सैफई में `समाजवाद`
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सैफई में `समाजवाद`

यूपी में सत्‍ता में आने के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार को लेकर विपक्ष चाहे जितने नुक्स निकाले, लेकिन एक बात जो सभी जानते हैं कि समाजवादी जब जब सत्ता में होते हैं, एक काम बड़ी तबियत से करते हैं वो काम है सैफई महोत्सव का आयोजन। साल दर साल इस आयोजन का फलक बड़ा होता जा रहा है।

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अम्‍बुजेश कुमार
यूपी में सत्‍ता में आने के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार को लेकर विपक्ष चाहे जितने नुक्स निकाले, लेकिन एक बात जो सभी जानते हैं कि समाजवादी जब जब सत्ता में होते हैं, एक काम बड़ी तबियत से करते हैं वो काम है सैफई महोत्सव का आयोजन। साल दर साल इस आयोजन का फलक बड़ा होता जा रहा है। खैर यूपी के यशस्वी राजवंश की जन्मभूमि के हिस्से इतना गौरव तो आना ही चाहिए। लेकिन इस बार का तामझाम कुछ ज्यादा ही है, फिर चाहे बॉलीवुड की धक धक गर्ल माधुरी दीक्षित हों, कटरीना कैफ की डुप्लीकेट कही जाने वाली जरीन खान या फिर फिल्मी दुनिया के दबंग सलमान खान।
सैफई में लगे सितारों के मेले में सवा लाख वॉट के म्यूजिक सिस्टम और ढाई लाख वॉट की स्टेज लाइट की चमक के बीच जब सितारे जमीन पर उतरे तो यकीन मानिए एक बारगी ये अहसास तो हो ही गया होगा कि जनाब सैफई में नहीं बल्कि स्विट्जरलैंड में हैं। फिर चाहे रणबीर सिंह और दीपिका पादुकोण के ठुमके हों, या इलियाना डिक्रूज और मल्लिका सहरावत की अदाएं, सना खान का आइटम नंबर हो या आलिया भट्ट के लटके झटके। इटावा के बीहड़ों तक में गूंज रही है समाजवाद की ये नई परिभाषा। जिसमें लोहिया की सादगी ढूंढने वाले शायद मायूस होंगे लिहाजा यहां कैमरों के पर कतर दिए, ताकि घर की बात घर में ही रहे। हां जब ये लगा कि यदुवंश के इस उत्सव से कुछ लोग मायूस भी हो जाएंगे तो दिल बड़ा करके ऐलान हो गया कि चमका लो कैमरे जितने चमकाने हों।
इन सबके दौरान सैफई की अपनी हवाई पट्टी से चार्टर्ड प्लेन उतरते छोटे-बड़े फिल्मी सितारों की तस्वीरें पहले ही आम हो गई। जिससे क
यों के सीने पर सांप लोटने लगे और वो लोग भी फिजूलखर्ची की दलीलों को लेकर जुबानी तलवारें भांजने लगे जिन्हें जनता ने फिजूल मानकर ही नकार दिया था। खैर ये तो सियासी दस्तूर है हमें इससे क्या, लेकिन सैफई के धूमधड़ाके में डूबे समाजवाद की ये नई परिभाषा समझनी जरूरी है, और ये समझना भी जरूरी है कि वाकई अगर सत्तानशीन चाहें तो हर गली, हर चौराहा, हर गांव सैफई बन जाए। बस इतना समझना होगा कि मुजफ्फरनगर के राहत शिविर भी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हैं। जहां के शिविरों में ठँड से कांपते मजलूम लोग सिर्फ तीन महीनों में ही राजनीतिक एजेंट से लगने लगे हैं क्योंकि इस बहाने कमजोरी सरेआम हो जाती है। पूर्वांचल के वो इलाके भी हैं जहां गुजरे तीन दशकों में दस हजार से ज्यादा बच्चे मौत के मुंह में समा गए। और बुंदेलखंड के सूखे खेत भी हैं जहां पानी की बूंद पहुंचाने में कितनी नदियों के दायरे सूख गए, लेकिन बुंदेलखंड आज भी प्यासा है।

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हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, आप जश्न मनाइए। लेकिन सैफई की चिकनी सड़कों पर फर्राटे से गाड़ियां दौड़ाते हुए जरा टूटी पगडंडियों का भी ख्याल करिए। करोड़ों के स्वीमिंग पूल की खूबसूरती तराशते हुए जरा ये भी ख्याल करिए कि खिलाड़ी सिर्फ सैफई में ही पैदा नहीं होते। कुशीनगर जिले के उस रधिया देवरिया गांव में भी पैदा होते हैं जहां की बेटियों ने गांव के गंदे तालाब में तैरकर राष्ट्रीय स्तर तक के मेडलों से अपनी झोपड़ियां भर दी हैं। हमें कोई परहेज नहीं कि जन्मभूमि से मोहब्बत आपको दर्जनों बार यहां के सरकारी दौरे करा देती है। आपके अफसरों के दफ्तर की घंटी बजती है तो फोन उठाने से पहले ड्राइवर को बाहर भेज देते हैं कि गाड़ी स्टार्ट करे, क्या पता अगला हुक्म सैफई जाने का हो।
सबकुछ ठीक है, लेकिन आपकी राह वो लोग भी देख रहे हैं जिन्हें ठंड के मौसम में तन ढंकने के लिए अभी तक कंबल भी नहीं मिला। वाराणसी के वो लोग भी आपका दीदार चाहते हैं जिन्हें आपके मंत्री ने अपने घर से धक्का देकर भगा दिया क्योंकि उन बेचारों को ये गलतफहमी हो गई थी कि मंत्री जी के दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटना पड़ेगा। खैर छोड़िए ये तो रोज की बाते हैं लेकिन समाजवाद के पुरोधा इस बात के लिए बधाई के पात्र जरूर हैं जो उन्होने सैफई के बहाने ही सही एक सपना और देखने को मजबूर कर दिया है और कुछ देर के लिए ही सही ये भ्रम भी दूर कर दिया है कि सरकारें सिर्फ सियासत करती हैं। बस इतनी सी आरजू है कि सैफई महोत्सव से फारिग होने के बाद एक बार पूरे उत्तर प्रदेश को सैफई की नजर से देखिएगा हम गरीबों की दुआ लगेगी जो बैठे बिठाए ये सवाल पूछने लगे हैं कि क्या समाजवाद का मतलब सिर्फ सैफई तो नहीं।
(लेखक ज़ी यूपी/उत्‍तराखंड में एसोसिएट प्रोड्यूसर हैं)

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