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नई दिल्ली : छत्तीसगढ में कल इतने बडे पैमाने पर राजनीतिक नरसंहार ऐसे समय हुआ, जब राज्य में नक्सली हिंसा की घटनाओं में लगातार कमी आ रही थी और मारे जाने वालों की संख्या भी दिनों दिन कम हो रही थी।
गृह मंत्रालय के आंकडों पर नजर डालें तो पाएंगे कि भाकपा-माओवादी कैडरों ने राज्य में 2012 में हिंसा की लगभग 370 वारदात कीं । 2011 में नक्सल हिंसा की घटनाओं की संख्या 465 थी जबकि 2010 का आंकडा 625 था।
मंत्रालय के मुताबिक छत्तीसगढ में नक्सल हिंसा में माओवादियों के हाथ मारे जाने वालों की संख्या में भी लगातार गिरावट दर्ज हो रही थी। 2010 में नक्सलियों के हाथ 343 लोग मारे गये, जिनमें 172 सुरक्षा जवान थे। 2011 में आंकडा घटकर 204 पर सिमट गया। मारे गये 204 लोगों में से 80 सुरक्षा जवान थे। 2012 में आंकडों में और गिरावट दर्ज की गयी और मारे जाने वाले लोगों की संख्या घटकर 109 रह गयी, जिसमें सुरक्षा जवानों की संख्या 46 थी।
अगर 2013 के आंकडों पर नजर डालें तो छत्तीसगढ में 31 मार्च तक नक्सल वारदात की संख्या केवल 59 रही, जिनमें 14 लोग मारे गये। तुलना करें तो 31 मार्च 2013 तक की वारदात के मुकाबले 31 मार्च 2012 तक की वारदात कहीं अधिक यानी 91 थी और मारे गये लोगों की संख्या 17 थी।
वस्तुत: पिछले तकरीबन दो साल से नक्सल हिंसा के मामले में झारखंड ने छत्तीसगढ को पीछे छोड दिया है । झारखंड में 2011 में नक्सल हिंसा की 517 वारदात हुइ’ जबकि 2012 में कुल 479 घटनाएं नक्सल हिंसा की हुई’ । (एजेंसी)