जीतन राम मांझी: मजदूर से मुख्यमंत्री तक का सफर
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जीतन राम मांझी: मजदूर से मुख्यमंत्री तक का सफर

पहले मजदूर और फिर बाद में डाक तार विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत रहे जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार द्वारा राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाना इस दलित नेता के लिए काफी अप्रत्याशित रहा।

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पटना : पहले मजदूर और फिर बाद में डाक तार विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत रहे जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार द्वारा राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाना इस दलित नेता के लिए काफी अप्रत्याशित रहा। निवर्तमान नीतीश सरकार में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री रहे जीतन राम मांझी को आज राज्यपाल डी वाई पाटिल ने बिहार के 32वें मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
जहानाबाद जिला के मखदूमपुर विधानसभा क्षेत्र से वर्तमान विधायक मांझी बिहार की राजनीति में एक पुराना नाम हैं और वे वर्ष 1980 से लेकर अबतक की कांग्रेस, राजद और जदयू की राज्य सरकारों में मंत्री का पद संभाल चुके हैं। छह बार विधायक रहे मांझी पहली बार कांग्रेस की चंद्रशेखर सिंह सरकार में 1980 में मंत्री बने थे और उसके बाद बिंदेश्वरी दूबे की सरकार में मंत्री रहे थे।
सुखिर्यों से प्राय: दूर रहने वाले 68 वर्षीय मांझी महादलित समुदाय तक पहुंच रखते हैं और सरकार की लाभकारी योजनाओं से महादलित समुदाय को अवगत कराने के लिए समुदाय के बीच रेडियो वितरण का श्रेय इन्हीं को जाता है। बिहार के गया जिला के खिजरसराय थाना अंतर्गत महकार गांव निवासी मांझी उस ‘मुसहर’ समुदाय से आते हैं जो कि चूहा पकड़ने और उन्हें खाने के लिए जाने जाते हैं।
6 अक्तूबर 1944 को जन्मे मांझी एक साधारण परिवार से आते हैं और उनके पिता रामजीत राम मांझी एक खेतिहर मजदूर थे। जीतन राम मांझी को भी बचपन में जमीन मालिक द्वारा खेतों में काम पर लगा दिया जाता था, लेकिन उनके मन में पढ़ने की ललक थी और अपने पिता तथा जमीन मालिक के बच्चों को पढ़ाने वाले एक शिक्षक से प्रोत्साहन मिलने पर उन्होंने बिना स्कूल जाए सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त कर ली। वर्ष 1962 में उच्च विद्यालय में शिक्षा पूरी करने के बाद मांझी ने वर्ष 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की तथा स्कूल जीवन में वे भाकपा के सक्रिय सदस्य रहे।
गरीब परिवार से आने वाले मांझी को 1968 में डाक एवं तार विभाग में लिपिक की नौकरी मिली ,लेकिन 1980 में वे नौकरी छोड़कर कांग्रेस पार्टी के उस आंदोलन कि ‘आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे’ में शामिल हो गए। उसी वर्ष गया जिला के फतेहपुर (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने चुनाव लड़ा और चंद्रशेखर सिंह नीत कांग्रेस सरकार में वर्ष 1983 में कल्याण राज्य मंत्री बने और उसके बाद की बिंदेश्वरी दूबे नीत कांग्रेस सरकार में भी मंत्री रहे। बाद के वर्षों में मांझी को अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढाव का सामना करना पड़ा था और उन्हें वर्ष 1990 और 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से पराजय झेलनी पड़ी थी।
गया जिला के बाराचट्टी एवं बोधगया और पड़ोसी जिला जहानाबाद के मुखदूमपुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार विधायक रहे और पिछली राबडी देवी नीत राजद सरकार में वर्ष 1990 में मंत्री रहे मांझी को नीतीश कुमार नीत राजग सरकार में नवंबर वर्ष 2005 में मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी पर राजद शासनकाल के दौरान मानव संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार के एक मामले में उनका नाम आने पर उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। उक्त मामले में उन्हें आरोप मुक्त किए जाने पर उन्हें पुन: मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया था।
नीतीश के विश्वस्त माने जाने वाले जीतन राम मांझी हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में गया संसदीय सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन वे भाजपा उम्मीदवार हरि मांझी के हाथों पराजित हो गए थे। साधारण परिवार से आने वाले मांझी ने नामांकन के समय दायर हलफनामे में 50 हजार रूपए नकद के साथ 2.83 लाख रूपए की अपनी चल एवं अचल संपत्ति दर्शाई है। काश्तकारी से लगाव रखने वाले मांझी के दो पुत्र एवं पांच पुत्रियां हैं और उनकी पत्नी शांति देवी अधिकांश समय गया जिला स्थित उनके निवास पर रहती हैं।

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