रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम पर भारत में सियासत क्यों हो रही है? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांग कर अगले हफ्ते इस मामले की सुनवाई का निर्णय लिया है.
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विराग गुप्ता
आतंकी संगठन अलकायदा की यमन शाखा ने दुनिया के मुस्लिमों से एकजुट होकर म्यांमार सरकार के खिलाफ हमले का आह्वान करके मानवीय समस्या को जिहादी मोड़ दे दिया है. भारत में बढ़ती आबादी की वजह से कचरे के पहाड़ भी ढहने लगे हैं, उसके बावजूद रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम पर भारत में सियासत क्यों हो रही है? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांग कर अगले हफ्ते इस मामले की सुनवाई का निर्णय लिया है. उसके पहले रोहिंग्या शरणार्थियों के पैरोकारों को क्या इन 10 कानूनी सवालों के जवाब नहीं देना चाहिए?
बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में पारित सख्त आदेश
असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच वर्षों में अनेक आदेश पारित किये हैं. दिसम्बर 2014 में बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध सख्त रुख अपनाते हुए, मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि सीमा पर सुरक्षा के सख्त इंतजाम करके बांग्लादेशियों की घुसपैठ को रोका जाये. फिर रोहिंग्या शरणार्थियों के गैर-कानूनी प्रवास को कैसे सही ठहराया जा सकता है?
म्यांमार के रोहिंग्यायों को भारत में संवैधानिक अधिकार क्यों
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के अनुसार रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने से भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 के प्रावधानों का उल्लघंन होगा. भारत सरकार उन्हें देश से बाहर भेजने की कोशिश कर रही है ना कि उन्हें मारने की, फिर शरणार्थियों के जीवन के अधिकार या समानता के अधिकार का कैसे उल्लंधन हो सकता है? गरीबों की बजाए गैर-कानूनी रोहिंग्यायों को बुनियादी सुविधायें देने से भारत के लोगों के जीवन के अधिकार का उल्लघंन जरूर होगा.
अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के तहत रोहिंग्या मुस्लिमों को शरणार्थी का कानूनी दर्जा नहीं
याचिका के अनुसार संविधान के अनुच्छेद-51-सी के तहत भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय संधियों का सम्मान करने के लिए बाध्य है, इसलिए रोहिंग्या शरणार्थियों को बाहर नहीं निकाला जा सकता. भारत ने 1951 के यूएन रिफ्यूजी कन्वेंशन या 1967 के प्रोटोकॉल पर दस्तखत ही नहीं किये, फिर किस आधार पर रोहिंग्या समुदाय के लिए शरणार्थियों के संवैधानिक संरक्षण की मांग की जा रही है?
बांग्लादेशी लोगों को बाहर भेजने पर दिल्ली हाईकोर्ट की मुहर
भारत में करोड़ों अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने की सरकारी पहल पर दिल्ली हाईकोर्ट बहुत पहले मुहर लगा चुकी है. विदेशी रोहिंग्यायों का जब भारत में संवैधानिक मौलिक अधिकार नहीं है तो फिर सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत पीआईएल कैसे दायर की जा सकती है?
कश्मीर में धारा-370 के प्रतिबन्ध के बावजूद रोहिंग्यायों को निवास की अनुमति कैसे
भारत के धुर पूरब में स्थित म्यामांर से बड़ी तादाद में रोहिंग्या हज़ारों किलोमीटर दूर जम्मू पहुंचने के पीछे क्या कोई पाकिस्तानी साजिश है? संविधान के अनुच्छेद-370 के प्रतिबंधों की वजह से भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर में नहीं बस सकते उसके बावजूद रोहिंग्यायों को बसने की इजाजत दिए जाने पर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है.
घुसपैठियों के कथित कानूनी हक़ की बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि
एनएसए, आईबी और आर्मी द्वारा मार्च 2017 में सुरक्षा के आंकलन के बाद गृह मंत्रालय ने 8 अगस्त को राज्यों को एडवाइजरी जारी करके रोहिंग्या समेत अवैध तौर पर रहने वाले सभी लोगों को भारत से बाहर भेजने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच द्वारा प्राइवेसी को संवैधानिक अधिकार मानने के बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि माना है, फिर रोहिंग्या मामले में देश हित से समझौता कैसे हो सकता है?
सभी रोहिंग्या को शरणार्थी का दर्जा क्यों मिले
म्यांमार में रोहिंग्या की आबादी 11 लाख है, जो वहां के शांतिप्रिय बौद्धों के साथ संघर्षरत हैं. भारत में लगभग चालीस हजार रोहिंग्या शरणार्थी हैं. उनमें से लगभग 14000 को यूएनएचसीआर ने शरणार्थी का दर्जा दिया है. पश्चिम बंगाल में ममता सरकार रोहिंग्यायों के लिए शरणार्थी दर्जे की मांग करके वोट बैंक की तुच्छ राजनीति कर रहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले दोनों रोहिंग्यायों को यूएनएससीआर से शरणार्थी का दर्जा मिला है, परन्तु बकाया रोहिंग्यायों के लिए किस आधार पर शरणार्थी दर्जे की मांग की जा रही है?
याचिका में सभी रोहिंग्यायों का विवरण क्यों नहीं
संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दो लोगों द्वारा दायर याचिका में भारत में रह रहे सभी रोहिंग्यायों के लिए राहत की मांग की गई है. दो लोगों द्वारा बकाया 40 हजार रोहिंग्यायों का पूरा विवरण दिए बगैर उनके लिए राहत की मांग कैसे की जा सकती है?
पाकिस्तान और अलकायदा द्वारा रोहिंग्यायों का आतंकी घटनाओं हेतु इस्तेमाल
आईबी के अनुसार पाकिस्तानी ताकतें रोहिंग्या शरणार्थियों के माध्यम से भारत के तीर्थ स्थलों पर हमले को अंजाम दे सकती हैं. असम में हुई साम्प्रदायिक हिंसा और उसके बाद पुणे, बेंगलूरु और लखनऊ में बम विस्फोट और उसके बाद बोधगया में बम विस्फोटों के पीछे रोहिंग्या कनेक्शन के बाद उन्हें भारत में रहने की इजाज़त कैसे मिल सकती है?
चकमा और पाकिस्तानी शरणार्थियों से रोहिंग्यायों की तुलना गलत
सुप्रीम कोर्ट ने चकमा शरणार्थियों को भारतीय मूल का मानते हुए उनके पक्ष में फैसला दिया था. इसी तरह से पाकिस्तान से आये अनेक हिन्दू शरणार्थियों को भारत से बाहर न निकालने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते आदेश पारित किया है. बांग्लादेश ने पिछले दिनों 2000 रोहिंग्यायों को वापस भेजा है, फिर भारत में रोहिंग्यायों के लिए कानूनी हक़ की बेजा मांग का क्या तुक है?
भारत में रोहिंग्यायों को शरणार्थी का दर्जा और सुविधाएं देने की किसी भी पहल से संवैधानिक के साथ राष्ट्रीय संकट भी पैदा हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने की बजाय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय खाद्य संगठन एफएओ और यूएन पर दबाव बनाने से म्यांमार में रोहिंग्या संकट का बेहतर समाधान हो सकेगा.
(लेखक संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)