेते हैं लेकिन जब उनके पास सत्ता आती है तो संघ के सिद्धांतों को, उसूलों को भूल जाते हैं। इसके लिए आप लोग पुनर्विचार या कोई मंथन कर रहे हैं?
इंद्रेश कुमार : ऐसा है कि अभी तक हमारे ऐसे कोई अनुभव नहीं हैं । चाहे राजनीतिक क्षेत्र हो, मजदूरी का क्षेत्र हो, किसान हो, विद्यार्थी हो, धार्मिक क्षेत्र हो जहां संघ से ऊर्जा लिए हुए, सिद्धांतों से भटकते हुए बहुत नज़र आए हैं और सामान्यतया हमें ये लगता है कि जो वो ऊर्जा लेते हैं, उसके अनुरूप कभी सफल होते हैं और कभी असफल होते हैं। ये तो हो सकता है और जब आदमी मैदान में जाएगा, तब उसके अंदर इस तरह के परिणाम आएंगे। परन्तु अभी हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ है कि ऊर्जा लेने के बाद वो रास्ते से भटक जाते हैं। अभी तक तो लगभग ऐसा दिखता है कि संगठन के हिसाब से सब लोग पथ से चल रहे हैं। बीच-बीच में किसी के मन में कोई प्रयोग आता होगा तो वो उसको करता है। प्रयोग करने के बाद आज एक बात जरूर है कि कहीं ना कहीं समाज में ऐसी राजनीतिक शक्तियां, प्रशासनिक शक्तियां हैं और उनको मीडिया के अंदर से भी लोग मिलते हैं जो ये चाहते हैं कि संघ के अंदर का टकराव, संघ के अंदर की दूरियों को अधिक से अधिक उछालने की कोशिश की जाए। बात का बतंगड़ बनाने का एक फैशन मैंने पिछले 40-50 सालों में देखा है।

वासिंद्र मिश्र : नहीं, लेकिन इधर पिछले 10-12 वर्षों में आपको नहीं लगता है कि संघ कल्चरल कार्यों से ज्यादा राजनीतिक गतिविधियों की वजह से चर्चा में है?
इंद्रेश कुमार : ऐसा है कि आज मीडिया और बाकी सब लोगों को लगता है कि संघ की केवल पॉलिटिकल चर्चा करो। संघ जब अपने सेवाकार्य बताता है, तो उसके डेढ़ लाख सेवाकार्य हैं। संघ से प्रेरणा लेकर आज समाज के अंदर चलने वाले 30 हजार से ज्यादा शैक्षिक संस्थाएं हैं, संघ के लाखों कार्यकर्ता, करोड़ों लोगों के समाज से छुआछूत को दूर करने के लिए काम कर रहे हैं। संघ उन विदेशी लोगों के खिलाफ भी काम करता है जो मतांतरण के जरिए देश में अश्रद्धा निर्माण करने का काम करते हैं। मतान्तरण भगवान के विरुद्ध किया गया पाप और अपराध होता है, जो कुछ दिया भगवान ने दिया उसको बदलना और बदलवाना किसी भी रूप में ईश्वरीय नहीं हो सकता है। संघ राजनैतिक नहीं हुआ है। लगता है समाज के अंदर प्रस्तुत करने वाले जो नेता और मीडिया के लोग हैं उनका चश्मा केवल पॉलिटिकल रह गया है। मैं आपके जरिए नेताओं और मीडिया से प्रार्थना करूंगा कि संघ को बहुआयामी संगठन और विचार के रूप में देखें।

वासिंद्र मिश्र : साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि संघ एक्स्ट्रा कॉन्स्टीट्यूशनल अथॉरिटी के रूप में भाजपा पर दवाब डाल रहा है, इसको आप कितना मुनासिब समझते हैं।
इंद्रेश कुमार : ऐसा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ एक्स्ट्रा कॉन्स्टीच्यूशनल अथॉरिटी है ही नहीं, क्योंकि संघ एक कर्तव्य से ओतप्रोत संगठन है। अधिकारों से ओतप्रोत संस्था नहीं है। यहां अधिकार की चर्चा नहीं होती, कर्तव्य की होती है। इसलिए पहली बात तो आपके द्वारा मैं ये स्पष्ट करवाना चाहूंगा कि संघ राइट बेस्ड ऑर्गनाइजेशन नहीं है, ड्यूटी बेस्ड ऑर्गनाइजेशन है। दूसरी बात ये है कि आपके प्रश्न से एक बात बहुत अच्छी तरह से झलकती है, कि संघ के अंदर पूर्णतया लोकतंत्र है, इसलिए सहज सरल कमरे के अंदर या बाहर अगर कहीं ठीक या गलत की चर्चा हुई भी तो उसके कारण पार्टियां टूटती और बिखरती नहीं है। उसके कारण मतभेद आकर मनभेद नहीं बनते। बल्कि स्वस्थ आलोचना की वजह से सब सुधरते और संभलते हैं।

वासिंद्र मिश्र : लेकिन नरेन्द्र मोदी के नाम पर इतना वीटो क्यों लगाया गया संघ की तरफ से?
इंद्रेश कुमार : संघ ने कोई वीटो नहीं किया है, इसे वीटो के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा है। सच तो ये है कि जनता लोकसभा चुनाव में 12-15 नाम लेकर आगे बढ़ रही है, उसमें राहुल गांधी भी हैं, सोनिया गांधी भी हैं, चिदंबरम भी हैं, मनमोहन सिंह भी हैं, उसमें नरेन्द्र मोदी भी हैं, आडवाणी जी भी हैं, उसमें नीतीश कुमार भी हैं, मुलायम सिंह भी हैं, सुषमा जी भी हैं। जनता ने ऐसे सब नामों को चुनने के बाद अपना मत व्यक्त करना शुरू किया है। मत व्यक्त क्या है? वो केवल बोल रही है उसके मत का आज मीडिया अध्ययन कर रहा है। और फिर वो बताता है कि फर्स्ट रनर मोदी है, तो ये जो फर्स्ट रनर मोदी हैं वो देश को बता कौन रहा है। मीडिया, इसका वोटिंग कौन कर रहा है, अज्ञात रूप से जनता कर रही है। हर दल की कर रही है, हर भाषा की कर रही है, हर जाति की कर रही है, हर धर्म पंथ की कर रही है। अब मैं ये सोचता हूं कि मीडिया गलत नहीं दिखा रहा है और जनता गलत वोट नहीं कर रही है।

वासिंद्र मिश्र : इंद्रेश जी एक और धारणा है, जो लोग संघ की कार्यप्रणाली से परिचित नहीं हैं उनके मन में यह बात ज्यादा आती है कि संघ 15-20 साल पहले से तैयारी करता है। अपने कार्ययोजना के मुताबिक व्यक्तित्व निर्माण करता है। आप जो दायित्व इस वक्त निभा रहे हैं, अल्पसंख्यकों को संघ से जोड़ने का और संघ के जरिये भारतीय जनता पार्टी के प्रति समर्थन जुटाने का, इसके पीछे कहीं नरेन्द्र मोदी के बारे में जो एक उनकी छवि बनी हुई है कि वो अल्पसंख्यक विरोधी हैं, उस छवि को खत्म करना...
इंद्रेश कुमार : ऐसा है कि आपका प्रश्न स्वयं में एक गलत अवधारणा का जन्म है। जब प्रश्न गलत होगा तो उसका सही उत्तर खोजने में कठिनाई होगी। इस देश के अंदर जाति, पंथ, भाषा और दलों के नाम पर वैमनस्य हो गया है। आज देश में भ्रष्टाचार, बलात्कार अपराध, प्रदूषण, बढ़ती महंगाई, असुरक्षा का प्रतीक हो गया है। समाज मूल रूप से समरस और एकात्म रहे, क्योंकि स्वामी विवेकानन्द ने 120 वर्ष पूर्व इस बात को स्थापित किया था कि अगर विश्व मंगल का, विश्व शांति का, विश्वबंधुत्व का कोई भी मार्ग है तो वो भारत से है, भारतीयों से है, भारतीय संस्कृति से है। इसे विश्व ने स्वीकार किया था। ऐसा हिन्दुस्तान बनाने के लिए हमारे ये प्रयत्न हैं। और इन प्रयत्नों में बहुत अच्छी सफलता मिल रही है। लाखों मुसलमानों ने भी ये बात बहुत साफ-साफ कहा है कि अब वो वाया मीडिया या वाया पॉलिटिकल लीडर संघ से संवाद नहीं करते। उनका कहना है सब तथाकथित सेकुलरिज्म के मॉडल हैं, पर सुपर सेकुलरिज्म, नेशनलिज्म और ह्यूमिनिज्म का मॉडल संघ है, इसलिए हम संघ से सीधा संवाद करते हैं।

वासिंद्र मिश्र : अभी तक कोई बड़ा मौलवी या कोई बड़ा नाम मुसलमानों की तरफ से कोई है जो.....
इंद्रेश कुमार : अखिल भारतीय इमाम ऑर्गनाईजेशन के प्रेसिडेंट थे मौलाना जमील इलियासी, अब उनके बेटे उमेर इलियासी हैं, ऐसे ही अजमेर शरीफ के खादिम हैं, कल्बे सादिक शिया मुसलमानों में से, बरेलवी संप्रदाय से अली मियां हैं, निजामुद्दीन के प्रमुख हैं मुफ्ती मुकर्रम, फतेहपुरी मस्जिद के इमामियत में एक बड़े श्रेष्ठ इमाम माने जाते हैं, इन सबसे संवाद होते हैं, मैं देवबंद भी गया था जब बड़े मौलाना मदनी साहब थे मेरी उनसे भी वार्ता हुई थी। वार्ता में मैंने कहा था कि इस हिंदुस्तान को आप एक चीज से मुक्त करवाने का काम करिए, मैं भी उसमें आपकी मदद करुंगा और वो ये कि आज कहीं भी कोई मुस्लिम मोहल्ला दिखता है तो लोग आते-जाते कह देते हैं कि ये मिनी पाकिस्तान है। इस हिंदुस्तान की हर ईंच हिंदुस्तान ही है, जब उसे मिनी पाकिस्तान कहता है तो आपको इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए, पलटकर कहना चाहिए कि नहीं हमारा मोहल्ला हिंदुस्तान था, हिंदुस्तान है और हिंदुस्तान रहेगा, ये मिनी पाकिस्तान नहीं है। आप इसपर फतवा देकर करेंगे या भाषण देकर करेंगे या विचार फैलाकर करेंगे, परंतु ये बात स्थापित होनी चाहिए। इस देश के अंदर इन सब बातों के अंदर से मुझे ये लगता है कि एक सफल कथा लिखी जा रही है और मुझे लगता है कि आगे भी लिखी जाएगी।

वासिंद्र मिश्र : बहुत बहुत धन्यवाद हमारे चैनल से बात करने के लिए।
इंद्रेश कुमार : मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत बधाई।

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